इस दाल की खेती से होगी बंपर कमाई औषधीय गुणों से भरपूर जानें एक्सपर्ट की राय 

कृषि विशेषज्ञों की माने तो अरहर के दाल की खेती किसानों को मालामाल कर सकती है. 3 सालों के शोध में यह पाया गया कि यह फसल किसानों के साथ उपयोग करने वालों के लिए भी काफी गुणकारी और लाभकारी है.

इस दाल की खेती से होगी बंपर कमाई औषधीय गुणों से भरपूर जानें एक्सपर्ट की राय 
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: दालों की मिल रही अधिक कीमत के चलते किसानों का रुख दाल बुवाई की ओर बढ़ रहा है. वहीं, अब किसान इस दाल की खेती कर लखपति बनेंगे. जी हां, कुछ महत्वपूर्ण तरीके को अपनाकर किसान अरहर के दाल की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं. विशेषज्ञों की माने तो 3 वर्ष के शोध में यह पाया गया कि किसानों के लिए ही नहीं बल्कि उपयोग करने वालों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद, गुणकारी और अच्छा खासा मुनाफा देने वाली फसल है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं. किस तरह करें अरहर की दाल की खेती. जिससे कमा सकते हैं लाखों का मुनाफा. तो चलिए जानते हैं इसकी पूरी प्रोसेस. मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान के एचओडी प्रो. अशोक कुमार सिंह ने लोकल 18 से कहा कि हम लोग लगभग 20 सालों से किसानों के हित में शोध कर रहे हैं. लगभग अरहर की खेती पर 3 सालों तक हम लोगों ने शोध किया, जिसमें पाया गया कि अरहर की खेती किसानों के लिए और प्रयोग करने वालों के लिए बहुत शानदार है. यह शाकाहार में प्रोटीन का सबसे अच्छा माध्यम है और बलिया जनपद मे सोहाव ब्लॉक इसके लिए बहुत मशहूर है. यह देश में सबसे ज्यादा उपयोग में लाई जाती है. इसकी खेती के लिए समय आ चुका है किसान तैयारी में जुट गए हैं. ऐसे करें बुवाई ये है अच्छी प्रजाति इसकी बुवाई के लिए अच्छी दोमट या मटियार भूमि हो. इस क्षेत्र के लिए अरहर की प्रजाति बहार बहुत अच्छी है. यह प्रजाति 230 से 235 दिनों में पक करके तैयार हो जाती है. एक बीघे के लिए 5 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है. बुवाई करते समय खास ध्यान रखें की पौध से पौध की दूरी और लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर × 15 सेंटीमीटर हों. बुवाई करने से पहले बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित जरूर कर लें. इस पर भी रखें खास ख्याल आगे चलकर बीमारियों से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा पाउडर को गोबर की खाद में मिलाकर 15 दिनों तक रखने के बाद खेत में प्रयोग करें. इसमें फास्फोरस वाले उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है. गंधक वाले उर्वरक का भी प्रयोग किया जा सकता है. चार बीघा के हिसाब से 20 से 25 ग्राम नाइट्रोजन, 45 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटाश और 20 किलोग्राम गंधक तत्व के रूप में उपयोग किया जाता है. आगे चलकर आती है समस्या, ये है निदान जब इसकी बढ़वार होने लगती है तो डीएपी उर्वरक का 2% का घोल एक बार छिड़काव कर देना चाहिए. जिससे इसकी शाखा और फली ज्यादा और मजबूत होते हैं. यह ध्यान रहे की फूल आने के बाद सिंचाई न करें नहीं तो फल आने के बजाय पुनः फूल आने लगते हैं. ये है इस खेती की बड़ी बीमारी ऐसे करें बचाव… ज्यादा नमी और फफूद के कारण इसमें बहुत खतरनाक बीमारी आती है, इसको सूखा रोग के नाम से जानते हैं. इसका निदान यही है की जिस पौधे में यह रोग लगे उसको उखाड़ कर फेंक दें या जला दें. इसमें एक फली वेधक कीड़ा लगता है. अगर इसका इतिहास हो कि यह कीड़ा इस क्षेत्र में आता है तो इसका बहुत आसान सा उपाय है. बाजार में एक कीटनाशक आता है जिसका नाम डेसिस है यह 2.8 % का अल्फा मेथेन होता है. 1 लीटर पानी में डेढ़ मिलीलीटर के हिसाब से छिड़काव कर दे, उसके बाद कभी भी यह कीड़ा नहीं आएगा. ऐसे बनेंगे किसान मालामाल… अच्छे से देखरेख करके किसान इस खेती को करते हैं, तो आसानी के साथ 8 से 9 कुंतल अरहर की दाल तैयार हो जाती है. 10 से 15 कुंतल इसका डंठल भी तैयार हो जाता है. इस तरह किसान इसकी खेती कर लाखों रुपए का मुनाफा आसानी के साथ कमा सकते हैं. . Tags: Farming, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : April 30, 2024, 16:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed