OPINION: हद है! जनता को ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने लायक छोड़ा भी है इन नेताओं ने

India Children Birth: चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि दक्षिण भारत में आबादी बूढ़ी हो रही है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक महिला को अपने जीवनकाल में दो से अधिक बच्चों को जन्म देना चाहिए. चेन्नई में, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी जनसंख्या के मुद्दे को उठाया और इसे परिसीमन कवायद से जोड़ा.

OPINION: हद है! जनता को ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने लायक छोड़ा भी है इन नेताओं ने
बच्‍चे दो ही अच्‍छे. अपने यहां का सरकारी नारा यही था. आधिकारिक तौर पर अब भी यही है. यह बात अलग है कि हिंदुत्‍व के नाम पर कट्टर हिंदूवादी नेता हिंदुओं से ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की अपील करते रहे हैं क्‍योंकि उन्‍हें मुसलमानों को टक्‍कर देना है. उनकी अपीलें भले ही मीडिया की सुर्खियों में आ जाती हों, लेकिन अमल में बेअसर ही दिखाई देती हैं. इसके बावजूद अब चुनी हुई सरकारों के मुखिया भी कह रहे हैं- ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करो. इसके लिए स्‍कीम लॉन्‍च करने तक की बात हो रही है। मतलब, आप बच्‍चे भी नेताओं की जरूरत और नसीहत को ध्‍यान में रख कर पैदा करें. हद है! आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में कहा कि अब लोगों को ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की जरूरत है. उन्‍होंने इसके लिए लोगों को प्रोत्‍साहित करने और इस संबंध में कानून लाने की भी बात कही. तमिलनाडु के मुख्‍यमंत्री एम. स्‍टालिन ने भी कुछ अलग अंदाज में वही बात कही. कम होती आबादी और बुजुर्गों की ज्‍यादा संख्‍या जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए ये नेता आबादी बढ़ाने का विकल्‍प सुझा रहे हैं. हालांकि, नायडू पहले भी इसकी वकालत कर चुके हैं. आठ साल पहले भी जब वह सीएम थे तो कई बार जनसंख्‍या बढ़ाने की जरूरत बता चुके थे. इन नेताओं की चिंता की वजह आर्थ‍िक और राजनीतिक है. आर्थ‍िक से भी ज्‍यादा राजनीतिक है. कम जनसंख्‍या मतलब लोकसभा में राज्‍य की सीटों की संख्‍या में कमी. इसका मतलब राज्‍य की राजनीतिक ताकत में कमी. इसका मतलब राज्‍य की राजनीतिक पार्टियों की ताकत में कमी. जनसंख्‍या बढ़वाने के पीछे छिपे नेताओं के स्‍वार्थ का और पोस्‍टमॉर्टम करने से पहले थोड़ा नजर आंकड़ों पर डाल लेते हैं. इससे यह पता चल जाएगा कि सीन क्‍या है. जनगणना के आंकड़े तो काफी पुराने हो जाएंगे. इसलिए यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) और इंटरनेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ पॉपु‍लेशन साइंसेज (आईआईपीएस) की रिपोर्ट के आंकड़े लेते हैं. यह रिपोर्ट 2023 की है. इसके मुताबिक आंध्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में उत्‍तरी राज्‍यों की तुलना में बुजुर्गों की आबादी ज्‍यादा है. 2021 से 2036 के बीच दक्षिण के इन राज्‍यों में बुजुर्गों की आबादी बढ़ने की दर भी उत्‍तरी राज्‍यों की तुलना में अधिक रहने का अनुमान लगाया गया है. राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनुमान लगाया है कि साल 2050 तक देश की 20 फीसदी आबादी 60 साल से ज्‍यादा की होगी, लेकिन दक्ष‍िणी राज्‍यों में 2036 तक ही 17 से 21 फीसदी के बीच पहुंच जाएगी. उम्र इंडेक्‍स के पैमाने पर भी दक्ष‍िणी राज्‍यों की हालत ज्‍यादा खराब बताई गई है. साल 2036 तक दक्षिणी राज्‍यों में कुल सौ बच्‍चों पर 61.7 बुजुर्ग (60 साल से ऊपर वाले) रहेंगे. कामकाजी आबादी (15 से 59 साल) पर निर्भर रहने वाले बुजुर्गों के मामले में भी दक्ष‍िण पर ज्‍यादा दबाव रहेगा. साल 2036 तक जहां दक्ष‍िण के राज्‍यों में प्रत्‍येक सौ कामकाजी आबादी पर 19.4 बुजुर्ग निर्भर रहेंगे, वहीं उत्‍तरी राज्‍यों में 15.2 और मध्‍य भारत के राज्‍यों में 13.3 बुजुर्ग निर्भर रहेंगे. अब समझते हैं इस समस्‍या का राजनीतिक नुकसान क्‍या हो सकता है? देश में जनगणना के बाद परिसीमन होना है. मतलब संसदीय सीटों की सीमा जनसंख्‍या के हिसाब से नए सिरे से तय करना है. दक्षिण के राज्‍यों में मौजूदा जन्‍म दर ही बनी रही तो वहां लोकसभा की दो दर्जन सीटें कम हो जाएंगी. यह भी जान लीजिए कि कहां कितनी सीटें कम हो जाएंगी. राज्‍य                   मौजूदा जन्‍म दर             लोकसभा की सीटें बचेंगी आंध्र प्रदेश                   1.5                               25 से 20 कर्नाटक                      1.6                               28 से 26 केरल                          1.5                               20 से 14 तमिलनाडु                   1.5                               39 से 30 तेलंगाना                      1.5                               17 से 15 इस तरह से देखा जाए, तो राष्‍ट्रीय औसत 2.0 का है, जबकि कुल सीटें 129 से घटकर 105 रह जाएंगी. इन आंकड़ों से दक्ष‍िणी राज्‍यों की चिंता समझी जा सकती है. साथ ही, यह भी साफ है कि समस्‍या केवल दक्ष‍िणी राज्‍यों तक सीमित नहीं है. पूरे देश की है. लेकिन, क्‍या इस नुकसान की भरपाई के लिए जनसंख्‍या बढ़ाना सही उपाय है? नहीं है. क्‍यों नहीं है? क्‍योंकि पहली बात तो जनसंख्‍या बढ़ाने की अपील जहां कहीं भी हुई है, बेअसर ही दिखी है. लोग जिन परिस्‍थ‍ितियों के चलते कम बच्‍चे पैदा करने लग गए हैं, उन परिस्‍थ‍ितियों में बदलाव का यकीन आए बिना लोग ज्‍यादा बच्‍चा पैदा करने की सोच नहीं ला सकते. तो क्‍या हैं वे परिस्‍थ‍ितियां जिनके चलते लोग ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की बात सोचना छोड़ रहे हैं? बच्‍चों को बड़ा कर बेहतर जिंदगी देने की दुश्‍वारियां. अच्‍छी पढ़ाई और बढ़ि‍या इलाज इतना महंगा हो गया है कि दो बच्‍चे पालने में भी अच्‍छे-अच्‍छे लोगों के पसीने छूट रहे हैं. 80 करोड़ लोग पेट भरने के लिए सरकार के दिए मुफ्त अनाज पर निर्भर हैं. देश की 40 फीसदी संपत्ति सिर्फ एक प्रतिशत अमीरों के पास है. बच्‍चे जब युवा होते हैं और काम की तलाश में निकलते हैं तो एड़ि‍यां घिस जाती हैं, फिर भी ढंग का काम मिल जाए इसकी गारंटी नहीं है. अंतरराष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और इंस्‍टीट्यूट ऑफ ह्यूमैन डेवलपमेंट (आईएचडी) की इंडिया एम्‍पलॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक 2022 में भारत में कुल बेरोजगारों में 83 फीसदी युवा थे. 2023-24 के आर्थ‍िक सर्वेक्षण में सरकार ने बताया है कि कॉलेज से निकलने वाले दो में से एक युवा इस काबिल ही नहीं है कि उसे नौकरी मिल सके. और, देश में युवाओ की आबादी 65 प्रतिशत है. सरकार का ही आंकड़ा है कि 2019 में ‘सैलरीड जॉब’ करने वाले 23.8 प्रतिशत थे. 2023 में 20.9 प्रतिशत रह गए. हालत यह है कि इनमें से ज्‍यादातर के पास अगर 50 साल के बाद नौकरी रह गई तो वे अपनी खुशनसीबी समझें. चंद्रबाबू नायडू 74 साल की उम्र में भी सीएम हैं, लेकिन आम लोगों को सरकार 58 की उम्र से ही रिटायर करना शुरू कर देती है. प्राइवेट कंपनियां तो 40 के बाद ही बाहर का रास्‍ता दिखाने लग जाती हैं. सरकार बताती है कि 2019 से 2023 के बीच अपना काम करने वाले (self employed) 52.1 प्रतिशत से 57.3 प्रतिशत हो गए, पर सवाल यह है कि जब बाकी के पास काम ही नहीं है तो इन अपना काम करने वालों का काम भी कहां से चलेगा? इन पर‍िस्‍थ‍ितियों में लोग दो से ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की कहां से सोचेंगे? फिर समस्‍या का हल क्‍या है? हल जनसंख्‍या के बजाय संसाधन बढ़ाना और सब तक पहुंचाना है. जनसंख्‍या प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्‍धता देखते हुए एक सीमा तक ही बढ़ाई जा सकती है. बुजुर्गों की संख्‍या बढ़ रही है तो उन्‍हें जहां तक संभव हो, ज्‍यादा समय तक उत्‍पादक प्रक्रियाओं में शामिल रखा जा सकता है. सैलरीड जॉब में बड़ी संख्‍या में लोग 70 साल की उम्र तक काम कर सकते हैं. भारत उन देशों में शामिल है जहां रिटायरमेंट की उम्र सबसे कम है. एक तो काम नहीं मिले और मिले तो जल्‍दी रिटायरमेंट हो जाए. इस व्‍यवस्‍था के बजाय ज्‍यादातर युवाओं को काम देने और कम उम्र में रिटायर नहीं करने की व्‍यवस्‍था अधिक कारगर साबित होगी. यह रास्‍ता ‘इंसेंटिव’ देकर ज्‍यादा बच्‍चे पैदा करने की तुलना में बहुत कठिन है, लेकिन समस्‍या के ठोस हल की ओर ले जाने वाला है. Tags: Andhra Pradesh, Chandrababu Naidu, MK Stalin, Tamil naduFIRST PUBLISHED : October 23, 2024, 17:12 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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