स्पेशल स्टेट पर नीतीश कुमार को ठेंगा अब किस करवट बैठेगी जेडीयू की राजनीति

बिहार को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने की मांग खारिज हो गई है. इस कारण बिहार की राजनीति में एक बार बवंडर आ गया है. राजद के निशाने पर सीधे नीतीश कुमार हैं. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि नीतीश कुमार आगे क्या करेंगे?

स्पेशल स्टेट पर नीतीश कुमार को ठेंगा अब किस करवट बैठेगी जेडीयू की राजनीति
लोकसभा चुनाव में ठीकठाक ‘बार्गेनिंग पावर’ हासिल करने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू फिर से राज्य को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने की मांग पर जोर दे रहे हैं. उनकी इस मांग में बिहार के अन्य दलों ने भी साथ दिया है. एनडीए की सहयोगी लोजपा (रामविलास) ने भी बिहार को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने की मांग की है. लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि मौजूदा प्रावधानों के तहत किसी राज्य को स्पेशल स्टेट का दर्जा नहीं दिया जा सकता. बिहार को स्पेशल स्टेट का दर्जा देने की मांग बहुत पुरानी है. वर्ष 2000 में बिहार से अलग झारखंड बनने के बाद से यह मांग हो रही है. दरअसल, इसके पीछे का लॉजिक यह है कि बिहार के बंटवारे के वक्त 90 फीसदी उद्योग-धंधे झारखंड के हिस्से में चले गए. बिहार के हिस्से में खेती और बाढ़ वाले क्षेत्र आए. इससे इसकी आर्थिक सेहत पर बड़ा असर पड़ा. इस आर्थिक क्षति की भरपाई के लिए केंद्र सरकार को बिहार को आर्थिक मदद करने की जरूरत है. इन तथ्यों में 100 फीसदी सच्चाई है. लेकिन, बिहार के बंटवारे और फिर राज्य और केंद्र की सरकारों के बीच सामंजस्य के अभाव की वजह से विशेष राज्य की मांग एक राजनीतिक मुद्दा बन गया. झारखंड की स्थापना और विशेष राज्य बात शुरुआत से करते हैं. 15 नवंबर 2000 को झारखंड बनने के वक्त बिहार में राजद और केंद्र में दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी. उस वक्त भी बिहार की तत्कालीन सरकार और मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इसकी मांग उठाई. लेकिन, कहीं न कहीं राजनीतिक श्रेय लेने के चक्कर में यह मांग पूरी नहीं हुई. फिर 2005 में राज्य में राजद के शासन का अंत हुआ और नीतीश कुमार की अगुवाई में जेडीयू-भाजपा की सरकार बनी. लेकिन, उधर केंद्र में भी सत्ता बदल गई और एनडीए की सरकार चली गई. 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की हार हुई थी. फिर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में यूपीए की सरकार बनी. यहां भी वही पुराना खेल शुरू हो गया. नीतीश मनमोहन सरकार से बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगते रहे लेकिन राजनीतिक श्रेय की लड़ाई में यह मांग कभी पूरी नहीं हुई. मोदी का दौर और विशेष राज्य 2014 में देश और बिहार दोनों की राजनीति ने फिर करवट बदली. केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी लेकिन, बिहार में जेडीयू का भाजपा के साथ गठबंधन टूट गया. फिर 2015 के विधानसभा में जेडीयू और राजद साथ आ गए. इसके बाद नीतीश कुमार कभी भाजपा तो कभी राजद के साथ पाला बदल-बदलकर अपनी सरकार बनाते रहे. लेकिन, उनकी विशेष राज्य की मांग को कोई भाव नहीं मिला. क्योंकि उस वक्त केंद्र की मोदी सरकार के लिए सहयोगी दलों के समर्थन की कोई अहमियत नहीं थी. 2024 का चुनाव और विशेष राज्य की मांग 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने केंद्र की मोदी सरकार के लिए सहयोगी दलों की जरूरत को अपरिहार्य बना दिया. भाजपा अपने दम पर बहुमत से चूक गई. उसे सरकार बनाने के लिए टीडीपी और जेडीयू के रूप में सहयोगी की जरूरत थी. ऐसे में राजनीतिक पंडितों के बीच इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि नीतीश कुमार मोदी सरकार को समर्थन के बदले राज्य के लिए विशेष दर्जे की मांग करने की स्थिति में हैं. ढाई दशक में पहला संयोग बिहार के बंटवारे के बाद से अब तक करीब ढाई दशक का वक्त बीत चुका है. लेकिन, ऐसा पहली बार प्रभावी संयोग बना जब लगा कि केंद्र की सरकार बिहार के लिए कुछ स्पेशल करने को मजबूर होगी. राजनीतिक परिस्थियों से भी इस मांग में दम दिख रहा था. लेकिन, बजट से एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में स्पष्ट रूप से कह दिया कि मौजूदा प्रावधानों में किसी राज्य को विशेष दर्जा देने की कोई व्यवस्था नहीं है. बिहार की राजनीति में हंगामा विशेष राज्य का दर्जा नहीं देने के केंद्र सरकार के बयान के बाद बिहार में बवाल मचा हुआ है. राजद सुप्रीमो लालू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस्तीफे तक की मांग कर दी है. वहीं जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्त केसी त्यागी ने कहा है कि विशेष राज्य का दर्जा बिहार की जनता का हक है. उन्होंने कहा कि जेडीयू ने केंद्र सरकार को मांग पत्र नहीं, अधिकार पत्र भेजा है. हमने कहा है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष सहायता मिलना ही चाहिए. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि ऐसी स्थिति में जेडीयू की राजनीति अब किस करवट बैठेगी. जेडीयू के सामने विकल्प विशेष राज्य के दर्जे की मांग खारिज होने के बाद जेडीयू बैकफुट पर है. दूसरी तरफ, लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर जीत हासिल कर पार्टी उत्साह में भी है. नीतीश कुमार चुनाव के बाद से ही पार्टी संगठन को मजबूत करने में लगे हैं. वह बार-बार यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार को वह बिना किसी शर्त समर्थन दे रहे हैं. ऐसे में इस भाव को वह जनता के बीच ले जा सकते हैं कि हम तो भाजपा और पीएम मोदी को हर स्तर पर सहयोग कर रहे हैं लेकिन उनकी तरफ से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है. बिहार एनडीए में खटास! इससे बिहार एनडीए के भीतर भी खटास बढ़ेगी. केंद्र की मोदी कैबिनेट में भी जेडीयू को न तो मनचाहा मंत्रालय और न ही मनचाहा मंत्री पद मिला. ऐसे में नीतीश के सामने एक ही विकल्प है. अपनी पार्टी को मजबूत कर 2025 के विधानसभा की तैयारी. इस चुनाव में वह भाजपा के साथ बराबरी की डील करने पर जोर देगी. वह 2020 में हुए नुकसान की भरपाई करना चाहेंगे. साथ ही बिहार सरकार में वह ज्यादा ताकत के साथ अपनी जेडीयू की मौजूदगी दर्ज करवाएंगे. फिलहाल की राजनीतिक परिस्थिति में नीतीश के एनडीए से अलग होने की संभावना काफी कम है. क्योंकि उनके निकलने मात्र से मोदी सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा. दूसरी तरफ उनके अलग होने के बावजूद इंडिया गठबंधन केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में हैं. Tags: Chief Minister Nitish Kumar, JDU newsFIRST PUBLISHED : July 22, 2024, 15:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed