IAS बनाना चाहते थे घरवाले इयररिंग के शौक के चलते छोड़ी जॉब आज घरवालों को है गर्व
IAS बनाना चाहते थे घरवाले इयररिंग के शौक के चलते छोड़ी जॉब आज घरवालों को है गर्व
इंजीनियरिंग छोड़ इयररिंग्स के शौक के चलते बनी सोशल आन्ट्रप्रनर... आज देती है कई महिलाओं और युवाओं को रोजगार. निन्ना को नवाज़ा गया ‘प्रधान मंत्री युवा योजना लीडर फ्रॉम हिमालयन स्टेट’ के खिताब से.
देश के प्रसिद्ध बिजनेस टाइकून आनंद महिंद्रा ने एक बार कहा था कि देश में सोशल उद्यमियों(आन्ट्रप्रन्योर) को बढ़ावा देने की ज़रूरत है ना की सिर्फ बड़े-बड़े यूनिकॉर्न को.
ऐसी ही एक सोशल आन्ट्रप्रन्योर हैं अरुणाचल प्रदेश की रहने वाली निन्ना लेगो. निन्ना पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं पर अब वो अपने स्टार्ट-उप मैकनॉक (Macnok) के द्वारा अपने राज्य की कई सारी औरतों और युवाओं के रोज़गार का ज़रिया बन गई हैं.
न्यूज 18 से बातचीत के दौरान निन्ना लेगो बताती हैं कि मैकनॉक एक आकस्मिक वेंचर था और उन्होंने कभी इसकी कल्पना नहीं की थी. उन्होंने डॉ एमजीआर यूनिवर्सिटी,चेन्नई से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और चार सालों तक बतौर सिविल इंजीनियर काम भी किया है. उसके बाद 2017 में उन्होंने दोईमुख स्थित राजीव गांधी यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था.
वह कहती हैं कि वह बचपन से ही कान बालियों (इयर रिंगस) को लेकर बहुत उत्साहित रही हैं. उन्हें हमेशा से अलग-अलग प्रकार के इयररिंग्स पहने का बहुत शौक था और उन्होंने अपने बचपन में मनका (beads) और टैलरिंग का काम अपनी मां से सिखा है. अपने एमबीए के दौरान वह अपने लिए खुद इयररिंग्स बनाती थीं और धीरे- धीरे फिर उनके दोस्तों का ध्यान उनकी इयररिंग्स की तरफ़ आकर्षित होने लगा और लोगों ने उनके डिजाइन को काफ़ी सराहा. इस तरह शुरुआत हुई अन्य लोगों के लिए भी कई सारे इयररिंग्स बनाने की. पहले- पहले केवल उनके दो- तीन दोस्त उनसे बालियां खरीदते और फिर सोशल मीडिया पर जब उन्होंने अपने डिजाइन डालने शुरू किए तो उन्हें बहुत सारे इयररिंगस के ऑर्डर मिलने लगे.
यहीं से शुरू हुआ मैकनॉक का सफ़र. पहले मैकनॉक में केवल authentic ट्राइबल डिजाइन इयररिंगस ही उपलब्ध थीं फिर हमने माला, ब्रेसलेट जैसी और भी चीजें डिजाइन करनी और बेचनी शुरू की.
नाम के पीछे का दिलचस्प किस्सा–
निन्ना बताती हैं कि ज़्यादातर लोगों को मैकनॉक का मतलब ‘मेक इट एण्ड नॉक इट’ ही मालूम है. पर इसके नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है. एक आकस्मिक वेंचर होने के कारण उन्होंने पहले से कोई नाम नहीं सोचा था. इसलिए उन्होंने अपने करीबी लोगों के नाम के पहले अक्षरों को मिला कर जन्म दिया ‘मैकनॉक’ को .
नौकरी के दौरान मिलीं कई सारे बेरोज़गार महिलाओं और युवाओं से–
दो सरकारी प्रोजेक्ट्स के तहत काम करते हुए उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के गांवों का निरीक्षण किया था जिस दौरान वह कई सारे लोगों से मिलीं और उनका सामना लोगों की बेरोज़गारी और खराब जीवन स्तर से हुआ. उनसे मुखातिब होने पर ज्ञात हुआ की ज़्यादातर महिलायें बेरोज़गार हैं. जो महिलायें सेल्फ हेल्प समूह का हिस्सा हैं भी उनको भी ज़्यादा अवसर नहीं मिल पा रहे हैं.
फिर जब उन्होंने मैकनॉक को बड़ा करने का सोचा तो वह जुड़ीं कई सारे सेल्फ हेल्प समूह से.
आज उनके इस स्टार्ट-अप से जुड़े हैं 809 सेल्फ हेल्प समूह और हर समूह में हैं दस से तेरह महिलायें.
उनके मुताबिक उनके इस माध्यम से हर महिला महीने के औसतन पांच से दस हज़ार कमा लेती है.
मैकनॉक को बनाना चाहती हैं ‘एम्प्लोयी फ़्रेंडली’
निन्ना कहती हैं कि वह मैकनॉक के माहौल को बिल्कुल भी औपचारिक नहीं बनाना चाहती हैं. गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों से प्रेरणा लेकर वो इसे ‘एम्प्लोयी फ़्रेंडली’ बनाना चाहती हैं. वह कहती हैं की उनके यहां किसी को भी काम करने के लिए बाधित नहीं किया जाता है सब अपनी मर्ज़ी और सहूलियत के मुताबिक काम करते हैं और उसी हिसाब से पैसे लेते हैं.
करतीं हैं हर सुझाव का स्वागत
उनके मुताबिक ‘मैकनॉक’ सिर्फ उनकी कंपनी नहीं है बल्कि उनके साथ काम करने वाले हर एक व्यक्ति की कंपनी है. इसलिए वह उनके हर साथी के सुझाव का स्वागत करती हैं. मैकनॉक में सिर्फ उनकी रेसपी ही नहीं बल्कि उनके साथियों की रेसपी के जैम और आचार भी उपलब्ध हैं.
‘मैकनॉक’ के अचार की खासियत
निन्ना का मानना है कि ‘मैकनॉक’ के अचार की खासियत है कि उनके अचार और जाम में कोई भी बाहर की चीज़ इस्तमाल नहीं की जाती है. सारे इस्तमाल किए गए मसाले केवल अरुणाचल प्रदेश में ही मिलते हैं और सभी चीजें वो लोग पूरे दिल से बनाते हैं.
आईएएस बनाना चाहते थे परिवार वाले –
वह बताती हैं कि उनके परिवार वाले चाहते थे कि वह आईएएस ऑफिसर बनें. एमबीए के बाद वह एक साल तक दिल्ली में आईएएस की तैयारी भी कर रही थीं.पर उस दौरान भी उन्होंने अपने काम को बंद नहीं होने दिया और वह हर शनिवार को पूरे दिन केवल इयररिंगस बनाती थीं. आईएएस की तैयारी में मन नहीं लगने पर वह वापस अपने घर आ गईं और फिर से अपना काम शुरू कर दिया .
‘मैकनॉक’ के विस्तार का विचार
वह अरुणाचल प्रदेश के स्वाद और कल्चर को देश के कोने-कोने में पहुंचाना चाहती हैं. इसलिए जल्दी ही अपनी वेबसाईट भी लॉन्च करने वाली हैं. इसके साथ ही वह ‘मैकनॉक’ के द्वारा सस्टैनबल स्टाइल को बढ़ावा देना चाहती हैं. पहले केवल कान की बालियाँ बनाने वाली ‘मैकनॉक’ आज अचार से लेकर जाम तक और ड्रीमकैचर से लेकर मोमबत्ती तक सब बनाती है.
किया है कई बड़े डिज़ाइनर्स के साथ काम
वह कहती हैं कि ‘मैकनॉक’ ने कई सारे बड़े डिज़ाइनर्स के लिए बतौर ‘गुमनाम डिज़ाइनर’ काम किया है और उनके कई सारे डिजाइन बड़े इवेंट्स में भी जा चुके हैं.
सोशल आन्ट्रप्रनर्शिप को मिली पहचान
निन्ना को ‘प्रधान मंत्री युवा योजना लीडर फ्रॉम हिमालयन स्टेट’ के खिताब से नवाज़ा गया है. उन्हें उनके राज्य के कॉलेजों में बतौर चीफ गेस्ट भी बुलाया जाता है. वह कहती हैं कि भले ही उनके माता-पिता पहले उनके काम से खुश नहीं थे लेकिन अब उनको अपनी बेटी पर गर्व है और निन्ना के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है.
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