प्लास्टिक का विकल्प हो तो ऐसा! पुनीत ने 6 साल में अपने प्रयोग से दुनिया को दिखाई नई राह

आटावेयर के बर्तनों को गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का और अन्य अनाज से बनाया जाता है. इन सब अनाज में गुड़ मिलाकर बर्तनों को आकार दिया जाता है. गुड़ से बांधे जाते हैं बर्तन. इसमें पानी या तेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

प्लास्टिक का विकल्प हो तो ऐसा! पुनीत ने 6 साल में अपने प्रयोग से दुनिया को दिखाई नई राह
भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई, 2022 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने के बाद प्लास्टिक कटलरी का उपयोग भी बंद हो चुका है. प्लास्टिक कप से लेकर प्लास्टिक की चम्मच और प्लेट के हम इतने आदी हैं कि प्रतिबंध लगते ही दुकानदार से लेकर ग्राहकों तक सबके जीवन में उथल-पुथल मच गई. लेकिन दिल्ली के पुनीत दत्ता की आटावेयर बायोडिग्रेडेबल ने इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है. उनका यह नवाचार प्लास्टिक के नए विकल्प के रूप में उभरता हुआ नज़र आ रहा है. न्यूज 18 से बात करते हुए आटावेयर के सह संस्थापक पुनीत दत्ता बताते हैं, “मैं दिल्ली से वृंदावन जा रहा था तभी मुझे पानी पर कुछ तैरता हुआ दिखा, जब मैंने पास जाकर देखा तो वो थर्मोकोल का एक बड़ा सा टुकड़ा था. ये देखकर मुझे काफ़ी निराशा हुई और मैंने कुछ करने की ठानी. फिर एक दिन जब मैंने भंडारे में एक व्यक्ति को पूड़ी पर सब्ज़ी रखकर खाते हुए देखा तभी मुझे आटे के बर्तन का विचार आया.” पुनीत के मुताबिक उन्हें इस विचार पर अमल करने में छह साल का वक़्त लगा. 2013 में उन्होंने अनुसंधान का कार्य शुरू किया था और 15 अगस्त 2019 को जाकर आटावेयर रजिस्टर किया. एक यूनिट लगाने में 2.5 करोड़ रुपये का खर्चा पुनीत कहते हैं कि एक उत्पादन यूनिट में कम से कम 1.5 से 2.5 करोड़ रुपये का खर्च आता है. इस एक यूनिट में कप से लेकर स्ट्रॉ तक सब कुछ बनाया जा सकता है. उनके यूनिट में इस्तेमाल की गई सारी मशीनें भारत में ही बनाई गई हैं. सारी मशीनें उनकी जरूरतों के मुताबिक पुनीत की टीम ने खुद डिजाइन की थीं और सारी मशीनों का परीक्षण भी उन्हीं के फैक्ट्री में हुआ है. उनके अनुसंधान के मुताबिक इस निवेश की वापसी (ROI) में कम से कम 18 महीने और ज़्यादा से ज़्यादा 24 महीने का समय लगेगा. वह बताते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) ने प्रौद्योगिकी उद्विकास में एक अहम किरदार निभाया है. NIFTEM की लैब को कृषि और खाद्य से जुड़ी अनुसंधान के लिए कोई भी बहुत ही कम फीस देकर इस्तेमाल कर सकता है. पुनीत के मुताबिक उनके अनुसंधान में काफ़ी खर्च हुआ है क्योंकि उन्होंने कोई प्रशिक्षण लेकर अनुसंधान शुरू नहीं किया था. आटावेयर उनके हिट एंड ट्रायल का नतीजा है. कई अनाजों से बनाया जाता है आटावेयर के बर्तनों को पुनीत बताते हैं कि आटावेयर के बर्तनों को गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्का और अन्य अनाज से बनाया जाता है. इन सब अनाज में गुड़ मिलाकर बर्तनों को आकार दिया जाता है. गुड़ अनाज को एक साथ बांधने का काम करता है. इसमें पानी या तेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. अनाज से बना कप स्नैक्स के प्रतिस्थापन के रूप में कार्य करता है और इसमें काफ़ी मात्रा में कैल्शियम, प्रोटीन और खनिज पाया जाता है. इन अनाज से बनाये गये कप में पांच घंटों तक उबलती हुई चाय रखी जा सकती है. कप की कीमत उसके आकार के मुताबिक पांच से दस रुपये के बीच में निर्धारित की जाती है. कोविड का कारोबार पर असर हालांकि, पुनीत का कहना है कि हर चीज की तरह, COVID-19 के दौरान कारोबार में भी बदलाव आया. उन्होंने बताया, “जिन उत्पादों की हम खुदरा बिक्री कर रहे थे उनमें से कुछ अत्यधिक लोकप्रिय हो गए, जबकि कुछ ने अपना मार्केट खो दिया. कोई बड़ी सभा और पार्टियां नहीं होने के कारण, प्लेट और सर्ववेयर की मांग में भारी कमी आई. हमारे बहुत सारे थोक ऑर्डर रद्द हो गए और तभी हमने कप पर केंद्रित होने का फैसला किया.” चाय वाले ग्राहकों के सुझाव पर उन्होंने 2021 में ज़ायके वाले कप बनाने का निर्णय लिया है. ओडिशा सरकार से मिली काफ़ी सहायता पुनीत बताते हैं कि ओडिशा सरकार से उन्हें काफ़ी सहायता मिली है. ओडिशा के अंगुल ज़िले के नगरपालिका से भी काफ़ी सहायता मिली है. उनके मुताबिक भारत सरकार के भी कई अंगों से उन्हें मदद मिली है. वह कहते हैं कंपनी को रजिस्टर करने के बाद उन्हें नाबार्ड – राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) और कृषि मंत्रालय की तरफ से काफ़ी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है. NIFTEM के एक कार्यक्रम के तहत उन्हें प्रशिक्षण भी प्राप्त हुआ है. किसानों और महिलाओं के लिए रोज़गार वह बताते हैं कि 31 मार्च तक आटावेयर बायोडिग्रेडेबल ने 15 लाख का टर्न ओवर किया है और अब तक तीन से साढ़े तीन लाख कप बेचे हैं. पुनीत ने बताया कि उनकी कंपनी का उद्देश्य केवल प्लास्टिक के विकल्प के रूप में उभरना नहीं है बल्कि साथ ही किसानों और महिलाओं के लिए रोज़गार उत्पन्न करना भी है. अभी उनकी कंपनी में 57 लोग काम करते हैं और दिलचस्प बात ये है कि उनके सिवा उनके कंपनी में बाकी सभी महिला कर्मचारी हैं. पुनीत के मुताबिक उनकी कंपनी रियल टाइम डाटा पर शोध करते हुए अपने बर्तनों में नए-नए बदलाव लाने का प्रयास करती है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Eco Friendly, Environment news, Inspiring story, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : July 06, 2022, 15:32 IST