Noida Twin Tower: 10 सेकेंड में ढेर हो जाएगा ट्विन टॉवर क्या है इसका केरल कनेक्शन जानें
Noida Twin Tower: 10 सेकेंड में ढेर हो जाएगा ट्विन टॉवर क्या है इसका केरल कनेक्शन जानें
Noida Twin Tower News: इमारत को गिरने में तो महज 10 सेकेंड का वक्त लगेगा, लेकिन इससे निकलने वाले मलबे को साफ करने में करीब 3 महीने का वक्त लग जाएगा. इमारत से निकलने वाला करीब 50 हजार टन मलबे का झरना इमारत के बेसमेंट में जाएगा.
हाइलाइट्सइमारत को गिरने में तो महज 10 सेकेंड का वक्त लगेगामलबे को साफ करने में करीब 3 महीने का वक्त लग जाएगा50 हजार टन मलबे का झरना इमारत के बेसमेंट में जाएगा
नई दिल्ली. नोएडा स्थित सुपर टेक ट्विन टॉवर को गिराने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. 28 अगस्त को दोपहर 2.30 बजे इसे ध्वस्त किये जाने की उम्मीद है. ब्लास्ट से पहले प्रशासन ने सभी तरह की तैयारियां पूरी कर ली हैं. इनमें सुरक्षा के लिए ट्रैफिक से लेकर पड़ोस में मौजूद इमारतों में रहने वालों को आगाह कर दिया गया है. नोएडा के सेक्टर 93ए स्थित इन टॉवरों को सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले पर ध्वस्त करने का फैसला लिया गया है. इसे ध्वस्त करने के लिए इमारत के कॉलम यानी स्तंभों में विस्फोटक लगाया गया है. करीब 3700 किग्रा विस्फोटक को लगाने में करीब 15 दिन से ज्यादा का वक्त लगा.
इस प्रक्रिया में देरी की वजह यह भी रही कि मुंबई की ‘एडिफिस इंजीनियरिंग’ कंपनी जिसने दक्षिण अफ्रीका की अपनी साझेदार कंपनी ‘जेट डिमोलिशंस’ के साथ मिलकर ट्विन टावर को ध्वस्त करने की जिम्मेदारी ली है. उसने सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (CBRI) यानी केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान को जो रिपोर्ट सौंपी थी, उससे जुड़े कुछ सवालों के जवाब में देर हुई थी. CBRI को अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ निकाय के तौर पर नियुक्त किया था. और ध्वस्तिकरण की प्रक्रिया उनकी मंजूरी पर ही पूरी होनी थी. संस्था ने विस्फोटक की मात्रा के साथ प्राथमिक और द्वितीयक विस्फोट से जुड़े कुछ सवाल पूछे थे. इसकी रिपोर्ट 6 अगस्त तक भेजी जानी थी.
10 सेकेंड में सब स्वाहा
28 अगस्त को जब ट्विन टॉवर को ढहाया जाएगा तो यह भारत की सबसे ऊंची इमारत बन जाएगी, जिसे विस्फोटकों के जरिए उड़ाया गया. महज 15 सेकेंड से भी कम समय में कुतुबमीनार से भी ऊंची इमारतें ढह जाएंगी और इससे करीब 55,000 टन मलबा निकलेगा. जब यह इमारतें गिरेंगी तो करीब 35000 घन मीटर मलबा और धूल का गुबार पैदा होगा, जिसे शांत होने में 10 मिनट से ज्यादा का वक्त लगेगा. हालांकि ये काफी कुछ मौसम पर निर्भर करता है. इमारत से निकलने वाले मलबे को ढोने के लिए ट्रकों को करीब 1200 से 1300 चक्कर लगाने होंगे. इमारत ढहने के बाद इससे जो लोहा और स्टील निकलेगा, वह करीब 4000 टन होगा, जिसका इस्तेमाल एडिफिस इमारत गिराने की लागत वसूलने में करेगी.
बिल्डिंग गिराने में किस विस्फोटक का इस्तेमाल?
इमारत को ध्वस्त करने में डायनामाइट, प्लास्टिक विस्फोटक और इमल्शन के मिश्रण वाले विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया है. इस विस्फोटक को पलवल की एक पेसो अधिकृत संस्था से किश्तों में लाया गया और लगाया गया. टॉवर को गिराने में वॉटरफॉल मेथड यानी झरने के गिरने जैसी प्रक्रिया वाले विस्फोट के तरीकों को अपनाया गया है. इससे इमारत ध्वस्त होने के बाद अंदर की ओर गिरेगी.
विस्फोट की प्रक्रिया
विस्फोट के बल को नियंत्रित करने के लिए विस्फोटकों के प्रकार को सही तरह से चुना जाना बेहद ज़रूरी होता है, फिर विस्फोटक के क्रम को इस तरह से व्यवस्थित किया जाता है कि उसे लगाने के दौरान वह महज एक मिली सेकेंड में अंदर चला जाए. इस तरह की प्रक्रिया से विस्फोट करने पर मलबा फैलता नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरीके से पूरी इमारत का मलबा 17 फीसद तक कम हो जाता है. जब विस्फोट होगा तो इमारत के स्तंभों में तेजी से विस्फोट होगा, जो एक करंट के झटके की तरह पूरी इमारत में फैल जाएगा और इमारत को धराशायी कर देगा. इस दौरान ऐसा लगेगा जैसे दीवाली के पटाखे छूट रहे हैं.
कैसे लगा विस्फोटक
करीब 3500 किग्रा विस्फोटक को 100 मीटर ऊंचे ट्विन टॉवर के कॉलम और शीयर में करीब 9400 छेद करके उसमें भरा गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक बेसमेंट से लेकर इमारत के ऊपरी हिस्से तक करीब 10000 छेद किए गए हैं. महज 9-10 सेकेंड में जब इमारत ध्वस्त होगी तो इससे उठने वाला धूल का गुबार करीब 60 मंजिला इमारत जितना ऊपर तक उठेगा. इससे आस पास की इमारतों को बचाने के लिए पानी के जेट, फायर टेंडर और फव्वारों का इस्तेमाल किया जाएगा.
मलबे के गुबार से बचने का तरीका
वहीं मलबा आसपास के क्षेत्र में नहीं फैले इसके लिए आसपास के दो टॉवरों को पूरी तरह से काले और सफेद जियोटेक्सटाइल फाइबर से ढंक दिया गया है. इसके साथ ही गैस पाइपलाइनों की सुरक्षा के लिए भी पूरी व्यवस्था की गई है. टावर को गिराने से पहले एडिफिस कंपनी ने ओएनजीसी (ONGC) की पाइप लाइन और पड़ोस में बने दो अन्य टावर को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए बीमा कराया है. पाइप लाइन का 2.5 करोड़ रुपये में तो टावर का 100 करोड़ रुपये का बीमा कराया गया है.
प्रदूषण कितना बढ़ेगा
इमारत को गिरने में तो महज 10 सेकेंड का वक्त लगेगा, लेकिन इससे निकलने वाले मलबे को साफ करने में करीब 3 महीने का वक्त लग जाएगा. इमारत से निकलने वाला करीब 50 हजार टन मलबे का झरना इमारत के बेसमेंट में जाएगा. इसके बाद मलबे को अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के तहत एक निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट संयत्र में संसाधित किया जा सकता है. या इसे निचले इलाके में निपटाया जाएगा. 28 अगस्त को हवा का रुख क्या होता है, उसके आधार पर धूल के गुबार को शांत होने में 10 से15 मिनट लग सकते हैं. विध्वंस की सबसे बड़ी चुनौती ही धूल के गुबार को नियंत्रित करना होगा, जो मुश्किल हो सकता है. हालांकि मलबे को नियंत्रित करने के लिए विस्फोट क्षेत्र में 4 मीटर की खाई खोदी गई है.
सुरक्षा के क्या उपाय हैं?
जिस दिन इमारत ध्वस्त होगी, उस दिन करीब 1396 रहवासियों को जगह खाली करने के लिए कह दिया गया है. वह या तो एक दिन पहले जगह खाली कर सकते हैं या विस्फोट से कुछ घंटे पहले भी जा सकते हैं. एडिफिस इंजीनियरिंग के सूत्रों का कहना है कि इससे आसपास की इमारतों को कोई नुकसान नहीं होगा. इसको लेकर 19 जुलाई, 2022 को, एडिफ़िस इंजीनियरिंग ने नोएडा प्राधिकरण को एक कंपन भविष्यवाणी रिपोर्ट भी सौंपी थी, जिसके मुताबिक विध्वंस की वजह से होने वाला अधिकतम कंपन प्रति सेकंड 34 मिमी होने की उम्मीद है, जबकि दिल्ली-नोएडा क्षेत्र सीसमिक ज़ोन 5 में आता है, इसलिए यहां की संरचनाएं 300 मिमी प्रति सेकंड के मानदंडों के अनुसार डिज़ाइन की गई हैं.
पहले भी अदालत ने दिया है ऐसा फैसला
इमारत के विध्वंस का फैसला इससे पहले जनवरी 2020 में केरल के मराडू की बहु-मंजिला आवास परिसरों के लिए सुनाया गया था. इन दोनों मामलों में अंतर इतना है कि माराडू टावरों में जहां नोएडा ट्विन टावर्स की तुलना में लगभग आधी मंजिलें थीं. वहीं मराडू में टॉवरों को पूरा कर लिया गया था और लोगों को कब्जा भी मिल गया था. लेकिन तटीय विनियमन क्षेत्र की ज़रूरतों का उल्लघंन करने के कारण मराडू में भी इमारत को गिराने का आदेश दे दिया गया था. वहीं सुपरटेक को उत्तरप्रदेश अपार्टमेंट अधिनियम के प्रावधानों का उल्लघंन पाया गया था. दोनों ही मामलों में शीर्ष अदालत ने अनाधिकृत निर्माणों को नियमित करने से इंकार कर दिया था.
एडिफिस ने ही गिराया था मराडू की बिल्डिंगें
ट्विन टॉवर की तरह ही मराडू मामले में भी इमारतों को गिराना इतना आसान नहीं था. यहां चार इमारतों को गिराना था. गोल्डन कयालरोम अपार्टमेंटर परिसर के साथ सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि यह मुख्य सड़क के पास थी और स्कूल और वॉटर बॉडी से घिरा हुआ था. इन्हें गिराने के दौरान विशेषज्ञों को यह सुनिश्चत करना था कि जल निकाय मलबे से प्रदूषित ना हो. और उसमें कम से कम मलबा जाए. यही नहीं झील को साफ करने के लिए मशीन लगाई गई थी. इस इमारत को गिराने का काम भी मुंबई की एडिफिस ने ही किया था और यहां पर भी वही तकनीक अपनाई गई जो ट्विन टॉवर में अपनाई जा रही है.
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Tags: Supertech twin towerFIRST PUBLISHED : August 24, 2022, 12:59 IST