मंदिर के महंत राधा वल्लभ चतुर्वेदी ने बताया कि यह भगवान श्री कृष्ण के परिवार का मंदिर है. माता देवकी ने यहां मां बगलामुखी की स्थापना की थी, जिसे श्रीमद् भागवत में अंबिका वन के नाम से वर्णित किया गया है.
मथुरा: भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज में कई लीलाएं कीं. कहीं माखन चुराया, कहीं गायों को चराया, कहीं गोपियों के कपड़े चुराए, तो कहीं गोपियों से माखन खाया. मथुरा में एक ऐसा मंदिर है जो श्री कृष्ण के जन्म से भी पहले का है. इस मंदिर में विराजमान माता को महाविद्या के नाम से जाना जाता है. यह माता श्री कृष्ण के परिवार की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती हैं.
माता देवकी ने भले ही श्री कृष्ण को जन्म दिया हो, लेकिन उनका पालन पोषण करने वाली मां यशोदा थीं. कृष्ण को दोनों माताओं का पुत्र भी कहा गया है. कृष्ण ने जन्म भले ही कंस की जेल में लिया हो, लेकिन उनका मुंडन मां यशोदा ने अपनी कुलदेवी के यहां कराया था. कृष्ण की कुलदेवी आज भी मथुरा में विराजमान हैं. प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मां महाविद्या के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने आते हैं.
कृष्ण के परिवार का मंदिर
मंदिर के महंत राधा वल्लभ चतुर्वेदी ने बताया कि यह भगवान श्री कृष्ण के परिवार का मंदिर है. माता देवकी ने यहां मां बगलामुखी की स्थापना की थी, जिसे श्रीमद् भागवत में अंबिका वन के नाम से वर्णित किया गया है. 10 महाविद्याओं में से तीन महाविद्याएं यहां मौजूद हैं. माता महाविद्या के दरबार में जो भी भक्त आता है, वह निराश नहीं लौटता. मां उनकी मनोकामना पूर्ण करती हैं, और भक्त यहां आकर अपने समर्थ के अनुसार उत्सव मनाते हैं.
शिवाजी महाराज ने माता के मंदिर में ली थी शरण
मंदिर के पुजारी ने बताया कि जब मराठा सम्राट शिवाजी महाराज आगरा जेल में बंद थे, तब उन्होंने जेल तोड़कर भागने के बाद मथुरा पहुंचकर महाविद्या के मंदिर में शरण ली थी. मंदिर पर मुगलों के आक्रमण भी हुए थे.
मराठा शैली में आज भी मिलता है मंदिर का ढांचा
महाविद्या मंदिर के पुजारी ने यह भी बताया कि मराठा सम्राट शिवाजी महाराज ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था. महाविद्या के मंदिर में मराठा शैली की झलक आज भी देखने को मिलती है. मंदिर की गुंबद मराठा शैली में बनी हुई हैं, और मराठा भक्त भी इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आते हैं.
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