पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश ने भारत में बीजेपी के विकास की राह कर दी आसान
पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश ने भारत में बीजेपी के विकास की राह कर दी आसान
भाजपा भारत में बलिष्ठ होती रही है तो इसके पीछे यकीनन उसकी हिन्दू ध्रुवीकरण की कोशिश है. इसमें मददगार पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ अपने मुल्क की विपक्षी पार्टियां के कारनामे भी रहे हैं. पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियां, बांग्लादेश की हिन्दू विरोधी बन गई छवि और विपक्ष की मुस्लिम परस्ती ने भाजपा के इरादों को मजबूती प्रदान की है.
भारत में भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति को खाद-पानी पाकिस्तान से मिलता रहा है. युद्ध के बाद पाकिस्तान ने आतंकवाद को भारत के खिलाफ अपनी नफरत जाहिर करने का जरिया बनाया. जम्मू कश्मीर और सरहदी इलाकों में आतंकी गतिविधियों ने भाजपा के हिन्दुवादी चरित्र को हवा-पानी दिया. संसद के कोने में कभी दुबकी भाजपा आज खराब हाल में भी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है तो इसमें पाकिस्तान का बड़ा योगदान है.
इस्लाम के नाम पर भारत में मुस्लिम गोलबंदी का प्रयास पाकिस्तान पोषक SIMI और PFI ने जिस तरह शुरू किया है, वह भाजपा की सियासी जमीन पुख्ता करने के लिए पर्याप्त है. अब तो भारत और हिन्दुओं के मामले में पाकिस्तान की राह पर बांग्लादेश भी चल पड़ा है. यानी बांग्लादेश भी भाजपा के हिन्दू ध्रुवीकरण की नीति को पाकिस्तान की तरह खाद-पानी मुहैया कराने लगा है.
विपक्ष की मुस्लिम परस्ती से भाजपा को मदद
देश में भाजपा विरोधी राजनीतिक पार्टियों के नेता मुस्लिम परस्ती में मशगूल हैं. बात-बेबात भाजपा विरोध के नाम पर वे मुसलमानों कै साथ खड़े हो जाते हैं. भाजपा के विरोध का आलम यह कि भारत का नेता प्रतिपक्ष विदेशों में जाकर भारत के हालात को खराब बताने से नहीं चूकता. ऐसा करते समय घर की बात घर में ही रखने का नैतिक दायित्व राहुल गांधी भूल जाते हैं. अमेरिका और ब्रिटेन की यात्राओं में राहुल गांधी के भाषणों पर विवाद हो चुका है.
चीन के प्रति कांग्रेस की उदारता के भी आरोप लगते रहे हैं। मुस्लिम परस्ती के मामले में राहुल ही नहीं, उनके पिता राजीव गांधी का नजरिया भी बेटे जैसा ही रहा है. अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजीव गांधी ने बहैसियत सरकार प्रमुख अमल कर लिया होता या शाह बानो प्रकरण में अदालती आदेश को पलटा नहीं होता तो आज शायद कांग्रेस इस हाल में नहीं होती.
कांग्रेस मुस्लिम परस्ती का खामियाजा भोग चुकी है
मुस्लिम परस्ती का कांग्रेस 1989 से ही खामियाजा भोग रही है. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी ने 403 सीटें जीतने का जो रिकॉर्ड बनाया, उसी राजीव की मुस्लिम परस्ती ने 1989 में कांग्रेस को कहां पटक दिया, यह सबने देखा है. कांग्रेस के लिए हिन्दू वोटरों के बिदकने का यह इशारा था. कांग्रेस के किसी नेता ने यह इशारा समझा भी होगा तो आलाकमान का हुक्म सिर-आंखों पर के अंदाज में बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया होगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस 55 सीटों पर सिमट गई और नेता प्रतिपक्ष की अर्हता पूरी करने भर की उसकी हैसियत नहीं रह गई. हार की समीक्षा के लिए कांग्रेस ने एके एंटनी को काम पर लगाया. ऐसी समीक्षा चुनाव नतीजों के बाद हर दल ही करते हैं.
काश, एके एंटनी की बात कांग्रेस ने मान ली होती
खैर, एके एंटनी ने बड़ी ईमानदारी और बेबाकी से समीक्षा रिपोर्ट तैयार कर आलाकमान को सौंप दी. उस रिपोर्ट के हश्र का कोई भी आसानी से अनुमान लगा सकता है. रिपोर्ट की सच्चाई यकीनन आलाकमान के सोच से मेल नहीं खाई होगी. जिस दल में आलाकमान का कल्चर हो, वहां लोकतांत्रिक मर्यादा का कोई मायने नहीं होता. एंटोनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति के कारण हिन्दू वोटरों का कांग्रेस से मोह भंग हुआ है.
कांग्रेस आलाकमान को यह बात इसलिए पसंद नहीं आई होगी, क्योंकि उसकी मुसलमानों के थोक वोट की नीति रही है. कांग्रेस ने 2019 और 2024 में भी उससे कोई सीख नहीं ली है. कांग्रेस यह भूल जाती है कि थोक मुस्लिम वोट की उसकी उम्मीद पर पानी फेरने के लिए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी, लालू यादव के आरजेडी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल भी मजबूती से खड़े हैं.
भाजपा ने सनातन समर्थक की छवि नहीं बदली
भाजपा की सनातन समर्थक पहचान कोई नई नहीं है, बल्कि जनसंघ के जमाने से ही उसकी यही पहचान रही है. सनातन पर संकट उसे जिस देश में भी नजर आता है, भाजपा मुखर हो जाती है. कनाडा में खालिस्तानी आतंकी पन्नू द्वारा हिन्दू मंदिर पर हमला हो या बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमले, भाजपा ने हमेशा विरोध किया है. कांग्रेस की कभी ऐसे मामलों पर जुबान नहीं खुली. भाजपा हिन्दू-मुस्लिम तो मानती है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता शब्द से उसे एलर्जी है. समाजवाद शब्द को भी भाजपा अब अप्रासंगिक मानती है. भाजपा की इस सोच का भारत में विपक्षी विरोध करते हैं. पर, भाजपा की सोच को तो बांग्लादेश ने भी पुष्ट कर दिया है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने तीन महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं. पहला यह कि राष्ट्रपिता जैसी अब कोई उपाधि वहां नहीं होगी. दूसरा सेकुलर शब्द वहां नहीं चलेगा. भाजपा की सोच भी तो यही है!
Tags: Bangladesh, BJP, Narendra modi, Pakistan newsFIRST PUBLISHED : November 19, 2024, 15:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed