Chhath Puja: गोपालगंज में 50% कम रेट में बिक रहे बांस के बर्तन जानें वजह और कारीगरों की परेशानी
Chhath Puja: गोपालगंज में 50% कम रेट में बिक रहे बांस के बर्तन जानें वजह और कारीगरों की परेशानी
Chhath Puja 2022: बिहार के गोपालगंज में छठ पूजा के लिए इस बार सुपली 50 रुपए, चंगेला 100 रुपए और दौरा 200 रुपए तक में बिक रहा है. जबकि पिछले साल इसकी कीमत काफी ज्यादा थी. इस बार कम कीमत के चलते कामगारों की परेशानी बढ़ती जा रही है.
रिपोर्ट: धनंजय कुमार
गोपालगंज. दीपावली के बाद अब लोग छठ पूजा की तैयारी में जुट गए हैं. इस कारण पूजा में इस्तेमाल होने वाले बांस के बर्तनों की भी बिक्री शुरू हो गई है, लेकिन इस बार बांस से बनने वाले सामग्री के रेट 40 से 50 फीसदी कम हैं. इसके अलावा गोपालगंज जिले में इसे बनाने वाले कामगारों को बाहर से आने वाले सामान की कम कीमतों से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. इस कारण से यहां के कामगारों की परेशानी बढ़ गई है. लोगों को बांस की कीमत निकलना भी मुश्किल दिख रहा है.
गोपालगंज जिले के सदर प्रखंड के मानिकपुर गांव में बांसफोर समाज के 50 परिवार हैं, जो कि बांस के बर्तन बनाकर बेचते हैं. इन लोगों का कहना है कि गोपालगंज में छठ पूजा के लिए इस बार सुपली 50 रुपए, चंगेला 100 रुपए और दौरा 200 रुपए तक में बेच रहे हैं. जबकि पिछले साल सुपली 80 से 100 रुपए, चंगेला 150 से 200 और दौरा 300 से 350 रुपए तक में बिका था. सामान की कीमत में आई कमी के पीछे इसी समाज की गिरजा देवी दो कारण बताती हैं. वह कहती हैं कि एक तो मार्केट में पीतल का सुपली, प्लास्टिक का डलिया का प्रचलन बढ़ते जा रहा है. खासकर शहरी क्षेत्र में लोग यह भी देखते हैं कि छठ के बाद इन सुपली, चंगेला और दौरा का इस्लेमाल क्या होगा? ऊपर से बाहर से लोग ट्रक से माल लाकर शहर में बेच रहे हैं. बड़े पैमाने पर बनाने के कारण उन लोगों का सामान सस्ता होता है. इस कारण हम लोगों के बनाए सामान के खरीदार नहीं मिल रहे हैं. हम लोगों का रोजगार मरते जा रहा है. इतनी मेहनत करने के बाद भी मजदूरी के हिसाब से बनाए गए सामान का रेट नहीं मिल पा रहा है. घाटा ही लग रहा है.
दूसरे जिलों से खरीदकर लाना पड़ता है बांस
इन लोगों का कहना है कि बेतिया, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, कसेया, कुशीनगर सहित अन्य जिलों से बांस खरीदकर लाना पड़ता है. एक बांस की कीमत और उसे लेकर आने तक में 200 से 250 रुपए तक का खर्च आ जाता है. फिर उस बांस को काट कर उसे पतला-पतला छीलते हैं. 4 से 5 दिन सुखाने के बाद फिर सुपली, चंगेला, दौरा आदि की बुनाई करते हैं. तैयार हो जाने के बाद उसे रंगा जाता है. इसे बनाने में कई तरह की परेशानी होती है. रमई बांसफोर बताते हैं कि बांस काटने या छीलते वक्त कई बार हाथ भी कट जाता है. फिर भी मेहनत की मजदूरी नहीं निकल पा रही है.
बारिश के पहले से करने लगते हैं तैयारीरवीश
बांसफोर बताते हैं कि हम लोगों को दूर-दूर से बांस खरीदकर लाना पड़ता है. छठ के बर्तनों को बनाने के लिए हम लोग बारिश से पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं, क्योंकि बारिश के दौरान बांस में पौधे निकलते हैं. इस कारण बारिश के समय में कोई भी किसान आसानी से बांस बेचना नहीं चाहते हैं. इतनी परेशानी झेलने के बाद भी अगर हम लोग कम दाम पर बर्तन बेचेंगे तो घाटा ही लगना है.
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Tags: Bihar Chhath Puja, Chhath Puja, Gopalganj newsFIRST PUBLISHED : October 26, 2022, 10:30 IST