दुनियाभर में खामोशी से नौकरी छोड़ रहे हैं कर्मचारी जानें युवाओं में नए ट्रेंड-Quiet Quitting के बारे में
दुनियाभर में खामोशी से नौकरी छोड़ रहे हैं कर्मचारी जानें युवाओं में नए ट्रेंड-Quiet Quitting के बारे में
दुनिया भर के दफ्तरों में एक ट्रेंड तेज़ी से उभरा है, जिसे Quiet Quitting (ख़ामोशी से काम छोड़ना ) नाम दिया गया है. इसके तहत दुनिया भर के कर्मचारी अब सिर्फ उतना ही काम कर रहे हैं जितना नौकरी में बने रहने के लिए ज़रूरी है.
दुनिया भर के दफ्तरों में एक ट्रेंड तेज़ी से उभरा है, जिसे Quiet Quitting (ख़ामोशी से काम छोड़ना ) नाम दिया गया है. इसके तहत दुनिया भर के कर्मचारी अब सिर्फ उतना ही काम कर रहे हैं जितना नौकरी में बने रहने के लिए ज़रूरी है. अभी दुनिया के कई देश द ग्रेट रेज़िगनेशन (The Great Resignation) के प्रभाव उबरे भी नहीं हैं कि बॉसेस की चिंता बढ़ाने वाला ये नया ट्रेंड ज़ोर पकड़ रहा है. द ग्रेट रेज़िगनेशन के तहत दुनिया भर के लाखों कर्मचारियों ने दफ्तरों के माहौल, सीनियर्स और बॉसेस के व्यवहार और कम सैलरी की वजह से बड़े पैमाने पर इस्तीफ़ा देना शुरू कर दिया था.
2021 में अमेरिका में तो सिर्फ एक महीने में ही 40 लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी नौकरियां छोड़ दी थीं. ब्रिटेन जैसे देशों में तो आज भी 20 प्रतिशत कर्मचारी अगले साल तक अपनी मौजूदा नौकरी छोड़ देना चाहते हैं लेकिन जिन लोगों के पास नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी या खुद का काम करने का विकल्प नहीं होता वो क्वायट क्विटिंग का तरीक़ा आज़माने लगे हैं. ये एक ऐसा ट्रेंड है जिसमें लोग नौकरी तो नहीं छोड़ते लेकिन सिर्फ उतना भर काम करते हैं जितना ज़रूरी होता है, यानी अतिरिक्त काम को या किसी और के हिस्से के काम को चुपचाप ना कह देते हैं, या फिर अपने ऊपर अतिरिक्त ज़िम्मेदारी लेते ही नहीं हैं. ये ट्रेंड ख़ासकर युवाओं के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है. ये वो युवा हैं जो मानते हैं कि काम के अलावा भी ज़िंदगी होती है और ज़रूरत से ज्यादा काम की वजह से वो अपनी निजी जिंदगी का आनंद नहीं ले पाते.
युवा अपनी नौकरियों में खुश नहीं
ये नया प्रचलन उस धारणा के बिल्कुल उलट है, जिसके मुताबिक लोगों को जमकर काम करना चाहिए, मेहनत करनी चाहिए, ज़िम्मेदारी उठानी चाहिए और अपने काम के दम पर कैरियर में प्रमोशन और तरक्की हासिल करनी चाहिए. इसी साल प्रकाशित हुए Deloitte के एक सर्वे में ये पता चला है कि मिलेनियल्स यानी वो लोग जो 1981 के बाद पैदा हुए और जिनकी उम्र आज की तारीख में 25 से 40 साल के बीच है और जेनरेशन ज़ी यानी वो युवा जो 1997 के बाद पैदा हुए और आज की तारीख़ में ज्यादा से ज्यादा 24 साल के हैं, उन्हें लगता था कि कोरोना काल बीत जाने के बाद वो एक सुनहरे भविष्य का निर्माण कर पाएंगे, लेकिन 2022 आने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ और अब ये युवा अपनी नौकरियों में खुश नहीं हैं.
जितनी सैलरी है, उतने ही खर्चे हैं
46 देशों में इस आयुवर्ग के 23 हज़ार से ज्यादा युवाओं पर किए गए इस सर्वे में पता चला कि 32 प्रतिशत युवा बढ़ती महंगाई से हताश है. ख़ासकर घर, ट्रांसपोर्ट और ज़रूरत की चीज़ों की बढ़ती कीमतों ने युवाओं को चिंता में डाल दिया है. 47 प्रतिशत युवा मानते हैं कि उनकी जितनी सैलरी है, उतने ही खर्चे हैं और अगर कोई इमरजेंसी आ जाए तो इन युवाओं के पास उसके लिए कोई सेविंग भी नहीं है. 29 प्रतिशत युवाओं को नहीं लगता कि वो कभी चिंतामुक्त होकर रिटायर हो पाएंगे. 75 प्रतिशत युवाओं को लगता है कि उनके देश में अमीरों और ग़रीबों के बीच खाई और बड़ी हुई है. इन सबके बीच भी जो युवा नौकरियों में बने हुए हैं उनमें से 45 प्रतिशत को लगता है कि वो बर्न आउट का शिकार हो गए हैं यानी काम के बोझ से पैदा होने वाली ऐसी स्थिति जब शरीर और मन दोनों साथ छोड़ देते हैं और आप में ज़रा सी भी ऊर्जा नहीं बचती. 44 प्रतिशत युवाओं ने बताया कि काम के बोझ और ज़रूरत से ज़्यादा दबाव की वजह से उनके कई साथी पिछले कुछ महीनों में अचानक नौकरी छोड़ चुके हैं.
तरक्की के रास्ते कैसे खुलेंगे ?
इन सभी परिस्थितियों ने नौकरियों में लगे बहुत सारे युवाओं को चिंता और अवसाद से भर दिया है. यही वजह है कि जो लोग नौकरियां छोड़ नहीं सकते वो अतिरिक्त काम और ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने लगे हैं. काम और ज़िम्मेदारियों से भागना सही है या ग़लत इस पर बहस हो सकती है. बहुत सारे लोग मानते हैं कि आपको जितना काम करने का पैसा मिलता है, उतना ही काम करना चाहिए. बाकी समय खुद को और अपने परिवार को देना चाहिए. लेकिन बहुत सारे लोग ये भी मानते हैं कि अगर लोग ज़िम्मेदारी लेकर आगे ही नहीं बढ़ना चाहेंगे तो फिर तरक्की के रास्ते कैसे खुलेंगे ?
खुद को भगवान भरोसे छोड़ने लगे हैं
क्वायट क्विंटिंग को अपनाने वाले तो फिर भी नौकरियां कर रहे हैं, लेकिन चीन में तो युवा इन दिनों एक ऐसे ट्रेंड का शिकार हो रहे हैं, जो ये बताता है कि आगे निकलने की इस अंधी दौड़ ने युवाओं को किस हद तक तोड़ कर रख दिया है. चीन में आजकल बहुत सारे युवा लेट इट रॉट को अपना रहे हैं, हिंदी में इसे आप ‘सड़ने दो’ कह सकते हैं. इसके तहत युवा अपने सपने, अपनी नौकरी और अपनी जीवन शैली सबका त्याग कर देते हैं. इन युवाओं का मानना है कि जो सपने वो पूरा करने का ख्वाब देख रहे हैं वो इस दौर में कभी पूरे नहीं हो सकते. घर महंगे हो गए हैं, गाड़ियां खरीदना आसान नहीं है और यहां तक कि रोज़मर्रा की ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही तो फिर आखिर संघर्ष करना ही क्यों ? ऐसे युवा अपने आप को सब चीज़ों से अलग करके खुद को भगवान भरोसे छोड़ने लगे हैं.
भारत के अध्यात्म से इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश
इन युवाओं का मानना है कि अगर ज़िंदगी ऐसे ही संघर्ष के साथ बितानी है तो जिंदगी को ही सड़ने दो. जो हो रहा है होने दो, जिस दौड़ को जीत नहीं सकते उसमें खुद को खपाने का फायदा क्या है ? अब सवाल ये है कि अगर परिस्थितियां साथ नहीं दे रहीं तो क्या खुद को काम से अलग कर लेना या जिंदगी को सड़ने देना ही आखिरी विकल्प है, इसका जवाब हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है, लेकिन आज हमने भारत के अध्यात्म से इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की है. भारत में दो तरह के महापुरुष हुए. एक भगवान बुद्ध और महावीर जैसे, जिन्होंने जीवन की लालसाओं और इच्छाओं का ही पूरी तरह से त्याग कर दिया दूसरे हुए भगवान कृष्ण.
ज़िम्मेदारियों से भागे नहीं बल्कि डटे रहे श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण ने किसी इच्छा, किसी माया का त्याग नहीं किया उन्होंने जीवन में जो भी किया उसे पूर्णता के साथ किया. वो युद्ध का भी हिस्सा बने, उन्होंने प्रेम भी किया, उन्होंनें नया शहर द्वारिका भी बसाया, उन्होंने शत्रुओं को हराने के लिए कूटनीति भी अपनाई, चतुराई भी दिखाई, यानी उन्होंने जीवन को उसके सारे रंगों में जिया, वो ज़िम्मेदारियों से भागे नहीं बल्कि डटे रहे, लेकिन किसी भी ज़िम्मेदारी को उन्होंने खुद पर हावी नहीं होने दिया बल्कि हर ज़िम्मेदारी, हर किरदार को उन्होंने एक लीला की तरह लिया. इसलिए ज़िम्मेदारियों से भागने वाले युवाओं को इन्हीं दो तरीकों मे से एक को अपनाकर देखना चाहिए, लेकिन आज के समय के हिसाब से भगवान कृष्ण का तरीका ज्यादा प्रासंगिक मालूम होता है जब आप अपनी सारी ज़िम्मेदारियां भी निभाते हैं, कूटनीति का भी इस्तेमाल करते हैं, कुछ नया सोचने और नया रचने की क्षमता भी रखते हैं. जीवन में प्रेम को भी जगह देना जानते हैं और शत्रुओं से निपटना भी लेकिन ये सब करते हुए भी आपको ये एहसास रहना चाहिए कि आप जो कर रहे हैं वो सिर्फ एक रोल है, किरदार है, किरदार पूरा तो काम पूरा, फिर नए किरदार की तलाश में जुट जाइये, लेकिन जीवन और ज़िम्मेदारियों से भागिए नहीं .
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Tags: Trending new, Youth employmentFIRST PUBLISHED : August 25, 2022, 22:21 IST