राष्ट्रपति चुनाव: द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने नई तरह की सियासी सोशल इंजीनियरिंग की पहल की विपक्ष के पास नहीं दिख रही काट
राष्ट्रपति चुनाव: द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने नई तरह की सियासी सोशल इंजीनियरिंग की पहल की विपक्ष के पास नहीं दिख रही काट
राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को उम्मीदवार बनाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा (BJP)) ने एक नई तरह की सियासी सोशल इंजीनियरिंग की पहल की है.
ममता त्रिपाठी
नई दिल्ली. राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) को उम्मीदवार बनाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा (BJP)) ने एक नई तरह की सियासी सोशल इंजीनियरिंग की पहल की है. राजनीतिक और सामजिक दृष्टि से समाज के आखिरी सिरे पर खड़े व्यक्ति की देश की राजनीति में भागीदारी की बातें इस उम्मीदवारी से सही साबित होने लगी हैं. दिलचस्प बात ये है कि विपक्षी दलों को इसकी कोई काट भी नजर नहीं आ रही है. विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा ने 27 जून को नामांकन दाखिल किया. आगामी 18 जुलाई को मतदान होगा, वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी. 24 जुलाई को देश को अपना नया राष्ट्रपति मिल जाएगा.
एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद पर बिठाने की अपनी मंशा जाहिर करने के बाद भाजपा ने एक नया दांव चला है जिसमें विपक्ष पूरी तरह से उलझ कर रह गया है. एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू ने 24 जून को नामिनेशन दाखिल कर दिया है और ये भाजपा की रणनीति ही है कि उनके प्रस्तावकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री हैं. इसके अलावा भाजपा ने राजस्थान, झारखंड, बिहार, गुजरात, हिमाचल और मध्य प्रदेश से अपने आदिवासी विधायकों को खासतौर से बुलाया था. ज्यादातर एसटी सीटों पर भाजपा का परफार्मेंस पिछले चुनावों में अच्छा नहीं रहा था. शीर्ष नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को उन विधानसभा क्षेत्रों में ‘अपना बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम में इस बात पर जोर देने को कहा है.
इसके बहाने राजस्थान विधानसभा चुनाव पर निशाना
भाजपा के संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और राजस्थान में नेता विपक्ष गुलाब कटारिया ने पार्टी हाईकमान के आदेश पर उदयपुर ग्रामीण से विधायक फूल सिंह मीणा, सलूंबर से विधायक अमृतलाल मीणा, झाड़ौल से विधायक बाबूलाल खराड़ी, पिंडवाड़ा से विधायक समाराम गरासिया और गढ़ी से विधायक कैलाश मीणा को राष्ट्रपति उम्मीदवार के प्रस्तावकों में शामिल किया था. आपको बता दें कि राजस्थान में अगले साल चुनाव होना है. राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में 25 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा 17-20 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोटरों की अच्छी संख्या है जो किसी भी चुनाव का नतीजा बदलने के लिए काफी है.
यही वजह है कि आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस, आप और भाजपा सभी दल अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं. कांग्रेस का उदयपुर में चिंतन शिविर और बाद में आदिवासियों के मक्का कहे जाने वाले बेनेश्वर धाम में जनसभा इसी रणनीति का हिस्सा थी. भारतीय जनता पार्टी ने भी 15 नवंबर बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की घोषणा करके आदिवासियों को खुश करने की कोशिश की है.
पूरे देश में कुल 12 करोड़ आदिवासी मतदाता
आपको बता दें कि लोकसभा में 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. झारखंड में 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीट आदिवासियों के लिए आऱक्षित हैं, गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटें आदिवासियों के लिए हैं. देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश में रहती है. यहां के राज्यपाल मंगूभाई पटेल भी गुजरात के बड़े आदिवासी नेता थे. यहां की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं, महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटों में 14 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, ओडिशा में कुल 147 विधानसभा सीटों में से 24 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा यूपी और बिहार में दो-दो सीटें आदिवासियों के आरक्षित हैं, जबकि एक दर्जन सीटों पर इनके वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पूरे देश में कुल 12 करोड़ आदिवासी मतदाता हैं.
महाराष्ट्र संकट की वजह से विपक्ष एकजुट नहीं
विपक्ष की ओर से चुनाव की कमान संभाल रहे एनसीपी नेता शरद पवार आखिरी वक्त में महाराष्ट्र में चल रहे महाविकास अघाड़ी सरकार पर पैदा हुए संकट को सुलझाने में लगे हुए हैं, जिसके चलते विपक्ष चुनाव में एकजुट हो ही नहीं पा रहा है. एनसीपी के बड़े नेता का कहना है कि ऐसे वक्त में ये समस्या पैदा हुई है कि पहले सरकार को बचाना हमारी प्राथमिकता है वरना सियासी हलकों में ये संदेश जाएगा कि विपक्ष अपनी सरकार नहीं बचा पा रहा है तो राष्ट्रपति का चुनाव कैसे लड़ पाएगा. आदिवासी महिला नेता के नाम पर मायावती खुलकर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर चुकी हैं साथ ही विपक्ष से नाराजगी भी जाहिर कर चुकी हैं.
भाजपा की कोशिश बड़े अंतर से चुनाव जीतना
उधर शिवसेना के विधायकों का भाजपा की तरफ झुकाव होने की वजह से भाजपा उम्मीदवार को मजबूती मिलेगी. महाराष्ट्र में विधायकों का मूल्य 175 है, ऐसे में 7500 अतिरिक्त वोटों का और इंतजाम हो गया. भाजपा की कोशिश सिर्फ चुनाव जीतना नहीं है बल्कि बड़े अंतर से विपक्ष को शिकस्त देना है. 2017 में रामनाथ कोविंद भी बड़े अंतर लगभग 3.35 लाख के अंतर से चुनाव जीते थे. भाजपा नेताओं का मानना है कि आदिवासी महिला नेता होने के नाते विपक्षी क्षेत्रीय दलों में सेंधमारी आसान हो गई है. विपक्ष के कई दल यशवंत सिन्हा के नाम पर पहले से ही नाराज चल रहे हैं. भाजपा की कोशिश है कि उन सभी नाराज दलों को अपनी तरफ करें. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता विकास रंजन भट्टाचार्य सोशल मीडिया के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर भी कर चुके हैं कि उम्मीदवार का चयन सर्वसम्मति से नहीं हुआ, जल्दी में लिया गया गलत फैसला है ये.
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Tags: BJP, Draupadi murmuFIRST PUBLISHED : June 27, 2022, 17:18 IST