काई से बना डाला देश का पहला 3जी ‘बायो फ्यूल’ इंजीनियर ने किया कमाल

विशाल प्रसाद गुप्ता को अनुसंधान में लगा चार साल का वक़्त. काई की खेती कर बनाते हैं बायो फ्यूल. केरल सरकार के साथ मिलकर करेंगे इसे और विकसित. उन्होंने इसके अलावा बनाया है सुपर फ्यूल.

काई से बना डाला देश का पहला 3जी ‘बायो फ्यूल’ इंजीनियर ने किया कमाल
झारखंड के विशाल प्रसाद गुप्ता पिछले कुछ वक़्त से अपने इनोवेशन की वजह से काफ़ी सुर्खियों में हैं. उन्होंने विकसित किया है देश का पहला 3जी ईंधन. उनकी यह खोज स्वच्छ ईंधन के क्षेत्र में एक प्रगतिशील कदम है. न्यूज 18 से बातचीत के दौरान वह विस्तार से बताते हैं अपने अनुसंधान और इनोवेशन के बारे में. पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर रहे विशाल प्रसाद गुप्ता ने बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा से अपनी पढ़ाई पूरी की है. इसके बाद 15 सालों तक उन्होंने इंडियन ऑयल के साथ काम किया जहां वह इंडियन ऑयल के मार्केटिंग और डिस्ट्रब्यूशन का काम संभालते थे. वो प्रोजेक्ट 2015 में पूरा हुआ, जिसके बाद विशाल ने यह काम छोड़ दिया. जानिए क्या है काई से बना ‘बायो फ्यूल’? विशाल बताते हैं कि यह काई से बना बायो फ्यूल देश का पहला 3जी यानी थर्ड जेनरेशन ईंधन है. इसको बनाने के लिए जल निकायों पर जमी हुई काई का प्रयोग किया जाता है. ज़्यादा मात्रा में ईंधन बनाने के लिए काई की फसल उगाई जाती है. इसके साथ ही वह कहते हैं कि इससे पहले ऑर्गेनिक अपशिष्ट का प्रयोग करके ईंधन बनाया जा चुका है लेकिन वह सारे ईंधन 1जी और 2 जी थे. रांची नगर निगम ने सराहा उनके आविष्कार को जब उन्होंने अपने इस आविष्कार को रांची नगर निगम के समक्ष प्रस्तुत किया तो सभी ने उनके इस परिवर्तनात्मक प्रगतिशील अनुसंधान की सराहना की. लेकिन अगर कोई सबसे ज़्यादा उनकी प्रस्तुति से प्रभावित हुआ था तो वह थे नगर निगम कमिश्नर मुकेश कुमार. मुकेश कुमार ने विशाल के इस आविष्कार को ना सिर्फ सराहा बल्कि इसे विकसित करने में उनकी हर मुमकिन मदद की. रांची नगर निगम ने उनके इस आविष्कार के बारे में प्रेस रिलीज जारी कर सबको इसके बारे में सूचित भी किया. केरल सरकार ने किया संपर्क अखबारों के माध्यम से जब इस आविष्कार की खबर केरल सरकार तक पहुंची तो केरल सरकार ने रांची नगर निगम के ज़रिए विशाल से संपर्क किया. केरल को जल संसाधनों और जल निकायों का प्राकृतिक वरदान प्राप्त है. इस राज्य में कई सारे जल संसाधन हैं, इसलिए केरल सरकार इस तकनीक द्वारा अपने जल निकायों का उचित उपयोग करना चाहती है. केरल सरकार द्वारा अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए K-DISC (केरल डेवलपमेंट एंड इनोवेशन स्ट्रेटेजिक काउंसिल) का गठन किया गया है. इस काउंसिल ने विशाल को प्रस्तुतीकरण के लिए आमंत्रित किया. 6-7 स्तर की प्रस्तुतीकरण और दो तीन मुलाकातों के बाद केरल सरकार ने इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दे दी. अब वह केरल सरकार के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम करने वाले हैं. झारखंड सरकार ने नहीं दिखाई कोई रुचि वह कहते हैं कि उन्होंने झारखंड सरकार को पत्र लिखकर अपने इस आविष्कार के बारे में सूचित किया था पर उनकी तरफ से इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई. उनके मुताबिक झारखंड के पास भी अनेक जल संसाधन हैं जहां काई की उपज हो सकती है. काई से बनाया गया यह बायो फ्यूल एक स्वच्छ ईंधन तो है, साथ ही यह पर्यावरण संरक्षण में भी कारगर है. जल निकायों पर जमी हुई काई की परत के कारण जल भूमि के भीतर नहीं रिसता है और इस कारणवश भूमिगत जल का स्तर घटता जाता है. इस काई की परत हटाने से घटे हुए भूमिगत जल को बहाल करने में भी मदद मिलती है. कैसे किया अनुसंधान? वह बताते हैं कि अनुसंधान के कामों के लिए उन्होंने कृषि कॉलेज की लैब और उपकरणों का प्रयोग किया. जब उन्होंने अपने विचार कॉलेज के प्रोफेसर के साथ साझा किए तो उन्होंने हर प्रकार की सहायता के लिए तत्पर रहने का वादा किया. उन्होंने कहा कि अगर यह बायो फ्यूल यहां रांची में विकसित होता है तो ये रांची के लिए और इस कॉलेज के लिए गर्व की बात होगी. रिसर्च में लगे चार साल इस 3जी बायो फ्यूल के अनुसंधान की शुरुआत उन्होंने 2015 में की थी और अनुसंधान पूर्ण करके इसे विकसित करने में उन्हें चार साल का वक़्त लगा. प्रारंभिक चरण से लेकर अंतिम चरण तक उनके अनुसंधान और ईंधन विकसित करने में कुल साठ से सत्तर लाख रुपये का खर्च आया है. दिसंबर 2019 में यह ईंधन परीक्षण और मान्यता के बाद पूरी तरह से तैयार हुआ. विशाल बताते है कि ना सिर्फ यह ईंधन स्वच्छ है बल्कि किफ़ायती भी है. इसकी मार्केट में कीमत 27-30 रुपये प्रति लीटर होगी. उन्होंने एक पुराने 1जी प्लांट को अपग्रेड करके उसी को 3जी प्लांट बनाया और वहीं बायो फ्यूल का उत्पादन किया. उनके इस प्लांट की उत्पादन क्षमता तीन लाख लीटर की है. उनके मुताबिक उनके पास जितनी काई की उपज है उससे 250 मिलियन टन बायो फ्यूल का उत्पादन हो सकता है. इस फ्यूल से कैसे चलेंगी गाड़ियां? विशाल के मुताबिक वर्तमान में मार्केट में मौजूद गाड़ियां उनके बनाए बायो फ्यूल से चल सकती हैं. पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों के लिए अलग प्रकार का फ्यूल इस्तेमाल होगा वहीं डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों के लिए अलग प्रकार का. इतना ही नहीं बल्कि इस बायो फ्यूल का प्रयोग भारी वाहनों में भी किया जा सकता है. कर रहे हैं अन्य प्रोजेक्ट पर काम वह बताते हैं कि उन्होंने एक सुपर फ्यूल भी विकसित किया है. यह एक 4जी यानी कि फोर्थ जेनरेशन फ्यूल है. अभी जैसे पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों के लिए अलग-अलग प्रकार का बायो फ्यूल चाहिए लेकिन सुपर फ्यूल के साथ ऐसा नहीं है. इस एक सुपर फ्यूल से सारी गाड़ियां चल सकेंगी. इसे विकसित करने में उन्हें मात्र 6 महीने का समय लगा है. वह भारत सरकार के साथ मिलकर इस सुपर फ्यूल को विकसित करेंगे, जिसके लिए उन्होंने पहले से काम शुरू भी कर दिया है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Environment news, up24x7news.com Hindi Originals, Science News TodayFIRST PUBLISHED : July 29, 2022, 10:07 IST