नवरात्रि : दो बहनों का वास देवास जहां दिन में 3 रूप बदलती हैं देवी सती के अंग यहां गिरे थे
नवरात्रि : दो बहनों का वास देवास जहां दिन में 3 रूप बदलती हैं देवी सती के अंग यहां गिरे थे
Dhram : देवास में माता टेकरी है. इस शहर का नाम दो देवियों के वास के नाम पर दे वास पड़ा. इसका पहले नाम देववासिनी था. बाद में यह देवास हो गया. इसे मां चामुंडा और तुलजा भवानी की नगरी भी कहकर पुकारा जाता है. देवास का इतिहास माता टेकरी से जुड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पर कई साधकों ने तपस्या कर अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचाया है. गुरु गोरखनाथ, राजा विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तहरि व सद्गुरु योगेंद्र शीलनाथ महाराज की यह तपोभूमि रही है. यहां पर कई वर्षों तक इन्ही साधकों ने माता के चरणों में घोर तपस्या की है.
देवास. आज से नवरात्रि शुरू हुई हैं. देवास में भी भक्तों का मेला लगेगा. यहां पहाड़ी पर मां चामुंडा और तुलजा भवानी विराजी हैं. ये शक्तावतों की आराध्य देवी हैं. वेद और पुराण मां चामुंडा और तुलजा भवानी की शक्ति की महिमा से भरे पड़े हैं. इनकी महिमा ऐसी है कि अनादि काल से इनके प्रति आस्था और चमत्कार के किस्से चलते आ रहे हैं. भक्तों की आस्था इतनी गहरी है कि वो कहते हैं जिस पर मां की कृपा हो जाती है उसके जीवन का उद्धार हो जाता है. इस मंदिर की खासियत ये है कि माता यहां दिन में तीन स्वरूप बदलती हैं.
देवास के इस शक्ति पीठ को रक्त गिरने से अर्द्ध शक्ति और रक्त शक्ति पीठ भी कहा जाता है. कहते हैं माता के इस मंदिर में गुरु ग्रोखनाथ, राजा भर्तहरि, सद्गुरु शीलनाथ महाराज, जैसे कई सिद्ध पुरुष तपस्या कर चुके हैं. राजा विक्रमादित्य और चक्रवर्ती राजा पृथ्वीराज चौहान भी माता के दरबार में माथा टेक चुके हैं. यहां देवी को पान का बीड़ा खिलाने की प्रथा है. मां चामुंडा और तुलजा भवानी नाथ सम्प्रदाय की इष्ट देवी मानी जाती हैं. यहां का राज परिवार अष्टमी और नवमी के दिन यहां पूजन कर हवन में आहुति देते हैं.
माता सती के अंग गिरे थे यहां
देवास के चामुंडा मंदिर में शिखर दर्शन का खास महत्व है. माता सती के जहां जहां अंग गिरे वहां शक्ति पीठ कहलाए और जहां रक्त गिरा वहां रक्त शक्ति पीठ और अर्ध शक्ति पीठ कहलाए. यहां देवास में माता सती का रक्त गिरा था. उससे दो देवियों की उत्पत्ति हुई. इसलिए यहां के बारे में दो बहनों की कहानी प्रचलित है. ये भी कहते हैं कि दोनों बहनों में किसी बात को लेकर अनबन हो गयी उसके बाद दोनों की पीठ यहां स्थापित हो गयी. लेकिन बजरंग बली और भैरव बाबा की विनती पर देवियां उसी अवस्था में रुक गयीं जैसी पहले थीं.
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दो बहनों का वास देवास
देवास में माता टेकरी है. इस शहर का नाम दो देवियों के वास के नाम पर दे वास पड़ा. इसका पहले नाम देववासिनी था. बाद में यह देवास हो गया. इसे मां चामुंडा और तुलजा भवानी की नगरी भी कहकर पुकारा जाता है. देवास का इतिहास माता टेकरी से जुड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पर कई साधकों ने तपस्या कर अपनी साधना को उच्च शिखर पर पहुंचाया है. गुरु गोरखनाथ, राजा विक्रमादित्य के भाई राजा भर्तहरि व सद्गुरु योगेंद्र शीलनाथ महाराज की यह तपोभूमि रही है. यहां पर कई वर्षों तक इन्ही साधकों ने माता के चरणों में घोर तपस्या की है.
9 दिन उत्सव
यहां पर स्थित माता टेकरी पर हर वर्ष नवरात्रि में 9 दिन का उत्सव मनाया जाता है. नगर में माता के आकर्षक पंडाल लगते हैं. एबी रोड पर जगह जगह श्रद्धालुओं के लिए भंडारे आयोजित किये जाते हैं. यह क्रम 9 दिन तक रहता है. माता टेकरी पर यूं तो 12 महीने श्रद्धालु दर्शन के लिए माई के दरबार पहुंचते है. परंतु शारदीय नवरात्रि में माता भक्तों का यहां मेला लगता है.
मंदिर पहुंचने के तीन रास्ते
देवास शहर के बीचों बीच माता की यह टेकरी स्थित है. इसकी ऊंचाई 300 फीट है. यहां जाने के लिए तीन मुख्य मार्ग हैं. एक शंख द्वार से होकर रपट का मार्ग जहां गाड़ी और पैदल होकर पहुंचते हैं. दूसरा एबी रोड पर स्थित सीढ़ी मार्ग जिससे सीढ़ियों से होकर जाते हैं. शंख द्वार से श्रद्धालु बड़ी माता तुलजा भवानी के मंदिर पहुंचते हैं. सीढ़ी मार्ग से सीधा छोटी माता चामुंडा रानी के दर्शन करने पहुंचता है. करीबन 250 से 300 मीटर की चढ़ाई करते हुए श्रद्धालु माता के मंदिर पहुंचता है. इनके अलावा भी एक परेड ग्राउंड से होकर सीढ़ी का रास्ता और रोप-वे से यहां पहुंचा जा सकता है.
सीधे हाथ पर परिक्रमा
दर्शन करने के लिए जब श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं तब सीधे हाथ पर ही परिक्रमा लगाई जाती है. उसी के क्रम में मंदिर यहां स्थापित किए हुए हैं. हर मंदिर सीधे हाथ पर स्थापित हैं. यहां बांए हाथ पर देखने से पूरा शहर दिखाई देता है. यहां से नजारा देखने पर शहर की सुंदरता साफ दिखाई देती है. चारों ओर घूमकर पूरा शहर यहां से देखा जा सकता है.
माता के साथ बजरंग बली
माता तुलजा भवानी के दर्शन के बाद संकट मोचन बाबा बजरंग बली के दर्शन यहां पर होते हैं. बाबा बजरंग की प्रतिमा पहाड़ों में से उभरी हुई है जो की स्वयंभू बताए जाते हैं. यहां बजरंग बड़ी माता के साथ रहते हैं और यहां पहाड़ों में से पानी 12 महीने बहता रहता है.
दर्शन का ये है क्रम
बजरंग बली के दर्शन के बाद माता कालका का मंदिर आता है. उसके बाद गणेश और भगवान शंकर विराजे हैं. यहां 12 फीट का त्रिशूल भी स्थापित किया गया है. उसके बाद यहां माता अष्टभुजा और माता अन्न पूर्णा के दर्शन होते हैं. आगे चलने पर खो खो माता का मंदिर आता है. उसी के पास से टेकरी के ऊपर दमदमा जाने का रास्ता बना हुआ है. ऐसा बताया जाता है कि पहले उस दमदमा पर दूध की तलैया हुआ करती थी। जहां पर जाने की अनुमति होती थी लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया.
छोटी बहन के साथ नौ देवियां
अब आगे चलकर मां चामुंडा का मंदिर आता है. जिन्हें छोटी माता कहकर पुकारा जाता है. माँ चामुंडा के दर्शन स्थल पर ही नौ देवियों को स्थापित किया गया है. माता का यह मंदिर सर्वोच्च छोटी पर स्थापित है. यहां माता की मूर्ति पहाड़ों में से निकली हुई है जो धरती की ओर झुकती अवस्था में है. दूर से देखने पर यहां ऐसा लगता है कि माता आप ही को देख रही हैं. साथ ही यहां पर भैरव मंदिर भी स्थापित है. उसी के आगे कुबेर देव की प्रतिमा को स्थापित किया गया है
नाथ सम्प्रदाय की ईष्ट देवी
नाथ सम्प्रदाय के लोग यहां सुबह शाम माता की आरती कर पूजन . करते हैं. यहां सुबह 6 बजे बड़ी माता की आरती और 7 बजे छोटी माता की आरती की जाती है. यही क्रम शाम को भी दोहराया जाता है. नाथ समुदाय के लोगों ने ही यहां पूजन सामग्री की भी दुकानें लगाई हुई हैं. इससे उनका घर परिवार चलता है.
क्या है पूरी कहानी-
मान्यताओं के अनुसार यहां देवी मां के दोनों स्वरूप अपनी जागृत अवस्था में हैं. इन दोनों स्वरूपों को छोटी मां और बड़ी मां के नाम से जाना जाता है. बड़ी मां को तुलजा भवानी और छोटी मां को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है. उसके अलावा भी यहां पर 9 देवियों का वास है. पुजारी बताते हैं कि बड़ी मां और छोटी मां के मध्य बहन का रिश्ता है. एक बार दोनों में किसी बात अनबन हो गयी. अनबन होने के कारण दोनों की पीठ हो गयी. इससे क्षुब्द होकर दोनों ही माताएं अपना स्थान छोड़कर जाने लगी. बड़ी मां पाताल में समाने लगीं और छोटी मां अपने स्थान से उठ खड़ी हो गयीं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं.माताओं को कुपित देखकर माना जाता है कि बजरंगबली माता का ध्वज लेकर आगे और भेरूबाबा मां का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं. हनुमानजी और भेरूबाबा ने उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की. इस समय तक बड़ी मां का आधा धड़ पाताल में समा चुका था. वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गयीं वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं. वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गयीं. इस तरह आज भी माताएं अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं.
पहला शहर जहां जो राजवंशों का राज
देवास के संबंध में एक और लोक मान्यता यह है कि यह पहला ऐसा शहर है, जहां दो वंश राज करते थे. पहला होलकर राजवंश और दूसरा पंवार राजवंश. बड़ी मां तुलजा भवानी देवी होलकर वंश की कुलदेवी हैं. छोटी मां चामुण्डा देवी पंवार वंश की कुलदेवी हैं. हर नवरात्रि में सप्तमी और अष्टमी को यहां पर हवन यज्ञ का आयोजन होता है जिसमें दोनों राजवंश के लोग उपस्थित होते है. टेकरी में दर्शन करने वाले श्रद्धालु बड़ी और छोटी माँ के साथ-साथ भेरूबाबा के दर्शन अनिवार्य मानते हैं.
दिन में तीन स्वरूप
माता के विषय में यह किवदंतियां हैं कि यहां माता दिन में तीन रूप बदलती हैं. सुबह बाल अवस्था, दोपहर में युवा वस्था और रात होते होते मां को वृद्धावस्था रूप देखा जा सकता है. जिला प्रशासन देवास में माता टेकरी के नौ दिन के नवरात्रि महोत्सव में विभिन्न आयोजन करवाता है.
मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार संतान नहीं होने पर माता को 5 दिन तक पान का बीड़ा खिलाया जाता है. साथ ही उल्टा साथिया बनाने की यहां पर प्रथाएं हैं. उसके बाद मान्यता पूरी होने पर साथिया सीधा भी यहां पर किया जाता है. बहुत से लोग यहां घुटनों के बल अपनी मनोकामना पूरी करते हैं.
देवास तक ऐसे पहुंचें
यहां का निकटतम हवाई अड्डा मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर शहर में स्थित है. यहां से होकर देवास के लिए बस उपलब्ध है. उसके अलावा देवास शहर राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-मुंबई से जुड़ा हुआ है. यह मार्ग माता की टेकरी के नीचे से ही गुजरता है. इसके निकटतम शहर इंदौर और उज्जैन हैं. जो यहां से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं. इंदौर, उज्जैन से आप बस या टैक्सी लेकर देवास जा सकते हैं. इंदौर शहर में रेल मार्ग का जाल बिछा हुआ है. इंदौर आकर आप रेल से देवास जा सकते हैं. बड़ा रेल मार्ग देवास से निकली हुई है.
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Tags: Dewas News, Navratri Celebration, Navratri festivalFIRST PUBLISHED : September 26, 2022, 10:25 IST