सच्चाई तक पहुंचना औरजब CJI चंद्रचूड़ ने अदालतों को दी नसीहत जानें क्या कहा
सच्चाई तक पहुंचना औरजब CJI चंद्रचूड़ ने अदालतों को दी नसीहत जानें क्या कहा
CJI Dy Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालतों को नसीहत दी और कहा कि कोर्ट को महज टेप रिकॉर्ड की तरह काम नहीं करना चाहिए. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को सुनवाई के दौरान एक सहभागी भूमिका निभानी है और गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए ‘महज टेप रिकॉर्डर’ जैसा काम नहीं करना है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अदालतों को नसीहत दी और कहा कि कोर्ट को महज टेप रिकॉर्ड की तरह काम नहीं करना चाहिए. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालतों को सुनवाई के दौरान एक सहभागी भूमिका निभानी है और गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए ‘महज टेप रिकॉर्डर’ जैसा काम नहीं करना है. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि आपराधिक अपीलों की सुनवाई के दौरान किसी मुकर चुके गवाह से सरकारी वकील व्यावहारिक रूप से कोई प्रभावी एवं सार्थक जिरह नहीं करते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि जज को न्याय के हित में कार्यवाही की निगरानी करनी होती है और यहां तक कि सरकारी वकील के किसी भी तरह से असावधान या सुस्त होने की स्थिति में अदालत को कार्यवाहियों पर प्रभावी नियंत्रण करना चाहिए, ताकि सच्चाई तक पहुंचा जा सके.
लोक अभियोजन सेवा एवं न्यायपालिका के बीच संबंधों को आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद बताते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने बार-बार कहा है कि सरकारी वकील आदि के पद पर नियुक्ति जैसे विषयों में राजनीतिक विचार का कोई तत्व नहीं होना चाहिए. पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में अपनी पत्नी की हत्या को लेकर एक व्यक्ति की दोष सिद्धि और उम्र कैद की सजा बरकरार रखते हुए सुनाये गए अपने फैसले में यह टिप्पणी की. सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को सुनाये गए अपने फैसले में कहा, ‘सच्चाई तक पहुंचना और न्याय प्रदान करना अदालत का कर्तव्य है. अदालतों को सुनवाई में सहभागी भूमिका निभानी होगी और गवाहों के बयानों को रिकार्ड करने के लिए महज टेप रिकॉर्डर के तौर पर काम नहीं करना नहीं होगा.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को अभियोजन एजेंसी के कर्तव्य में लापरवाही और गंभीर चूक के प्रति सचेत रहना होगा. पीठ ने कहा कि न्यायाधीश से उम्मीद की जाती है कि वह सुनवाई में सक्रियता से भाग लेंगे और सही निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए उपयुकत संदर्भ में उन्हें जो कुछ जरूरी लगे, गवाहों से आवश्यक जानकारी निकालेंगे. न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ किया गया कोई अपराध पूरे समाज के खिलाफ अपराध है तथा इस तरह की परिस्थितियों में, न तो सरकारी वकील और ना ही सुनवाई करने वाली अदालत के न्यायाधीश किसी भी तरह से चूक या असावधानी को वहन कर सकते हैं.
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सरकारी वकील जैसे पद पर नियुक्तियां करते समय सरकार को व्यक्ति के केवल उपयुक्त होने पर ध्यान देना चाहिए. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष सुनवाई को आपराधिक न्याय प्रणाली की बुनियाद करार देते हुए पीठ ने कहा, ‘‘लोगों के मन में यह उचित आशंका है कि आपराधिक मुकदमा न तो स्वतंत्र है और न ही निष्पक्ष है क्योंकि सरकार द्वारा नियुक्त वकील इस तरह से मुकदमा चलाते हैं, जहां अभियोजन पक्ष के गवाह अक्सर मुकर जाते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि समय के साथ शीर्ष अदालत ने आपराधिक अपीलों पर सुनवाई करते हुए देखा है कि मुकर चुके गवाह से सरकारी वकील द्वारा व्यावहारिक रूप से कोई प्रभावी और सार्थक जिरह नहीं की जाती है. पीठ ने कहा, ‘हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि यह सरकारी वकील का कर्तव्य है कि वह मुकर चुके गवाह से विस्तार से जिरह करें और सच्चाई को स्पष्ट करने का प्रयास करें तथा यह भी स्थापित करें कि गवाह झूठ बोल रहा है और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत पुलिस को दिये अपने बयान से जानबूझकर मुकर गया है.’ शीर्ष अदालत, दिल्ली उच्च न्यायालय के मई 2014 के फैसले को चुनौती देने वाली दोषी की अपील पर विचार कर रही थी, जिसने अधीनस्थ अदालत द्वारा उसे सुनाई गई उम्र कैद की सजा की पुष्टि की थी.
Tags: DY Chandrachud, Justice DY Chandrachud, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : May 6, 2024, 07:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed