EXPLAINER: जापान में है नेताजी की अस्थियां देश के हीरो के लिए अपनी धरती पर लौटने का समय जानें कब क्या हुआ
EXPLAINER: जापान में है नेताजी की अस्थियां देश के हीरो के लिए अपनी धरती पर लौटने का समय जानें कब क्या हुआ
Netaji Subhash Chandra Bose: उनके अवशेषों को 14 सितंबर, 1945 को टोक्यो के पास रेनकोजी मंदिर में रखा गया था, आज तक अवशेष वहीं है. मंदिर के पुजारी रेवरेंड क्योई मोचिजुकी ने कलश प्राप्त किया, जिन्होंने राख को भारत ले जाने तक उसकी देखभाल करने की कसम खाई थी. हर साल नेताजी की पुण्यतिथि पर मंदिर के मुख्य पुजारी एक सभा का आयोजन करते हैं. जिसमें प्रमुख जापानी और भारतीय नागरिक शामिल होते हैं. इस सभा में दूतावास के अधिकारी भी शामिल होते हैं.
हाइलाइट्सनेताजी के अवशेषों को 14 सितंबर, 1945 को टोक्यो के पास रेनकोजी मंदिर में रखा गया था. 18 अगस्त 1945 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हुआ था विमान हादसा. भारत में कई अभी भी मानते हैं कि ताइवान में विमान दुर्घटना में बोस की मृत्यु नहीं हुई थी.
नई दिल्ली. यह 18 अगस्त, 1945 का दिन था जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान हादसे की खबर ने सबको चौंका दिया था. लेकिन अब भी 77 साल के बाद भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक की मृत्यु संदेह के घेरे में है. जिस देश के लिए उन्होंने अथक संघर्ष किया था उनके अवशेष भारत वापस नहीं लाए गए हैं. इस दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए बोस की बेटी अनीता बोस फाफ ने कहा कि उनकी अस्थियों को भारत वापस लाने का समय आ गया है और उन्होंने सुझाव दिया कि डीएनए टेस्ट उन लोगों को जवाब दे सकता है जो अभी भी उनकी मृत्यु पर संदेह करते हैं. ऑस्ट्रिया में जन्मी अर्थशास्त्री जो जर्मनी में रहती हैं ने कहा कि अब समय आ गया है कि उनके अवशेष भारतीय धरती पर वापस आ जाएं क्योंकि उनके पिता स्वतंत्रता की खुशी का अनुभव करने के लिए जीवित नहीं रहे.
भारत में कई अभी भी मानते हैं कि ताइवान में विमान दुर्घटना में बोस की मृत्यु नहीं हुई थी. यह नेताजी की फाइलों के पूर्ण रूप से सार्वजनिक होने के बावजूद जो सरकार द्वारा उनके निधन के रहस्य पर अध्याय को बंद करने का एक प्रयास था.
30 मई, 2017 को एक आरटीआई के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि शाह नवाज समिति, न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग और न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की रिपोर्टों पर विचार करने के बाद सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि 18.8.1945 को विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई थी.
जापान में यहां है नेताजी की अस्थियां
जापानियों के अनुसार, बोस का अंतिम संस्कार ताइहोकू प्रान्त (वर्तमान ताइपे) में किया गया था. उनके अवशेष उनके विश्वासपात्र एसए अय्यर और उनके लेख टोक्यो में इंपीरियल मुख्यालय में 8 सितंबर, 1945 को टोक्यो इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के राम मूर्ति को सौंपे गए थे. नेताजी को आखिरी बार 1956 की विस्तृत जांच रिपोर्ट में जापानियों के साथ देखा गया था, जिसे 2016 में सार्वजनिक कर दिया गया था.
उनके अवशेषों को 14 सितंबर, 1945 को टोक्यो के पास रेनकोजी मंदिर में रखा गया था, आज तक अवशेष वहीं है. फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार मंदिर के पुजारी रेवरेंड क्योई मोचिजुकी ने कलश प्राप्त किया, जिन्होंने राख को भारत ले जाने तक उसकी देखभाल करने की कसम खाई थी. हर साल नेताजी की पुण्यतिथि पर मंदिर के मुख्य पुजारी एक सभा का आयोजन करते हैं. जिसमें प्रमुख जापानी और भारतीय नागरिक शामिल होते हैं. इस सभा में दूतावास के अधिकारी भी शामिल होते हैं.
2016 में फाइलों को सार्वजनिक करने के बाद यह पता चला कि भारत रेनकोजी मंदिर में अवशेषों के रखरखाव के लिए भुगतान कर रहा है. 1967 से 2005 के बीच भारत ने मंदिर को 52,66,278 रुपए का भुगतान किया.
क्या किसी ने अब तक अवशेष वापस लाने की कोशिश की
नेताजी की फाइलों के अनुसार जवाहरलाल नेहरू सरकार ने 1950 के दशक की शुरुआत में बोस की राख को अपने कब्जे में ले लिया था. लेकिन चूंकि स्वतंत्रता सेनानी के परिवार ने उनके निधन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. इसलिए सरकार राख को घर लाने के लिए उत्सुक नहीं थी. केंद्र में कांग्रेस के साथ जापान ने इस मुद्दे पर नई दिल्ली से संपर्क करने के कई प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार 1979 में मोरारजी देसाई के शासन के दौरान बोस की इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले एक जापानी सैन्य खुफिया अधिकारी ने भारत से उनके अवशेष लेने का आग्रह किया. उन्हें आश्वासन दिया गया था कि एक या दो साल में इस मुद्दे पर ध्यान दिया जाएगा. लेकिन देसाई ने अपनी कुर्सी खो दी और मामला फिर से उलझ गया.
जब इंदिरा गांधी ने सत्ता संभाली तो उन्हें जापानी सेना के पूर्व अधिकारियों द्वारा सूचित किया गया था कि जापान शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष रयोइची ससागावा ने बोस के अवशेषों को “स्थायी विश्राम के लिए उनकी मातृभूमि” ले जाने के लिए सभी खर्चों को वहन करने की पेशकश की थी. हालांकि भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.
पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के प्रयास भी 1997 में विफल रहे. अनीता बोस ने जर्मनी में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की थी और कहा था कि उन्हें परिवार से परामर्श करने की जरूरत है. रिपोर्टों से पता चलता है कि अगर बोस का परिवार और राजनीतिक दल किसी प्रस्ताव पर पहुंचने में विफल रहे तो उन्होंने अस्थियों को जर्मनी ले जाने की पेशकश की थी, लेकिन भारत और जापान दोनों इस विचार के खिलाफ थे.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 1998 में आई के गुजराल के प्रधान मंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद अनीता बोस ने उनसे भी मुलाकात की और मांग की कि सरकार मेरे पिता की अस्थियों को टोक्यो से उनकी मातृभूमि विशेष रूप से दिल्ली में वापस लाने की व्यवस्था करे. फरवरी में एक पत्र में अनीता बोस ने लिखा था, राख को गंगा या भारत की विभिन्न नदियों में राख को विसर्जित किया जाना चाहिए. एक महीने बाद गुजराल ने इस्तीफा दे दिया और इस तरह नायक के घर लौटने की उम्मीद भी समाप्त हो गई.
जब डॉ मनमोहन सिंह ने पदभार संभाला तो उन्होंने अपने जापानी समकक्ष योशिरो मोरी के साथ 2006 में नेताजी के अवशेषों को भारत स्थानांतरित करने के संबंध में पत्रों का आदान-प्रदान किया. लेकिन उसमें से कुछ नहीं निकला.
क्या महसूस करते हैं नेताजी के परिवार के सदस्य
स्वतंत्रता सेनानी के परिवार अधिकांश लोगों के लिए बोस अभी भी जीवित हैं. उनके छोटे भाई शैलेश बोस ने 1982 में इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर भारत में अवशेषों को नहीं लाने के आदेश को पारित करने के लिए कहा था. क्योंकि उनका मानना था कि इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि अवशेष असली हैं.
तत्कालीन प्रधान मंत्री वीपी सिंह को मई 1990 में बोस के भतीजों, अशोक नाथ बोस, अमिय नाथ बोस और सुब्रत बोस से एक समान पत्र मिला. इस बीच अनीता बोस ने 2007 में रेनकोजी मंदिर के पुजारी को भी लिखा जिसमें अवशेषों को उन्हें सौंपने के लिए कहा गया था. उन्होंने यह भी कहा कि वह पिता के अवशेषों पर डीएनए टेस्ट करने के लिए तैयार थी, जिसे उन्होंने पहले अनावश्यक समझा था.
क्या किया है वर्तमान सरकार ने
प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभालने से पहले नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने पर नेताजी के अवशेषों को भारत वापस लाने का वादा किया था. ठीक उसी तरह जैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने 2000 में अवशेषों को वापस लाने के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की थी. हालांकि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार कई मौकों पर उन्हें श्रद्धांजलि देती है, लेकिन सरकार अभी तक गतिरोध का समाधान खोजने में असमर्थ रही है.
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Tags: Japan, Netaji subhas chandra boseFIRST PUBLISHED : August 18, 2022, 17:15 IST