अब भारत के मंदिर हुनर आर्ट-कल्‍चर से जीडीपी बढ़ाने का प्‍लान

मोदी सरकार भारतीय संस्‍कृति से अर्थव्‍यवस्‍था को बूस्‍ट करने के लिए कोशिशें कर रही है. इसके लिए पहली बार कल्‍चरल इकोनोमी समिट 2024 का आयोजन किया, जिसमें संस्‍कृति से इकोनोमी का बूस्‍ट करने के तरीकों पर विचार विमर्श किया गया.

अब भारत के मंदिर हुनर आर्ट-कल्‍चर से जीडीपी बढ़ाने का प्‍लान
आने वाले समय में आपको अगर मंदिर, भारत के आर्ट एंड कल्‍चर, हस्‍तशिल्‍प, गांव-कस्‍बों में बनाई जा रहीं प्राचीन और यूनिक चीजों को लेकर भारत में स्‍टार्टअप्‍स दिखाई दें तो यह चौंकने वाली बात नहीं होगी. पिछले कुछ सालों में जैसे मोदी सरकार के वोकल फॉर लोकल और लोकल टू ग्‍लोबल के तहत जैसे छोटी-छोटी चीजों के स्‍टार्टअप्‍स और बिजनेस फल-फूल रहे हैं, ऐसे ही बिजनेस आइडियाज अब भारत की सांस्‍कृतिक विरासत में भी देखने को मिलने वाले हैं. इसकी वजह है कि भारत सरकार इकोनॉमी में भारतीय संस्‍कृति के योगदान को बढ़ाने की कोशिश कर रही है. कभी भारत की जीडीपी में 25 फीसदी तक हिस्‍सेदारी रखने वाली भारतीय संस्‍कृति, मंदिर, कला, हुनर, धार्मिक पर्यटन, हस्‍तशिल्‍प, मिलेट्स, पारंपरिक विशेषताओं आदि की हिस्‍सेदारी पिछले कुछ सालों में घटकर 3 फीसदी से भी कम रह गई है. जिस पर एक बार फिर काम शुरू किया जा रहा है और आने वाले सालों में भारतीय संस्‍कृति फिर विश्‍व की धरोहर बनने के साथ ही भारत की अर्थव्‍यवस्‍था का बड़ा आधार बनेगी. ये भी पढ़ें  भूल जाएंगे गुड़गांव-नोएडा, अब प्रॉपर्टी के लिए हॉट च्‍वॉइस बने ये 5 छोटे शहर, मेट्रो भी है वजह बता दें कि शनिवार को मोदी सरकार की इसी पहल को लेकर मैत्रीबोध परिवार द्वारा दिल्‍ली में मैत्री कल्चरल इकोनॉमी समिट 2024 का आयोजन किया गया है, जिसमें पहुंचे कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस इकोनॉमी समिट से सार्वजनिक स्‍तर पर एक नई चर्चा की शुरुआत हो गई है. भारत की सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था का आरंभ हमारे वेद-पुराणों से हुआ है. नरेंद्र मोदी सरकार भी अयोध्या में राम मंदिर, वाराणसी में बाबा विश्वनाथ गलियारा और अन्य मंदिरों का जीर्णोद्धार करके इसे बढ़ावा दे रही है. कुंभ मेले जैसे आयोजनों से सुरक्षा, पर्यटन, स्थानीय रोजगार और व्यापार को बढ़ावा मिलता है, जिससे सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था देश की जीडीपी के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है. आने वाले समय में उम्‍मीद है कि 5 ट्रिलियन की इकोनॉमी बनाने में हमारी संस्कृति अहम योगदान निभाएगी. वहीं इस पहल को भारत सरकारी स्‍तर से लेकर आम आदमी तक पहुंचाने की कोशिश को लेकर मैत्रेय दादाश्रीजी ने कहा, ‘संस्कृति और अर्थव्यवस्था का तालमेल सतत विकास का आधार है. हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं जहां आध्यात्मिक और आर्थिक समृद्धि साथ-साथ बढ़े और इसकी कोशिश अब शुरू हो चुकी है.’ ये भी पढ़ें चलते-फिरते हार्ट-अटैक दे रही ये एक चीज, भारत में 80% लोग अनजान, हार्ट स्‍पेशलिस्‍ट बोले, हर हाल में कराएं जांच वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा, ‘आर्थिक योजनाओं के साथ सांस्कृतिक विरासत को जोड़ना हमारी परंपराओं को संरक्षित करता है और समग्र प्रगति का मार्ग भी बनाता है. आज की चर्चाओं ने दिखाया कि कैसे हम एक मजबूत और समावेशी इकनोमिक इकोसिस्टम बना सकते हैं.’ इस दौरान चर्चाओं में यह भी शामिल किया गया कि कैसे भारत में मौजूद मंदिरों का एक डाटा तैयार किया जाए, कैसे उनसे होने वाली आय को जीडीपी में शामिल किया जाए. सम्मेलन में त्योहार और टेम्पल इकोनॉमिक्स, सस्टेनेबल इकोसिस्टम और कल्चरल एक्टिविटीज के आर्थिक संबंध जैसे विषयों पर चर्चा की गई। प्रमुख विचारकों ने बताया कि सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का उपयोग सतत विकास और समृद्धि के लिए कैसे किया जा सकता है. ये भी पढ़ें  क्‍या एक्‍सपायरी डेट निकलते ही खराब हो जाती हैं चीजें? खाने से होता है नुकसान? फूड लैब एक्‍सपर्ट ने बताया सच….. Tags: Art and Culture, Indian economy, Nitin gadkariFIRST PUBLISHED : July 7, 2024, 18:12 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed