आगरा: देश को आजाद हुए 77 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन आज भी आजादी के नायकों की ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें किसी के कहे जाने का इंतजार है. ऐसी ही कहानी आगरा के स्वतंत्रता सेनानी शशि भूषण शिरोमणि की है. जंग-ए-आजादी के कई किस्से आज भी उनके जहन में ताजा हैं.
अंग्रेजों के विरुद्ध करते थे जासूसी
शशि भूषण शिरोमणि आगरा के बालूगंज, प्रतापपुरा के रहने वाले हैं. 88 साल के शशि भूषण शिरोमणि पेशे से आर्किटेक्ट हैं. उन्होंने 1947 में आजादी का जश्न कई बड़े नेताओं के साथ मनाया था. जब आजादी की लड़ाई अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ी जा रही थी. तब उनकी बाल टोली ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध जासूस की तरह काम किया था.
ऐसे क्रांतिकारियों को भेजते थे संदेश
शशि भूषण शिरोमणि आजादी की लड़ाई के दौरान 12 साल के थे. वह अपने पिता के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ रहे थे. बात 1940-41 की है. तब शशि भूषण अपने बाल टोली जिसका नाम ‘बाल सुबोध निधि सभा’ था. अंग्रेजों के नाक के नीचे क्रांतिकारियों के लिए संदेश एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करते थे. उन्होंने इस काम को बाकायदा अंजाम देने के लिए कोड वर्ड और नारे बनाए थे. ताकि अंग्रेज आसानी से उनकी बातें ना समझ सकें.
शशि भूषण शिरोमणि कहते हैं कि अगर कोई आसपास अंग्रेज होता था, तो इसका एहसास दूसरे साथियों को दिलाने के लिए वह नारा लगाते थे. ‘एक दो लाल टोपी फेंक दो’. इसका मतलब अंग्रेज पुलिस अधिकारी आ चुका है.
आजादी की सुबह मनाई गई थी जश्न
शशि भूषण शिरोमणि कहते हैं कि जिस दिन आजादी मिली, वह दिन कई महीनो में बेहद महत्वपूर्ण था. जैसे ही ऑल इंडिया रेडियो पर नेहरू जी ने भाषण दिया. उसके बाद लोग घूमते हुए नाचने लगे. वह खुद दौड़ते हुए आगरा रामलीला मैदान पहुंच गए .उनको पता था कि वहां लोग इकट्ठा होंगे.
वहीं से आगरा के क्रांतिकारियों को भाषण के जरिए बताया गया कि आजादी के बाद हमें किस तरह से रहना है. क्या करना है ? उस दिन को आज भी याद करते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उसे दिन की अहमियत को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
Tags: Agra news, Independence day, Independence Day Alert, Local18FIRST PUBLISHED : August 15, 2024, 09:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed