बूढ़ी गंगा को ​अब इसरो देगा नया जीवन!महाभारत काल से जुड़ा है इस नदी का इतिहास

बूढ़ी गंगा को ​अब इसरो देगा नया जीवन!महाभारत काल से जुड़ा है इस नदी का इतिहास
मेरठ. मेरठ शहर से 45 किलोमीटर दूर महाभारत कालीन हस्तिनापुर में एक बार फिर से बूढ़ी गंगा के जीवित होने की आस जग गई है. पिछले कई वर्षों से निरंतर बूढ़ी गंगा के अस्तित्व को बचाने के प्रयास कि जा रहे हैं. शोभित विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. प्रियंक भारती के प्रयास के बाद अब हस्तिनापुर में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा गंगा से संबंधित क्षेत्र में खुदाई का कार्य शुरू करा दिया गया है. इससे उम्मीद जगी है कि इस क्षेत्र में पहले वाले बहाव में क्षेत्र में फिर से गंगा अविरल होकर बहा करेगी. एनजीटी के निर्देश पर काम शुरू दरअसल, बूढ़ी गंगा का मामला एनजीटी कोर्ट में भी चल रहा है. ऐसे में एनजीटी के सख्त रुख अपनाने के बाद मेरठ जिलाधिकारी दीपक मीणा ने बूढ़ी गंगा से संबंधित क्षेत्र के कार्य में तेजी लाने के लिए संबंधित क्षेत्र के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं. इसके बाद क्रांति दिवस के अवसर पर हस्तिनापुर के अधिकारियों द्वारा संबंधित क्षेत्र में खुदाई संबंधित कार्य शुरू कर दिया गया है. ताकि जल्द से जल्द बूढ़ी गंगा को जीवित किया जा सके. किसानों के लिए वरदान बन सकती है बूढ़ी गंगा हस्तिनापुर के पहलुओं पर विभिन्न माध्यम से रिसर्च करते आ रहे नेचुरल साइंस ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं शोभित विश्वविद्यालय का असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती ने लोकल 18 को बताया कि अगर फिर से पुराने अस्तित्व में बूढ़ी गंगा की जलधारा हस्तिनापुर से संबंधित विभिन्न क्षेत्र में होते हुए बहे तो जिस प्रकार हर साल संबंधित क्षेत्र में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है. किसानों को अपने घर भी छोड़ने पड़ते हैं. बड़ी मात्रा में फसल भी बर्बाद होती है. उससे राहत मिल पाएगी. वह कहते हैं कि जब महाभारत कालीन तथ्यों का अध्ययन किया जाता है तो बाढ़ से बचाने में सबसे ज्यादा सशक्त माध्यम बूढ़ी गंगा को ही माना गया है. वह बताते हैं कि आज भी अगर आप द्रौपदी घाट के नजदीक जाएंगे तो आपको कुछ क्षेत्र में बूढ़ी गंगा की जलधारा देखने को मिलेगी. हालांकि, विभिन्न ऐसे मार्ग है जिन पर जलधारा का कार्य अवरुद्ध है. जब वह खुल जाएंगे. तब क्षेत्र के विकास में भी एक बड़ी भूमिका निभाएंगे. इसरो भी देगा साथ प्रियंक भारती ने लोकल 18 को बताया कि उन्होंने इसरो को एक पत्र लिखा था. इसके बाद इसरो ने साथ काम करने की अनुमति दी है. इसलिए, वे बूढ़ी गंगा से संबंधित सभी डाटा इसरो को भेज रहे हैं. ताकि बूढ़ी गंगा को लेकर पूरा एक डाटा बेस बन सके. उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी दीपक मीणा ने भी रिमोट सेंसिंग सेंटर को बूढ़ी गंगा के लिए पत्र लिखा है. इससे इसरो के माध्यम से भी पता लगाया जा सकेगा कि किस-किस क्षेत्र से यह गंगा बहती थी. ऐतिहासिक साक्ष्य ​भी मिले लोकल 18 को विभिन्न ऐति​हासिक दस्तावेजों के मिली जानकारी के अनुसार आज भी हस्तिनापुर में आपको बूढ़ी गंगा के पुल के नजदीक कर्ण मंदिर दिखाई देगा. इसका वर्णन ऐतिहासिक तथ्यों में देखने को मिलता है. दरअसल, कभी कर्ण मंदिर, पांडेश्वर मंदिर व द्रौपदी घाट के पास से होते हुए हस्तिनापुर में मुख्य गंगा में यह जलधारा प्रवेश करती थी. इसी गंगा के जल से स्नान करते हुए पांचों पांडव के साथ द्रौपदी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते थे. Tags: Ganga river, Hastinapur History, Latest hindi news, Local18, Meerut newsFIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 08:40 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed