Harivansh Rai Bachchan Poems: हरिवंश राय बच्चन के बर्थडे पर पढ़ें उनकी लिखी मधुकलश मुझे पुकार लो समेत ये कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Poems: हरिवंश राय बच्चन के बर्थडे पर पढ़ें उनकी लिखी मधुकलश मुझे पुकार लो समेत ये कविताएं
Harivansh Rai Bachchan Birthday Special: हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ था. उन्होंने अपने जीवनकाल कई उम्दा कविताएं लिखी हैं, जिनमें से मधुशाला सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है. आज उनके जन्मदिन विशेष पर पढ़ें उनकी कुछ चुनिंदा कविताएं.
हाइलाइट्सआज हिंदी भाषा के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन का जन्मदिन है. 27 नवंबर 1907 को हरिवंश राय बच्चन का जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था.
Harivansh Rai Bachchan Poems: आज (27 नवंबर) हिंदी भाषा के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) का जन्मदिन है. आज ही के दिन यानी 27 नवंबर 1907 को हरिवंश राय बच्चन का जन्म इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. इलाहाबाद को अब प्रयागराज नाम से जाना जाता है. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई ऐसी अद्भुत और उम्दा कविताएं लिखी हैं, जो आज भी पढ़ने वालों के दिल को छू जाती हैं. वे हिंदी साहित्य के छायावादी रचनाकार थे. हर कोई उनकी कविताओं को पढ़ना पसंद करता है.
उनकी सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध कविताओं में से एक है मधुशाला. इसके अलावा, उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं, जिनमें तेरा हार, मधुकलश, मधुबाला, हलाहल, एकांक-संगीत, सूत की माला, प्रणय पत्रिका, निशा निमंत्रण, दो चट्टानें, मिलन यामिनी, बहुत दिन बीते आदि शामिल हैं. दो चट्टानें के लिए उन्हें वर्ष 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था. आज हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिन विशेष पर पढ़ें, उनकी कुछ शानदार और चुनिंदा कविताएं.
इसे भी पढ़ें: Harivansh Rai Bachchan Birthday Special: हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी चुनिंदा कविताएं हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
मधुकलश
है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर!
सर में जीवन है, इससे ही
वह लहराता रहता प्रतिपल,
सरिता में जीवन, इससे ही
वह गाती जाती है कल-कल
निर्झर में जीवन, इससे ही वह झर-झर झरता रहता है,
जीवन ही देता रहता है
नद को द्रुतगति, नद को हलचल,
लहरें उठती, लहरें गिरती,
लहरें बढ़ती, लहरें हटती;
जीवन से चंचल हैं लहरें,
जीवन से अस्थिर है सागर.
है आज भरा जीवन मुझमें,
है आज भरी मेरी गागर!
नभ का जीवन प्रति रजनी में
कर उठता है जगमग-जगमग,
जलकर तारक-दल-दीपों में;
सज नीलम का प्रासाद सुभग,
दिन में पट रंग-बिरंगे औ’
सतरंगे बन तन ढंकता,
प्रातः-सायं कलरव करता
बन चंचल पर दल के दल खग,
प्रार्वट में विद्युत् हंसता,
रोता बादल की बूंदों में,
करती है व्यक्त धरा जीवन,
होकर तृणमय होकर उर्वर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!
मारुत का जीवन बहता है
गिरि-कानन पर करता हर-हर,
तरुवर लतिकाओं का जीवन
कर उठता है मरमर-मरमर,
पल्लव का, पर बन अम्बर में
उड़ जाने की इच्छा करता,
शाखाओं पर, झूमा करता
दाएं-बाएं नीचे-ऊपर,
तृण शिशु, जिनका हो पाया है
अब तक मुखरित कल कंठ नहीं,
दिखला देते अपना जीवन
फड़का देते अनजान अधर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!
जल में, थल में, नभ मंडल में
है जीवन की धरा बहती,
संसृति के कूल-किनारों को
प्रतिक्षण सिंचित करती रहती,
इस धारा के तट पर ही है
मेरी यह सुंदर सी बस्ती
सुंदर सी नगरी जिसको है
सब दुनिया मधुशाला कहती,
मैं हूं इस नगरी की रानी
इसकी देवी, इसकी प्रतिमा,
इससे मेरा सम्बंध अतल,
इससे मेरा सम्बंध अमर.
है आज भरा मेरा जीवन
है आज भरी मेरी गागर!
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
इसे भी पढ़ें: संगम नगरी प्रयागराज थी हरिवंश राय बच्चन की कर्मभूमि, ये रही संघर्ष की कहानी
बाढ़
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
वह सब नीचे बैठ गया है
जो था गरू-भरू,
भारी-भरकम,
लोह-ठोस
टन-मन
वज़नदार!
और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं
किरासिन की खालीद टिन,
डालडा के डिब्बे,
पोलवाले ढोल,
डाल-डलिए-सूप,
काठ-कबाड़-कतवार!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
मुझे पुकार लो
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
ज़मीन है न बोलती,
न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे
नहीं ज़बान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहां
न अजनबी गिना गया,
कहां-कहां न फिर चुका
दिमाग-दिल टटोलता,
कहां मनुष्य है कि जो
उम्मीद छोड़कर जिया,
इसीलिए अड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो,
तिमिर-समुद्र कर सकी
न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी,
विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला,
न कोर भेर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी
विरह-घिरी विभावरी,
कहां मनुष्य है जिसे
कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा
कि तुम मुझे पुकार लो!
उजाड़ से लगा चुका
उमीद मैं बाहर की,
निदाघ से उमीद की,
वसंत से बयार की,
मरुस्थली मरीचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका
उम्मीद मैं तुषार की,
कहां मनुष्य है जिसे
न भूल शूल-सी गड़ी,
इसीलिए खड़ा रहा
कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो! (सभी कविताएं साभार- कविता कोश)
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी|
Tags: Birthday special, Harivansh rai bachchan, Hindi Literature, Literature, PoemFIRST PUBLISHED : November 27, 2022, 06:40 IST