800 की जान के बाद 2 गुट शांत‍ि की ओर क‍िसने ल‍िखी समझौते की स्‍क्र‍िप्‍ट

Tripura News:यह दोनों संगठन पिछले कई सालों से त्रिपुरा के प्रमुख सशस्त्र संगठनों में से एक थे और उनकी प्रमुख मांग समय-समय पर यही रहती थी. त्रिपुरा में जनजातीय और आदिवासी लोगों की अस्मिता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए. भारत सरकार के इस शांति समझौते में इन दोनों समूहों को यह आश्वासन दिया गया है कि आदिवासियों के हितों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

800 की जान के बाद 2 गुट शांत‍ि की ओर क‍िसने ल‍िखी समझौते की स्‍क्र‍िप्‍ट
नई द‍िल्‍ली. भारत सरकार की ओर से त्रिपुरा में दो सशस्त्र संगठन ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स और नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के बीच अहम शांति समझौता होने जा रहा है. इन दोनों संगठनों पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है. इसके बाद मुख्य चुनौती भारत सरकार के सामने थी कि कैसे इन संगठनों को मुख्य धारा में लाया जाए. गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर पिछले 5 साल में पूर्वोत्तर के अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग अलगाववादी संगठनों के आधा दर्जन से भी ज्यादा शांति समझौते हो चुके हैं. इसमें से प्रमुख है ब्रू रियांग जनजातीय समझौता, उल्फा के कई धड़ों से शांति समझौता और इस साल मार्च में त्रिपुरा के कुछ और जनजातीय समूह के बीच हुआ समझौता शाम‍िल है. इस समझौते से जुड़े रणनीतिकारों के मुताबिक, मार्च के महीने में जैसे ही मोदी सरकार ने त्रिपुरा के कुछ जनजातीय समूहों के साथ शांति समझौता किया उसके बाद से इन दोनों संगठनों से बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. वैसे तो पिछले दो साल से इन दोनों संगठनों से त्रिपुरा में बातचीत चल रही थी. कई दौर की बातचीत चली, जिसमें इन दोनों संगठनों के नेता दिल्ली भी आए और भारत सरकार के आला अधिकारी त्रिपुरा भी गए. मोदी सरकार 3.0 ने जैसे ही अपना कार्यकाल शुरू किया. इस प्रक्रिया में और तेजी आनी शुरू हो गई. खुद गृहमंत्री अमित शाह को इस बाबत समय-समय पर जानकारी दी जाती रही और आखिरकार 4 सितंबर को यह समझौता हुआ. क्‍या है यह शांति मसौदा? यह दोनों संगठन पिछले कई सालों से त्रिपुरा के प्रमुख सशस्त्र संगठनों में से एक थे और उनकी प्रमुख मांग समय-समय पर यही रहती थी. त्रिपुरा में जनजातीय और आदिवासी लोगों की अस्मिता से कोई समझौता नहीं होना चाहिए. भारत सरकार के इस शांति समझौते में इन दोनों समूहों को यह आश्वासन दिया गया है कि आदिवासियों के हितों से कोई समझौता नहीं किया जाएगा. बाकायदा इस शांति समझौते के बाद इस संगठन से जुड़े लोगों को भारत-बांग्लादेश सीमा के पास त्रिपुरा में जो रीजन है उसके विकास के लिए इन लोगों को अहम भूमिका होगी. अब हम आपको सिलसिलेवार तरीके से बनाते हैं एनएलएफटी और एटीटीएफ ने त्र‍िपुरा में पिछले तीन दशक से कैसे सशस्त्र आंदोलन कर राज्य की शांति व्यवस्था को एक बहुत बड़ी चुनौती दी थी. एनएलएफटी एनएलएफटी पर आरोप है कि अपनी सशस्त्र गतिविधियों को चलाने के लिए दशकों से वह बांग्‍लादेश के हथियार तस्करों पर निर्भर रहा है. एनएलएफटी एक आदिवासी उग्रवादी संगठन है, जिसका गठन 1989 में विश्वमोहन देबबर्मा के नेतृत्व में किया गया था. इस संगठन का उद्देश्य था – त्रिपुरा को भारत के संघ से मुक्त कराना. – 1956 के बाद त्रिपुरा में प्रवेश करने वाले सभी विदेशियों को निर्वासित करना. – अलग-थलग पड़े आदिवासियों की जमीनें वापस दिलाना. इस समूह ने पहली बार 11 दिसंबर 1991 को आरकेपुर पुलिस स्टेशन के अंतर्गत ताइनानी पुलिस चौकी से हथियार लूटे. जब इसके सशस्त्र विंग ‘नेशनल होली आर्मी’ के नाम सामने आए. इस संगठन पर यह भी आरोप है क‍ि अपने तीन दशकों के सशस्त्र आंदोलन के दौरान 600 से ज्यादा बेकसूर लोगों को मारा है. एनएलएफटी अपना अलग झंडा रखता है, जिसमें तीन रंग (हरा, सफेद और लाल) हैं. झंडे का हरा रंग त्रिपुरा पर संप्रभुता का प्रतीक है. इसी भूमि पर वे दावा करते हैं. झंडे का सफेद हिस्सा उस शांति को प्रदर्शित करता है, जिसे वह पाना चाहते हैं. वहीं लाल रंग वह उनकी हिंसक गतिविधियों को दर्शाता है. उनके ध्वज में एक तारा भी है, जिसे वह संघर्ष के दौरान मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं. इसके प्रमुख नेता हैं 1) विश्वमोहन देबबर्मा- अध्यक्ष, 2) सुबीर देबबर्मा – उपाध्यक्ष, 3) उपेंद्र रियांग – महासचिव 4) सचिन देबबर्मा – सेना प्रमुख। 5) अथरबाबू हलम- उप सेना प्रमुख। 6) मंगल देबबर्मा @ केचा केचा- उप सेना प्रमुख ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स की स्थापना 11 जुलाई 1990 को ऑल त्रिपुरा ट्राइबल फोर्स के रूप में की गई थी. त्रिपुरा सरकार के साथ ‘समझौता ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर करने और अपने कैडरों के आत्मसमर्पण के मुद्दे पर ATTF के नेताओं रंजीत देबबर्मा और ललित देबबर्मा के बीच मतभेद पैदा हो गए थे. ललित देबबर्मा और उनके अनुयायियों ने 23-08-1993 को ‘समझौता ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर किए. 1633 उग्रवादियों ने सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन अन्य ने आत्मसमर्पण नहीं किया. बल्कि आतंकवादी गतिविधियां जारी रखीं. तब से, इसे ‘ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स’ के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसके संस्थापक सदस्यों सहित बड़ी संख्या में नेता, अनुयायी अलग-अलग चरणों में जीवन की मुख्यधारा में लौट आए हैं. इस संगठन ने भी पिछले कई दशकों से अपना सशस्त्र आंदोलन आदिवासियों के हक के नाम पर चलाया और त्रिपुरा अस्मिता के नाम पर बांग्लादेशी तस्करों की मदद भी ली. संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के उद्देश्य से एटीटीएफ नेतृत्व ने बड़ी संख्या में आदिवासी युवाओं को गुमराह किया. उन्हें बांग्लादेश ले गया और हथियार और विस्फोटकों को संभालने का प्रशिक्षण दिया. इस तरह संगठन ने राज्य में इसी तरह की अलगाववादी और विध्वंसकारी गतिविधियां कीं. इस संगठन ने लगभग 300 निर्दोष लोगों की हत्या की है. उन्होंने इसी अवधि के दौरान एसएफ से भारी मात्रा में हथियार भी लूटे और फिरौती के लिए 200 से अधिक निर्दोष लोगों का अपहरण किया. इनमें से कई अपहृत पीड़ितों को फिरौती मिलने के बाद भी मार दिया गया. रंजीत देबबर्मा, चित्ता देबबर्मा (जिन्हें बिकाश कोलोई के नाम से भी जाना जाता है), उपेंद्र देबबर्मा, मालिन्जॉय रियांग, सुबोध देबबर्मा, असित देबबर्मा वह प्रमुख नेता हैं जिन्होंने जो त्रिपुरा टाइगर फोर्स की स्थापना और संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई है. Tags: Amit shah, Tripura NewsFIRST PUBLISHED : September 4, 2024, 12:23 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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