17 करोड़ का इंजेक्शन: दुर्लभ बीमारी वाले मरीज कैसे जुटाते हैं इतना पैसा
17 करोड़ का इंजेक्शन: दुर्लभ बीमारी वाले मरीज कैसे जुटाते हैं इतना पैसा
भारत में बहुत सारे छोटे बच्चे दुर्लभ रोगों से ग्रस्त हैं. इन बीमारियों का इलाज भी करोड़ों रुपये में होता है. आपको मालूम है कि 17-18 करोड़ के इंजेक्शन के लिए मरीज के पेरेंट्स इतना पैसा कहां से लाते हैं? आइए जानते हैं हर सवाल का जवाब..
आपने अक्सर सोशल मीडिया पर या खबरों में पढ़ा होगा कि फलां बच्चे को 17 करोड़ के इंजेक्शन की जरूरत है. यह दुर्लभ बीमारी से जूझ रहा है. इसके माता-पिता बेहद गरीब हैं. अगर इसे इंजेक्शन नहीं मिला तो बच्चे की मौत हो जाएगी.. या सुना होगा कि फलां बच्चे के लिए अमेरिका से 18 करोड़ का इंजेक्शन मंगाकर लगाया गया. अब बच्चा पूरी तरह ठीक है.. आपने कभी सोचा है कि आखिर ये कौन सी बीमारियां हैं, जिनका इलाज इतना महंगा होता है? इनके लिए बाहर से ही इंजेक्शन या दवाएं क्यों आती हैं? गरीब मां-बाप अपने बच्चे की जान बचाने के लिए आखिर 17-18 करोड़ रुपये का जुगाड़ कैसे करते हैं? क्या ऐसा भी होता है कि इतना पैसा इकठ्ठा नहीं हो पाता और बच्चे की जान चली जाती है?…… आज हम आपके इन सभी सवालों के जवाब इस खबर में दे रहे हैं. क्या होती है दुर्लभ बीमारी
ऐसे मामले दुर्लभ बीमारी के होते हैं. आमतौर पर यह जन्मजात बीमारी होती है और अधिकांशत: बच्चों में ही पाई जाती है. भारतीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा बनी नेशनल पॉलिसी फॉर रेयर डिजीज 2021 के अनुसार भारत में दुर्लभ बीमारी और इससे पीड़ित मरीजों को लेकर पूरे आंकड़े नहीं हैं हालांकि आईसीएमआर इसे तैयार करने की कोशिश कर रहा है.
ये भी पढ़ें
प्रेशर कुकर में दाल-चावल बनाना सही या गलत? नष्ट हो जाते हैं प्रोटीन-विटामिन? सच जानकर उड़ जाएंगे होश
हालांकि दुर्लभ बीमारी को लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइंस हैं. डब्ल्यूएचओ ऐसी बीमारी को रेयर डिजीज मानता है जो किन्हीं 1 हजार बच्चों में से 1 को हो या यह डिसऑर्डर लाइफलांग हो, हालांकि सभी देशों की अलग-अलग पॉलिसी है और किसी भी बीमारी को दुर्लभ मानने के अलग अलग मानक हैं. यह सब उस देश में मौजूद हेल्थकेयर सुविधाओं और जनसंख्या पर भी निर्भर करता है. दुनिया में कितनी हैं रेयर डिजीज?
दुनिया में 7 से 8 हजार रेयर डिजीज हैं, जिनमें से सिर्फ 5 फीसदी का ही इलाज उपलब्ध है. 95 फीसदी बीमारियों का सही इलाज ही मालूम नहीं है. यही वजह है कि 10 में से 1 व्यक्ति ही अपनी रेयर डिजीज का सही इलाज ले पाता है. वहीं अगर दवा मौजूद है तो वह इतनी महंगी है कि उसे हासिल करना मुश्किल है. दुर्लभ बीमारी की दवा करोड़ों में क्यों?
एनपीआरडी के अनुसार रेयर डिजीज के मरीजों की संख्या काफी कम है, ऐसे में कोई भी ड्रग निर्माता जल्दी इन दवाओं पर रिसर्च करने और उन्हें बनाने की जहमत नहीं उठाता. इसका परिणाम यह होता है कि ये अनाथ बीमारियों या अनाथ दवाओं के रूप में जानी जाती हैं. भारत में कोई भी लोकल मैन्यूफैक्चरर रेयर डिजीज की दवा नहीं बनाता है, वहीं ग्लोबली सिर्फ कुछ मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां ही ये दवाएं बना रही हैं. इतना महंगा इलाज होने के चलते भारत सरकार भी इसे फ्री नहीं दे पाती.
रेयर डिजीजी का इलाज कितना महंगा है कि इतने में छोटी बीमारियों से जूझ रहे लाखों लोगों का इलाज हो जाता है. इसे ऐसे समझ सकते हैं, उदाहरण के लिए रेयर डिजीज से जूझ रहे एक 10 किलोग्राम वजन के बच्चे पर 10 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये सालाना तक का खर्च इलाज में आता है जो उम्र और वजन के साथ बढ़ता जाता है. जबकि कई बच्चों को सिर्फ एक बार या इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है, जिसकी कीमत 10 करोड़ रुपये से लेकर 30 करोड़ तक हो सकती है. अमेरिका और कनाडा से क्यों आते हैं महंगे इंजेक्शन-दवाएं
यूएस और कनाडा में ऑर्फन ड्रग एक्ट लागू है. इसलिए यहां दवा निर्माता कंपनियों को सरकार इंसेटिव भी देती है. यही वजह है कि मैन्यूफैक्चरर्स दवा की कीमतें बढ़ाकर और सरकार से इंसेंटिव लेकर इन दवाओं को तैयार करते हैं. यही वजह है कि ज्यादातर रेयर डिजीज की दवाएं इन्हीं देशों से मंगानी पड़ती हैं. भारत में ये हैं कॉमन रेयर डिजीज..
. प्राइमरी इम्यूनोडेफिसिएंसी डिसऑर्डर
. लाइसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (गौचर्स डिजीज, पॉम्पी डिजीज, फैब्री डिजीज, म्यूकोपॉलीसेक्रीडोजेज आदि)
. स्मॉल मॉलीक्यूल इनबॉर्न एरर्स ऑफ मेटाबोलिज्म (मेपल सिरप यूरिन डिजीज, ऑर्गनिक एकेडेमियाज)
. सिस्टिक फाइब्रोसिस
. ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा
. मस्कुलर डिस्ट्रॉफीज
. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी भारत में इन 8 अस्पतालों में होता है इलाज
आईसीएमआर की तरफ से नेशनल रजिस्ट्री फॉर रेयर डिजीज अस्पतालों में खोला गया है, जहां रेयर डिजीज का डायग्नोसिस और मैनेजमेंट होता है, साथ ही मरीजों का डाटा भी रखा जाता है.
देश दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए 8 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस हैं. जिनमें से दो दिल्ली में हैं. ये सेंटर इन अस्पतालों में हैं.
. एम्स नई दिल्ली
. दूसरा मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज
. संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज लखनऊ
. पीजीआई मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़
. सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स विद निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज हैदराबाद
. किंग एडवार्ड मेडिकल हॉस्पिटल मुंबई
. इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च कोलकाता
. सेंटर फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स विद इंदिरा गांधी अस्पताल, बंगलुरू कितनी आर्थिक मदद देती है भारत सरकार?
एनपीआरडी 2021 के अनुसार जिस रेयर डिजीज में वन टाइम ट्रीटमेंट की जरूरत होती है, उसमें भारत सरकार राष्ट्रीय आरोग्य निधि के अंतर्गत सिर्फ 20 लाख तक का अनुदान देती है. इसके लिए लाभार्थी का बीपीएल धारक होना जरूरी नहीं है बल्कि वह उस 40 फीसदी आबादी का हिस्सा होने चाहिए जो प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत इलाज करा सकते हैं.
हालांकि दिसंबर 2022 में राज्यसभा में दिए एक जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से बताया गया कि केंद्र सरकार एनपीआरडी के तहत किसी भी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में इलाज करा रहे रेयर डिजीज के मरीज को 50 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद देती है. यह पैसा मरीज के खाते में न जाकर इलाज करने वाले अस्पताल के पास जाता है. इसके अलावा भारत सरकार सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को 5 करोड़ रुपये बीमारियों के डायग्नोसिस और इलाज के लिए सैटअप के लिए भी देती है. क्राउड फंडिंग भी कराती है भारत सरकार
सरकारी मदद के अलावा भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से ऑनलाइन क्राउड फंडिंग के लिए पोर्टल भी तैयार किया है. जहां रेयर डिजीज के मरीज का इलाज कर रहे एनपीआरडी के तहत नोटिफाइड अस्पताल मरीज की बीमारी की डिटेल, उसका बैंक अकाउंट, एस्टिमेटेड कॉस्ट की जानकारी पोर्टल पर दे सकते हैं. इस पोर्टल पर कोई भी व्यक्ति, संस्था, कंपनी, फर्म या अन्य लोग मरीज के इलाज के लिए दान दे सकते हैं. इसमें दिया गया पैसा कंपनियों की सीएसआर एक्टिविटी में भी जोड़ा जाता है.
इस दौरान अगर जरूरत से ज्यादा फंड आ जाता है तो पहले उसमें से मरीज का इलाज किया जाएगा उसके बाद इस फंड का इस्तेमाल वह अस्पताल रिसर्च के लिए कर सकता है.
ये भी पढ़ें
चाय पीने वालों के लिए एक अच्छी, एक बुरी खबर.. शौकीन जरूर पढ़ लें, फिर ICMR की सलाह पर खुद करें फैसला
Tags: Genetic diseases, Health News, Lifestyle, Medicines, Muscular dystrophy disease, Trending newsFIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 17:26 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed