झारखंड में 1932 के खतियान पर राजनीति और हकीकत! हेमंत कैबिनेट मीटिंग पर निगाहें
झारखंड में 1932 के खतियान पर राजनीति और हकीकत! हेमंत कैबिनेट मीटिंग पर निगाहें
Ranchi News: झारखंड गठन के बाद से आज तक 1932 के खतियान का शोर थमा नहीं है. हां ये बात जरूर है कि जब जिसकी सरकार रही, तब उनके हिसाब से ये मामला सुर्खियों में रहा. 22 साल बाद फिर से हेमंत सोरेन सरकार में 1932 का खतियान हर किसी की जुबां पर है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा खतियान आधारित स्थानीय नीति की ओर इशारा करते ही बहस तेज हो गई है.
रांची. झारखंड की राजनीति में इन दिनों खतियान आधारित स्थानीय नीति और OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा छाया हुआ है. राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने इन दोनों ही मुद्दों पर निर्णय लेने की ओर इशारा भी कर दिया है. आज होने वाली कैबिनेट की बैठक को इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण भी माना जा रहा है. मगर जानकर बताते हैं कि राज्य में खतियान आधारित स्थानीय नीति का निर्धारण इतना आसान नहीं. वजह राज्य के अलग-अलग जिलों में सर्वे रिपोर्ट का अलग-अलग समय पर प्रकाशन होना है.
झारखंड गठन के बाद से आज तक 1932 के खतियान का शोर थमा नहीं है. हां ये बात जरूर है कि जब जिसकी सरकार रही, तब उनके हिसाब से ये मामला सुर्खियों में रहा. 22 साल बाद फिर से हेमंत सोरेन सरकार में 1932 का खतियान हर किसी की जुबां पर है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा खतियान आधारित स्थानीय नीति की ओर इशारा करते ही बहस तेज हो गई है. बहस इस बात को लेकर हो रही है कि आखिर ये कैसे संभव होगा. खास कर तब जब हर जिले का सर्वे रिपोर्ट अलग-अलग समय पर निर्धारित हुआ है. ऐसा हम नहीं कह रहे इस सर्वे रिपोर्ट पर गौर फरमाइए. हजारीबाग जिला में 1908 से 1915 का सर्वे रिपोर्ट
रांची जिला में 1927 से 1935 का सर्वे रिपोर्ट
सिंहभूम जिला में 1913 से 1918 का सर्वे रिपोर्ट
सरायकेला जिला में 1925 से 1928 का सर्वे रिपोर्ट
पलामू जिला में 1913 से 1920 का सर्वे रिपोर्ट
संथाल परगना में 1868 के साथ-साथ 1925 का सर्वे रिपोर्ट
बता दें कि कानून के अनुसार हर 30 साल पर नया सर्वे कराना जरूरी है, लेकिन ऐसा कभी संभव नहीं हुआ. अगर अंतिम सर्वे की बात करें तो लातेहार में 2011 का उदाहरण सामने है. हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पांडेय रबीन्द्रनाथ राय ये मानते हैं कि स्थानीय नीति का आधार खतियान नहीं हो सकता है; क्योंकि हर जिले का अंतिम सर्वे प्रकाशन अलग-अलग है. ऐसे में किसी को भी अंतिम तिथि नहीं माना जा सकता है. इसके लिये संस्कृति – सभ्यता-सामाजिक संरचना को आधार बनाया जा सकता है. देश में संविधान लागू होने कि तिथि को इसका कट ऑफ डेट माना जा सकता है.
बता दें कि झारखंड में स्थानीय नीति के बाद OBC आरक्षण का मामला राजनीतिक के केंद्र में है. राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने OBC का आरक्षण 27 प्रतिशत तक करने का बड़ा दांव खेलने का निर्णय लिया है. इस निर्णय में उसकी सहयोगी दल कांग्रेस भी साथ-साथ है. झारखंड में आरक्षण का दायरा बढ़ाने को लेकर सरकार की तैयारी पर गौर करें, तो अनुसूचित जनजाति यानी ST का आरक्षण 26 से बढ़ा कर 28 करने की तैयारी है, जबकि OBC का आरक्षण 14 से बढ़ा कर 27 प्रतिशत करने की तैयारी है. वहीं अनुसूचित जाति SC का आरक्षण 10 से बढ़ा कर 12 प्रतिशत करने की जा सकती है.
OBC आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रही सामाजिक संगठन के लोग इस खबर से उत्साहित नजर आ रहे हैं. हालांकि, ऐसा होने के बाद ये मामला कोर्ट तक पहुंचने के पूरे आसार हैं. राष्ट्रीय OBC मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गुप्ता की मानें तो सरकार को इस पर अविलंब निर्णय लेना चाहिये. बात सिर्फ 27 प्रतिशत तक ही नहीं है; बल्कि जनसंख्या के आधार पर आरक्षण का लाभ OBC समाज को मिलना चाहिये.
आज हेमंत सोरेन सरकार का कैबिनेट बैठक होनी है. कैबिनेट मीटिंग में इन दो बड़े मुद्दों पर भी राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम लोगों की निगाहें टिकी हैं. अगृगर सरकार वाकई में कोई निर्णय लेती है तब उसके राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन शुरू होगा.
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FIRST PUBLISHED : September 14, 2022, 11:01 IST