जब मां ने प्रमोद बोस की थिएटर के लिए बेचे थे अपने गहने उस पल को याद कर भावुक

मदर्स डे की विशेष पर्व के उपलक्ष्य में आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे, जिनकी सफलता और फेम से तो सभी परिचित हैं, लेकिन उनके सफलता के पीछे उनकी मां के संघर्ष को कोई नहीं जानता है.

जब मां ने प्रमोद बोस की थिएटर के लिए बेचे थे अपने गहने उस पल को याद कर भावुक
लखनऊ/अंजलि सिंह राजपूत: कहते हैं न मां अपने बच्चों की खुशी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है. ऐसी ही एक कहानी आज हम आपको बताएंगे, जिन्होंने अपने क्षेत्र के खूब तरक्की की है. लेकिन आप सिर्फ उनके तरक्की को जानते हैं, उनके संघर्ष से आप अपरिचित हैं. मदर्स डे के स्पेशल सीरीज में हम आपको रंग मंच के बड़े हस्ती प्रभात कुमार बोस के बारे में बताएंगे.  अपने जमाने में थिएटर के शानदार आर्टिस्ट और अब एक शानदार डायरेक्टर की भूमिका निभाने वाले प्रभात कुमार बोस को भला कौन नहीं जानता है. प्रभात एक वक्त बॉलीवुड में भी काम किए थे, लेकिन फिर कुछ परेशानियों की वजह से वह बॉलीवुड छोड़ दिए.  प्रभात कुमार अपने सफलता का सारा श्रेय अपनी मां को देते हैं, जब बॉलीवुड में उन्हें काम नहीं मिल रही थीं, तब उनकी मां ने अपने गहने बेच दिए थे. पिता थे खिलाफ आकांक्षा थिएटर के मालिक प्रभात ने बताया कि उनका जन्म 1955 में हुआ था. पिता लखनऊ में रेलवे डीआरएम ऑफिस में अच्छे पद पर काम करते थे. मां घर में हाउसवाइफ थी.  5 साल की उम्र में उन्होंने अपने घर पर ही 1960 में छोटे-छोटे बच्चों के साथ मिलकर नाटक करना शुरू कर दिया. फिर इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की और फिल्म इंस्टीट्यूट में जाने की बात पिता से कही तो पिता इसके खिलाफ थे. पिता ने मना कर दिया, फिर उन्होंने अपनी मां को पिता को मनाने के लिए कहा. मां ने पिता को समझाया और फिर कहीं जाकर इनका दाखिला फिल्म इंस्टीट्यूट में हुआ. इस वजह से बेचे गहने आकांक्षा थिएटर के मालिक प्रभात ने बताया कि उन्होंने आकांक्षा थिएटर की स्थापना 15 अप्रैल 1977 में की थीं.  लेकिन उनके साथ के लोग मुंबई निकल गए. लखनऊ में इस थिएटर को अच्छे से चलाने में इन्हें दिक्कत हो रही थी. थिएटर को बचाए रखने के लिए इन्होंने अपने घर का फर्नीचर तक बेच दिया था. अंत में कुछ नहीं मिला, तो इन्होंने अपनी मां से गहने मांगे, मां ने भी अपने बेटे के सपने और खुशी के लिए सारे गहने दें दी. एक-एक कर आकांक्षा थिएटर के मालिक प्रभात ने अपनी मां के सारे गहने बेच दिए. जिन्हें वह दोबारा खरीद नहीं सकें. लेकिन खास बात यह रही की मां के गहने बेचकर इन्होंने जिस थिएटर को बचाना चाहा था. उसे दिल्ली से ग्रांट मिल गई.  हालांकि अपने बेटे की सफलता और खुशी को देखने के लिए मां केडी बोस जीवित नहीं रही. 1989 में इन्हें दिल्ली से ग्रांट मिला और 1985 में ही इनकी मां की मृत्यु हो गई थी. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : May 10, 2024, 17:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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