जेल में बंद कैदी लड़ सकता है चुनाव पर नहीं डाल सकता वोट ऐसा क्यों

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक जेल में बंद कैदी चुनाव लड़ सकता है, पर वह अपना वोट नहीं डाल सकता है. ऐसा प्रावधान क्यों है, क्या हैं नियम? आइये बताते हैं...

जेल में बंद कैदी लड़ सकता है चुनाव पर नहीं डाल सकता वोट ऐसा क्यों
जेल में बंद खालिस्तान समर्थक और ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह ने संकेत दिया है कि वह पंजाब की खदूर साहिब सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकता है. चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक जेल में बंद कैदी चुनाव लड़ सकता है, पर वह अपना वोट नहीं डाल सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 जैल में बंद कैदियों के चुनाव लड़ने से लेकर वोट डालने को लेकर प्रावधान किये गए हैं. आइये समझते हैं… सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सर्वोच्च संवैधानिक आधार माना गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कहता रहा है कि चुनाव करने (Right to Elect) और चुने जाने के अधिकार (Right to be Elected) को समान दर्जा प्राप्त नहीं है. उदाहरण के लिए, 2006 में कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ के मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि वोट देने का अधिकार (या चुनाव का अधिकार) “एक सरल और वैधानिक अधिकार” है. इसका मतलब यह है कि मतदान मौलिक अधिकार नहीं है और इसे निरस्त किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने ‘चुने जाने के अधिकार’ (Right to be Elected) के लिए भी यही बात कही और फैसला दिया कि संसद द्वारा अधिनियमित कानून इन दोनों वैधानिक अधिकारों को रेगुलेट कर सकते हैं. Explainer: चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार की मौत हुई तो क्या करता है आयोग? क्या है नियम जेल में रहते चुनाव लड़ने पर क्या नियम? जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में जेल में बंद कैदियों के चुनाव लड़ने से जुड़े प्रावधान हैं. ऐसे अपराधों की एक विस्तृत सूची भी है, जिसमें दोषी ठहराए जाने पर संबंधित कैदी को चुनाव के लिए अयोग्य करार दिया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर किसी व्यक्ति को प्रावधान में दी गई विस्तृत सूची में से किसी भी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है तो उस स्थिति में उसे सजा की तारीख से संसद या राज्य विधानसभाओं का चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और रिहाई की तारीख से अगले छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य रहेंगे. दोष साबित होने पर ही अयोग्य लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कोई भी कैदी चुनाव लड़ने से अयोग्य तभी होगा, जब उसे अदालत ने दोषी ठहरा दिया हो. अगर कैदी पर आरोप साबित नहीं हुआ है या दोषी साबित नहीं हुआ है, तो वह जेल में रहते हुए चुनाव लड़ सकता है. ECI के पास क्या अधिकार? हालांकि चुनाव आयोग (ECI) को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11 के तहत अयोग्यता की अवधि को “हटाने” या “कम” करने का अधिकार है. 2019 में, ECI ने इस शक्ति का उपयोग सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की अयोग्यता की अवधि को कम करने के लिए किया, जिन्हें 2018 में एक साल की जेल की सजा के बाद रिहा कर दिया गया था. बाद में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के नेता ने पोकलोक कामरंग विधानसभा सीट के लिए हुआ उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की. धनंजय सिंह का केस एक अन्य स्थिति जहां एक अयोग्य सांसद या विधायक भी चुनाव लड़ सकता है, वह तब है जब उच्च न्यायालय में अपील पर उनकी सजा पर रोक लगा दी जाती है. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक बार किसी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी जाती है तो “दोषी ठहराए जाने के परिणामस्वरूप लागू होने वाली अयोग्यता लागू नहीं हो सकती या प्रभावी नहीं रह सकती”. जैसे अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट, उत्तर प्रदेश के जौनपुर से पूर्व सांसद धनंजय सिंह की सजा पर रोक लगा देता, तो वे चुनाव लड़ पाते. ये भी पढ़ें: EVM से पहली बार हुआ चुनाव तो सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था रद्द, जानिये तब क्या कहा था बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद धनंजय सिंह (Dhananjay Singh) को जिला अदालत ने एक अपहरण केस में दोषी ठहराया है और सात साल की सजा सुनाई है. धनंजय सिंह ने इस सजा पर रोक लगाने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, ताकि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सके. अदालत ने उन्हें जमानत दे दी, लेकिन यह कहते हुए सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया कि “राजनीति में शुचिता समय की मांग है”. जेल में रहते क्यों नहीं डाल सकते वोट? जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 धारा 62 के उप-खंड (5) में मतदान के अधिकार यानी राइट टू वोट से जुड़े प्रावधान हैं. इसमें साफ कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति “कोई भी व्यक्ति जेल में रहते या पुलिस हिरासत में रहते किसी भी चुनाव में मतदान नहीं करेगा.’ यह प्रावधान हर उस व्यक्ति को अपना वोट डालने से रोकता है, जिसके खिलाफ आपराधिक आरोप लगाए गए हैं. व्यक्ति तभी वोट डाल सकता है जब उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया हो या बरी कर दिया गया हो. हां, अगर कोई व्यक्ति preventive detention में है, तो उसे वोट देने का हक मिलता है. धारा 62 के उप-खंड (5) को साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने ‘अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ’ के मामले में धारा 62(5) को दी गई चुनौती को खारिज कर दी थी. Tags: 2024 Loksabha Election, Dhananjay Singh, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 5, 2024, 16:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed