19 साल की नेत्रहीन हन्ना CBSE 12वीं में स्पेशल कैटेगरी में किया टॉप भेदभाव में बीता बचपन
19 साल की नेत्रहीन हन्ना CBSE 12वीं में स्पेशल कैटेगरी में किया टॉप भेदभाव में बीता बचपन
हन्ना को स्कूल में समझते थे भूत... नहीं मिलता था बाकी बच्चों की तरह अवसर. पर अपनी मेहनत और माता-पिता की सहायता से किया सीबीएसई क्लास 12 की परीक्षा में टॉप साथ ही अमेरिकी यूनिवर्सिटी में मिला 100% स्कॉलरशिप के साथ एडमिशन.
वह कहते हैं ना कि ख्वाब देखने और उन्हें पूरा करने का हक कुदरत ने सबको दिया है. बस अगर दिल में जज़्बा और हिम्मत हो तो कोई कमज़ोरी, कोई सामाजिक बेड़ी या खुद की दिव्यांगता भी आप को नहीं रोक सकती है. केरल की रहने वाली 19 वर्षीय हन्ना ऐलिस साइमन की कहानी भी ऐसी ही है. बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद हौसला इतना बुलंद था कि आज सारी दुनिया इनके हौसलों की मुरीद हो गई है.
हन्ना ऐलिस साइमन ने इस साल बारवीं की परीक्षा में स्पेशल केटेगरी के अंतर्गत प्रथम स्थान प्राप्त किया है. उन्होंने ‘ह्यूमैनिटीज़’ स्ट्रीम में 500 में से 496 अंक प्राप्त किए हैं. उनकी उपलब्धियों की सूची की तो बस ये एक शुरुआत है क्योंकि इसी के साथ उन्होंने अमेरिकी यूनिवर्सिटी नोट्रेडेम में 100% स्कालर्शिप के साथ दाखिला हासिल किया है.
न्यूज 18 ने इस अवसर पर बातचीत की हन्ना ऐलिस साइमन से और जानी उनके संघर्षों की कहानी. वह बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही गाने, लिखने और पढ़ने का बहुत शौक रहा है.
हन्ना ने अपनी पढ़ाई किसी स्पेशल स्कूल की बजाय एक सामान्य स्कूल से पूरी की है. इसके पीछे की वजह वह बताती हैं कि उनके माता-पिता को हमेशा लगता था की एक आम स्कूल में उन्हें व्यापक अवसर प्राप्त होंगे जबकि स्पेशल स्कूलों में बहुत सीमित अवसर ही प्राप्त होंगे और एक बहुत सुरक्षित माहौल रहेगा. वह लोग नहीं चाहते थे की उनकी बेटी अपने जीवन के इतने महत्वपूर्ण साल खुदको सीमित करके रखे. वह बताती हैं कि उनके माता-पिता का मानना था कि किसी सीमित स्कूल से पढ़कर वह जीवन के दस- बारह साल तो सुरक्षित माहौल में रह सकती हैं पर उसके बाद जब उन्हें असली जीवन की कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा तो उन्हें बहुत मुश्किलों से गुज़रना पड़ेगा. इसलिए वह चाहते थे कि हन्ना बचपन से ही मुश्किलों का सामना करके खुद को इस काबिल बनालें की उन्हें ज़िंदगी में कभी किसी के सहारे की ज़रूरत ना पड़े.
आसान नहीं था सामान्य स्कूल में दाखिला-
वह कहती हैं कि सामान्य स्कूल में उनका दाखिला कराना उनके मत-पिता के लिए बहुत ही मुश्किल था. कोई भी स्कूल उन्हें दाखिला नहीं देना चाहता था क्योंकि कोई भी स्कूल एक दिव्यांग बच्चे को दाखिला देने का जोखिम .नहीं उठान चाहता था. एक दिव्यांग बच्चे की शैक्षणिक और दैनिक ज़रूरतें एक साधारण बच्चे से काफ़ी अलग होती हैं और किसी भी स्कूल के पास उन ज़रूरतों को पूरा करने का साधन उपलब्ध नहीं था. कई सारे स्कूलों के प्रिन्सपल ने तो उनके माता-पिता से मुखातिब होने से ही साफ़ इंकार कर दिया था. ऐसे कई सारे अनुभव थे जिन्होंने उनके माता पिता का हौसला तोड़ दिया था पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार हन्ना को दो स्कूलों में दाखिला मिल ही गया.
स्कूल में हुई थीं भेद-भाव का शिकार
हन्ना बताती हैं कि दाखिला मिलने के बाद उन्हें दैनिक आधार पर भेद-भाव का शिकार होना पड़ता था. उनके स्कूल के टीचर और साथियों ने उनके स्कूल में उनके जैसे बच्चे को कभी नहीं देखा था. इसलिए उन्हें हन्ना औरों से काफ़ी अलग लगती थीं. उनके मुताबिक उनके साथी उनके नेत्रहीन होने के कारण उन्हें ‘भूत’ समझते थे और कोई भी उनके साथ खेलना नहीं चाहता था और उन्हें हमेशा स्कूल में अलग-थलग कर दिया जाता था. टीचर भी उनके साथ अलग व्यवहार करते थे क्योंकि वह अन्य लोगों की तरह देखकर नहीं सीख पाती थीं.
अन्य बच्चों की तरह नहीं मिलते थे अवसर
वह कहती हैं कि उन्हें बचपन से गाने का बहुत शौक रहा है और वह बहुत अच्छा गाना भी गाती थीं पर एक वक़्त ऐसा आया की वह गाने से दूर भागने लगीं थीं. इसके पीछे का कारण बताते हुए वह कहती हैं कि उनके स्कूल में उनकी पहचान केवल एक अच्छा गाने वाली लड़की की बन गई थी जबकि उनके अन्य साथियों को डांस और ड्रामा में भाग लेने का भी अवसर मिलता था. उनके टीचर ने एक बार उनसे डांस के ऑडिशन का मौका भी यह कहकर छीन लिया कि बाकी बच्चे तो देखकर सीख लेंगे पर हन्ना को सीखाना ना मुमकिन है.
गणित सीखना था सबसे मुश्किल –
उनके मुताबिक उनके स्कूली दिनों में सबसे ज़्यादा मुश्किल उनके लिए गणित था क्योंकि टीचर बोर्ड पर लिख कर सीखाते पर उनके लिए ऐसे सीखना मुमकिन नहीं था. उनको गणित सीखाने का पूरा श्रेय उनकी ट्यूइशन टीचर को जाता है जो उनका हाथ पकड़ कर उनको सीखाती थीं.
स्कूली किताबों को ब्रेल में रूपांतरित करती थीं उनकी मां –
हन्ना के मुताबिक कक्षा 6 तक उनकी मां सारी स्कूली किताबों को ब्रेल में रूपांतरित करती थीं और उसके बाद ही हन्ना पढ़ पाती थीं. कक्षा 6 के बाद उनकी सारी किताबें ऑनलाइन उपलब्ध थीं जिसे एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से वह ब्रेल में रूपांतरित करती थीं. उन्होंने इस सॉफ्टवेयर की मदद से ही अपनी पढ़ाई पूरी की है.
कैसे हुआ अमेरिकी यूनिवर्सिटी में दाखिला?
वह बताती हैं कि उन्होंने अपनी कन्सलटेंट की मदद से बीस अमेरिकी यूनिवर्सिटी का प्रवेश आवेदन भरा था. पर उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम में सौ प्रतिशत स्कालर्शिप के साथ दाखिला हासिल हुआ है.
क्यों किया अमेरिकी यूनिवर्सिटी का चयन ?
उनके मुताबिक अमेरिकी यूनिवर्सिटी का चयन करने का सबसे बड़ा कारण है कि पश्चिमी देशों में दिव्यांग लोगों के लिए वह सारी सुविधायें उपलब्ध हैं जो अभी तक भारत की किसी भी सामान्य यूनिवर्सिटी में नहीं है.
वह बताती हैं की उस यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने से पूर्व ही उन्हें वहां से सारे प्रकार की सुविधायें उपलब्ध कराई गईं. यूनिवर्सिटी द्वारा दो अन्य नेत्रहीन छात्रों से उनका संपर्क कराया गया और साथ ही केेम्पस के बीचों-बीच उनके रहने की व्यवस्था कर दी गई है ताकि उन्हें क्लास जाने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत ना आए.
बनना चाहती हैं मनोविज्ञानी और लेखक
हन्ना ने यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम में तीन विषयों का चयन किया है जिसमें मनोविज्ञान और क्रिएटिव राइटिंग भी है. वह अपनी चार साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोविज्ञानी और लेखक बनना चाहती हैं. वह बताती हैं कि वह लोगों को सकारात्मक सोच के लिए प्रेरित करने वाली किताबें लिखना चाहती हैं और विश्व में सकरात्मकता फ़ैलाना चाहती हैं.
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Tags: News 18, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : August 11, 2022, 16:19 IST