वकीलों पर कोर्ट का ‘सुप्रीम’ फैसला 17 साल पुराना कंज्यूमर फोरम का फैसला पलटा
वकीलों पर कोर्ट का ‘सुप्रीम’ फैसला 17 साल पुराना कंज्यूमर फोरम का फैसला पलटा
कंज्यूमर कोर्ट ने 2007 के अपने फैसले में कहा था कि वकील की सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती हैं. राष्ट्रीय कंज्यूमर कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि वकीलों द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी सेवाएं 1986 अधिनियम की धारा 2(1)(ओ) के दायरे में आएंगी.
नई दिल्ली. क्या वकीलों द्वारा दी जाने वाली सेवाएं उपभोक्ता अधिनियम के दायरे में आती हैं? क्या किसी वकील पर इसलिए उपभोक्ता अधिनियम के तहत एक्शन हो सकता है क्योंकि उसने अपने मुवक्किल का पक्ष ठीक से कोर्ट के सामने नहीं रखा. कंज्यूमर कोर्ट ने इस मामले में वकीला को जिम्मेदार ठहराते हुए अपना फैसला सुनाया था. अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि सभी पेशेवरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को भी इसके दायरे में लाया जाता है तो अधिनियम के तहत स्थापित आयोगों में मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उपभोक्ता अधिनियम के तहत प्रदान किया गया उपाय सस्ता और कम समय वाला है. यह देखते हुए कि कानूनी पेशे की तुलना किसी अन्य पारंपरिक पेशे से नहीं की जा सकती, बेंच ने कहा कि इसका नेचर कमर्शियल नहीं है बल्कि वकालत सेवा से संबंधित नोबल प्रोफेशन है.
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जस्टिस डिलीवरी सिस्टम में वकीलों की भूमिका अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जस्टिस डिलीवरी सिस्टम में वकीलों की भूमिका अनिवार्य है. हमारे संविधान को जीवंत बनाए रखने के लिए न्यायशास्त्र का विकास केवल वकीलों के सकारात्मक योगदान से ही संभव है. वकीलों से उम्मीद की जाती है कि वे न्याय की रक्षा के लिए निडर और स्वतंत्र हों. नागरिकों के अधिकार, कानून के शासन को कायम रखने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भी वकीलों की भूमिका अहम है.
ज्यूडिशियरी की आजादी के लिए बार की भमिका अहम
बेंच ने कहा, “लोग ज्यूडिशियरी में बहुत विश्वास रखते हैं! न्यायिक प्रणाली का एक अभिन्न अंग होने के नाते बार को ज्यूडिशियरी की आजादी और बदले में राष्ट्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था को संरक्षित करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है. ऐसा माना जाता है कि वे एलीट वर्ग के बीच वकील एक बुद्धिजीवी हैं और वंचितों के बीच वो सामाजिक कार्यकर्ता हैं. यही कारण है कि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने क्लाइंट की कानूनी कार्यवाही को संभालते समय अत्यंत वफादारी, निष्पक्षता और ईमानदारी के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें.”
कंज्यूमर कोर्ट ने क्या कहा था?
यह फैसला बार और अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका पर आया, जिसमें कंज्यूमर कोर्ट (एनसीडीआरसी) के 2007 के फैसले को चुनौती दी गई थी. तक यह फैसला सुनाया गया था कि वकील और उनकी सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में आती हैं. राष्ट्रीय कंज्यूमर कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि वकीलों द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी सेवाएं 1986 अधिनियम की धारा 2(1)(ओ) के दायरे में आएंगी. अधिनियम की धारा 2(1)(ओ) “सेवा” शब्द को परिभाषित करती है, जिसका अर्थ है किसी भी विवरण की सेवा, जो संभावित उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराई जाती है और इसमें शामिल है.
Tags: Advocate, Consumer Court, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : May 14, 2024, 19:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed