जिस कॉलेज ने नहीं दिया था अडानी को एडमिशन 46 साल बाद सम्मान देने बुलाया
Gautam Adani Success : देश के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडानी ने शिक्षक दिवस पर मुंबई के एक कॉलेज में व्याख्यान दिया. यह वही कॉलेज था, जहां करीब 46 साल पहले उन्हें एडमिशन नहीं मिला था. इस मौके पर अडानी ने अपनी सफलता और संघर्ष की कहानी भी छात्रों को सुनाई.
क्या है पूरा किस्सा
मुंबई के जय हिंद कॉलेज के पूर्व छात्रों के संघ के अध्यक्ष विक्रम नानकानी ने बताया कि अडानी 16 साल की उम्र में मुंबई चले गए थे और हीरे की छंटाई का काम करने लगे थे. उन्होंने साल 1977 या 1978 में शहर के जय हिंद कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया. उनके बड़े भाई विनोद अडानी पहले से ही उसी कॉलेज में पढ़ते थे. इसके बाद उन्होंने अपना काम करना शुरू कर दिया और एक वैकल्पिक करियर अपनाया.
शुरुआत में कामगार की तरह किया काम
नानकानी ने बताया कि अडानी ने लगभग दो साल तक हीरा छांटने का काम किया. उसके बाद पैकेजिंग कारखाना चलाने के लिए अपने गृह राज्य गुजरात लौट गए. इस कारखाने को उनके भाई चलाते थे. अडानी ने साल 1998 में जिंसों में व्यापार करने वाली अपनी कंपनी शुरू की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अगले ढाई दशक में, उनकी कंपनियों ने बंदरगाह, खदान, बुनियादी ढांचा, बिजली, सिटी गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, रियल एस्टेट, डेटा सेंटर और मीडिया जैसे क्षेत्रों में कदम रखा.
अब कितना बड़ा कारोबार
आज अडानी की कंपनियां विभिन्न कारोबार से जुड़ी हैं. बुनियादी ढांचा क्षेत्र की उनकी कंपनी देश में 13 बंदरगाहों और सात हवाई अड्डों का भी संचालन करती है. आज उनका समूह बिजली के क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी इकाई है. इतना ही नहीं, उनकी कंपनी सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक है, देश की दूसरी सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी चलाती है, एक्सप्रेसवे का निर्माण कर रही है और एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास भी करने जा रही.
व्याख्यान में क्या बोले अडानी
कॉलेज में व्याख्यान देने पहुंचे अडानी ने ‘ब्रेकिंग बाउंड्रीज़ : द पावर ऑफ पैशन एंड अनकन्वेंशनल पाथ्स टू सक्सेस’ विषय पर अपनी बात रखी. 62 वर्षीय अडानी ने कहा कि वह केवल 16 वर्ष के थे जब उन्होंने अपनी पहली सीमा को तोड़ने का फैसला किया. इसका संबंध पढ़ाई-लिखाई छोड़ने और मुंबई में एक अनजाने से भविष्य की ओर जाने से था. लोग अब भी मुझसे पूछते हैं, ‘आप मुंबई क्यों चले गए? आपने अपनी शिक्षा पूरी क्यों नहीं की?. इसका उत्तर सपने देखने वाले हर युवा के दिल में है, जो सीमाओं को बाधाओं के रूप में नहीं बल्कि चुनौतियों के रूप में देखते हैं जो उसके साहस की परीक्षा लेती है.’
जिंदगी है सबसे बड़ी शिक्षक
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह महसूस हुआ था कि क्या मुझमें हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण शहर में अपना जीवन जीने का साहस है. कारोबार करने का क्षेत्र एक अच्छा शिक्षक बनाता है. मैंने बहुत पहले ही सीख लिया था कि एक उद्यमी अपने सामने मौजूद विकल्पों का अत्यधिक मूल्यांकन करके कभी भी स्थिर नहीं रह सकता. यह मुंबई ही है जिसने मुझे सिखाया कि बड़ा सोचने के लिए आपको पहले अपनी सीमाओं से परे सपने देखने का साहस करना होगा.’
23 साल में बन गए थे सफल कारोबारी
अडानी ने 1980 के दशक में छोटे उद्योगों को आपूर्ति के लिए पॉलिमर आयात करने के लिए एक व्यापारिक संगठन बनाया. वे कहते हैं कि जब मैं 23 साल का हुआ, तो मेरा कारोबारी उद्यम अच्छा कर रहा था. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद पॉलिमर, धातु, कपड़ा और कृषि-उत्पादों में काम करने वाले एक वैश्विक कारोबारी घराने की स्थापना की. तब वह सिर्फ 29 साल के थे. अगले दो साल के भीतर, हम देश में सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी घराना बन गए. तब मुझे गति और पैमाने दोनों का संयुक्त मूल्य समझ में आया.
30 साल पहले रखा शेयर बाजार में कदम
अडानी ने कहा, साल 1994 में हमने फैसला किया कि यह सूचीबद्ध होने का समय है और अडानी एक्सपोर्ट्स ने अपना आईपीओ लांच किया. इसे अब अडानी इंटरप्राइजेज के नाम से जाना जाता है. आईपीओ लाने का निर्णय सफल रहा और इससे मुझे सार्वजनिक बाजारों का महत्व समझ में आया. एहसास हुआ कि आगे की सीमाओं को तोड़ने के लिए, उन्हें सबसे पहले अपनी यथास्थिति को चुनौती देकर शुरुआत करनी होगी और एक ठोस आधार प्रदान करने के लिए परिसंपत्तियों में निवेश करना होगा.
दलदली जमीन पर बना सबसे बड़ा बंदरगाह
अदाणी ने 1990 के दशक के मध्य में, वैश्विक जिंस व्यापारी कारगिल ने उनसे गुजरात के कच्छ क्षेत्र से नमक के निर्माण और स्रोत के लिए साझेदारी के लिए संपर्क किया था. हालांकि, साझेदारी सफल नहीं हो पाई, लेकिन हमारे पास लगभग 40,000 एकड़ दलदली भूमि और नमक के निर्यात के लिए मुंदड़ा (गुजरात में) में निजी उपयोग को लेकर जेट्टी (घाट) बनाने की मंजूरी रह गई. जिसे अन्य लोग दलदली बंजर भूमि के रूप में देखते थे, उसे उन्होंने कायाकल्प का इंतजार कर रहे एक बड़े क्षेत्र के रूप में देखा. वह क्षेत्र अब भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह है.
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