शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन :स्वाधीनता संग्राम ले लेकर धर्म तक जानिए कैसा था 99 साल का सफर
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन :स्वाधीनता संग्राम ले लेकर धर्म तक जानिए कैसा था 99 साल का सफर
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में 2 सितंबर 1924 को हुआ था. 9 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गृह त्याग दिया था. उन्होंने जंगलों में रहकर घोर तपस्या की और ज्ञान और सिद्धि कार्य किया. इस दौरान तीर्थाटन करते हुए वो भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान और संतों के दर्शन करते हुए काशी पहुंचे. काशी में उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज और स्वामी महेश्वरानंद जैसे विद्वानों से वेद वेदांत, शास्त्र पुराण सहित स्मृति और न्याय ग्रंथों का अध्ययन किया. आदि शंकराचार्य की ओर से स्थापित अद्वैत मत के सर्वश्रेष्ठ जानकार और उनके विचारों के प्रचार के लिए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने सन 1950 में ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज से विधिवत दंड संन्यास की दीक्षा ली. गुरु द्वारा दिए गए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए. उन्होंने हिंदू कोड बिल के विरुद्ध स्वामी करपात्री ने स्थापित राम राज्य परिषद के अध्यक्ष पद से संपूर्ण भारत में रामराज्य लाने का संकल्प लिया और हिंदुओं को उनके राजनीतिक अस्तित्व का बोध कराया
जबलपुर. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती नहीं रहे. उनका जाना झोतेश्वर धाम सहित उनके लाखों भक्तों के लिए बड़ी क्षति है. वो एक साथ दो पीठों पर बैठने वाले पहले शंकराचार्य रहे. वो देश के स्वाधीनता संग्राम में भी शामिल हुए और वेद पुराणों का देश में घूम घूम कर गहन अध्ययन किया.
सिवनी जिले के दिघोरी गांव में जन्मे और बचपन से ही श्रीधाम गोटेगांव स्थित झोतेश्वर धाम को तपोस्थली बनाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती देश के स्वाधीनता आंदोलन में भी शामिल हुए. वो दो बार जेल भी गए. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कर्म पथ के साथ धर्म पथ के सिद्धांत को प्रतिपादित किया. उनके लाखों अनुयायी देश विदेश में हैं. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के महाप्रयाण पर हर आंख नाम और हृदय व्यथित है.
ये है सफरनामा
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में 2 सितंबर 1924 को हुआ था. 9 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गृह त्याग दिया था. उन्होंने जंगलों में रहकर घोर तपस्या की और ज्ञान और सिद्धि कार्य किया. इस दौरान तीर्थाटन करते हुए वो भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान और संतों के दर्शन करते हुए काशी पहुंचे. काशी में उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज और स्वामी महेश्वरानंद जैसे विद्वानों से वेद वेदांत, शास्त्र पुराण सहित स्मृति और न्याय ग्रंथों का अध्ययन किया. आदि शंकराचार्य की ओर से स्थापित अद्वैत मत के सर्वश्रेष्ठ जानकार और उनके विचारों के प्रचार के लिए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने सन 1950 में ज्योतिष पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज से विधिवत दंड संन्यास की दीक्षा ली. गुरु द्वारा दिए गए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए. उन्होंने हिंदू कोड बिल के विरुद्ध स्वामी करपात्री ने स्थापित राम राज्य परिषद के अध्यक्ष पद से संपूर्ण भारत में रामराज्य लाने का संकल्प लिया और हिंदुओं को उनके राजनीतिक अस्तित्व का बोध कराया.
ये भी पढ़ें- बिशप के ठिकानों पर छापा : धर्मांतरण का शक, चर्च फॉर नार्थ इंडिया एजेंसियों के रडार पर
2 पीठों पर विराजने वाले पहले शंकराचार्य
द्वारका शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अभिनव सच्चिदानंद महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनकी इच्छा के अनुसार 27 मई 1982 को स्वामी स्वरूपानंद को द्वारका पीठ की गद्दी पर बैठाया गया. इस प्रकार स्वामी स्वरूपानंद आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से 2 पीठों पर विराजने वाले शंकराचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुए. स्वामी स्वरूपानंद ने समस्त भारत की आध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक उत्थान मंडल नामक संस्था भी स्थापित की थी. इसका मुख्यालय नरसिंहपुर जिले में रखा गया. यहां राज राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी भगवती का विशाल मंदिर बनाया गया है. पूरे देश में आध्यात्मिक उत्थान मंडल की 1200 से अधिक शाखाएं लोगों में आध्यात्मिक चेतना के जागरण और ज्ञान तथा भक्ति के प्रचार के लिए समर्पित हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी |
Tags: Jabalpur news, Madhya pradesh latest newsFIRST PUBLISHED : September 12, 2022, 13:21 IST