देश में अंग दान करने के मामले में महिलाएं आगे पिछले 20 सालों में इतने प्रतिशत ऑर्गन किए डोनेट
देश में अंग दान करने के मामले में महिलाएं आगे पिछले 20 सालों में इतने प्रतिशत ऑर्गन किए डोनेट
ऑर्गन इंडिया की चेयरपर्सन अनिका पराशर ने कहा कि जिन मरीजों को ट्रांसप्लांट की जरूरत है और जो अंग भारत में उपलब्ध हैं, उनके बीच एक बहुत बड़ा अंतर है. आज भी भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में लोगों में अंग दान को लेकर अज्ञानता, हिचकिचाहट और अंधविश्वास व्याप्त है.
हाइलाइट्सभारत में पिछले सात वर्षों में अंग दान की संख्या में लगभग 50% की वृद्धि हुई है.भारत में 2014 में 6,916 ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए, जो 2021 में बढ़कर 12,259 हो गए.पिछले 20 वर्षों के विश्लेषण से पता चला है कि जीवित दाताओं में 75-80% महिलाएं थीं और प्राप्तकर्ताओं में समान हिस्सा पुरुषों का था.
भारत में पिछले सात वर्षों में अंग दान की संख्या में लगभग 50% की वृद्धि हुई है, लेकिन आंकड़ों के अनुसार, ट्रांसप्लांट कराने वाले रोगियों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए ये संख्या काफी पीछे रह गई है. ऑर्गन इंडिया (ORGAN India) के आंकड़ों के मुताबिक, अंगदान को भारत में अधिक स्वीकृति मिल रही है, लेकिन ऑर्गन ट्रांसप्लांट भी अंग दान की तुलना में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. उदाहरण के लिए, वार्षिक अंग प्रत्यारोपण गतिविधि (Annual organ transplantation activity) में भारत में 2014 में 6,916 ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए, जो 2021 में बढ़कर 12,259 हो गए. इसमें करीब 77% की वृद्धि देखी गई. इसमें किडनी, लिवर, हार्ट, फेफड़े, अग्न्याशय और छोटी आंत के प्रत्यारोपण शामिल हैं.
भारत में वार्षिक अंग प्रत्यारोपण गतिविधि 2014-2021.
इसके विपरीत, पिछले वर्ष 1,619 की तुलना में 2014 में मृतक दाताओं द्वारा दान किए गए अंगों की संख्या 1,030 थी. इसमें लगभग 57% की वृद्धि दर्ज की गई थी. इसमें जीवित दाताओं द्वारा किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट करने की संख्या शामिल नहीं है. जहां, ये दोनों ही संख्या बढ़ रही है, बावजूद इसके डिमांड और सप्लाई में भारी अंतर है. ऑर्गन इंडिया की चेयरपर्सन अनिका पराशर ने न्यूज18 से बात करते हुए कहा कि जिन मरीजों को ट्रांसप्लांट की जरूरत है और जो अंग भारत में उपलब्ध हैं, उनके बीच एक बहुत बड़ा अंतर है. पराशर आगे कहती हैं कि आज भी भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में लोगों में अंग दान को लेकर अज्ञानता, हिचकिचाहट और अंधविश्वास व्याप्त है.
मृत दाताओं द्वारा दान किए गए अंगों की कुल संख्या.
कई बार तो ऐसा भी होता है कि मरीज अपने अंगों को गिरवी रख देता है, लेकिन परिवार वाले इसमें साथ देने से इनकार कर देते हैं. यहां तक कि कई ब्रेन-डेड रोगी जिसे दोबारा जिंदगी नहीं मिल सकती है, उनके अंगों को भी दान नहीं किया जाता है, जबकि इससे कई गंभीर रोगियों की जान बचाई जा सकती है.
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क्या कहते हैं आंकड़े
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) की वेबसाइट पर सरकार के अनुमान के मुताबिक, हर साल लगभग 1.8 लाख लोग किडनी फेलियर से पीड़ित होते हैं. फिर भी किडनी ट्रांसप्लांट की कुल संख्या लगभग 6,000 है. भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2 लाख रोगियों की मौत लीवर फेलियर या लीवर कैंसर के कारण हो जाती है. प्रतिवर्ष लगभग 25,000 से 30,000 लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है, लेकिन सिर्फ 1,500 ही लिवर ट्रांसप्लांट किए जा रहे हैं.
जीवित और मृतक अंग दाताओं द्वारा दान की गई किडनी की कुल संख्या.
इसी तरह, लगभग 50,000 लोग हर साल हार्ट फेलियर के शिकार होते हैं, लेकिन प्रत्येक वर्ष सिर्फ 10 से 15 ही हार्ट ट्रासंप्लांट हो पाते हैं. परशार कहती हैं कि भारत में कुल अंग दान और अंग प्रत्यारोपण के बीच के अंतर का अनुमान लगाना मुश्किल है. मोटे तौर पर लगभग आधे मिलियन लोग हैं, जो ऑर्गन फेलियर से पीड़ित हैं और उनमें से 3% से भी कम लोगों को जीवन रक्षक अंग प्राप्त हो पाता है.
मृतक अंग दाताओं द्वारा दान की गई हार्ट की कुल संख्या.
महिला बनाम पुरुष अंग दाता
किडनी रोग और अनुसंधान केंद्र संस्थान के डॉ. विवेक कुटे द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि भारत में 12,625 प्रत्यारोपणों में से 72.5% प्राप्तकर्ता पुरुष थे. पिछले 20 वर्षों के विश्लेषण से पता चला है कि जीवित दाताओं में 75-80% महिलाएं थीं और प्राप्तकर्ताओं में समान हिस्सा पुरुषों का था. पराशर कहती हैं कि यहां सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों महिलाओं को अंग प्राप्त करने के मामले में कम योग्य माना जाता है और पुरुषों की तुलना में जीने का कम मौका दिया जाता है? इससे यह साफ जाहिर होता है कि आज भी भारतीय समाज में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्वपूर्ण या कीमती माना जाता है. उन्होंने कहा कि महिला डोनर्स के अधिक होने के कई कारण होते हैं, जैसे अपने पती के प्रति भावनात्मक लगाव, आर्थिक चिंता, घर में कमाने वाला ना होने की चिंता, पुरुष की मौत के बाद घर-परिवार को देखने-संभालने की चिंता आदि.
पराशर के अनुसार, जहां अपने अंगों को गिरवी रखने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन जब वास्तविक ट्रांसप्लांट की बात आती है तो हम अभी भी अन्य देशों की तुलना में पिछड़ रहे हैं. सही तरीके से ट्रांसप्लांट हो सके, इसके लिए देश भर के अस्पतालों और शहरों में अधिक जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. अधिकारियों, पुलिस, मेडिकल फ्रैटर्निटी और परिवारों के बीच उचित समन्वय की आवश्यकता है. ब्रेन-डेथ कमेटी को टियर 1 और टियर 2 शहरों में अधिक अस्पतालों में स्थापित करने की जरूरत है.
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Tags: Health, India, Kidney transplant, Lifestyle, Liver transplant, Organ DonationFIRST PUBLISHED : December 06, 2022, 12:53 IST