SC/ST एक्ट: क्रीमी लेयर पर सुप्रीम सुझाव को रोकने के लिए कानून की जरूरत नहीं

SC/ST Reservation: एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान करने के सुप्रीम कोर्ट के सुधाव पर राजनीतिक घमासान हुआ है. कांग्रेस पार्टी ने इसके खिलाफ कानून लाने की मांग कर दी है. लेकिन, सबको पता है कि यह सुप्रीम कोर्ट का एक सुझाव मात्र है. इसको मानना या न मानना केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर है.

SC/ST एक्ट: क्रीमी लेयर पर सुप्रीम सुझाव को रोकने के लिए कानून की जरूरत नहीं
SC/ST Reservation: एससी/एसटी आरक्षण (SC/ST Reservation) को लेकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के एक अहम फैसले के बाद देश का राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले में इस समुदाय को दो वर्गों में बांटने के कुछ राज्य सरकारों के फैसले को जायज ठहराया. इसके साथ ही उसने सुझाव दिया कि एससी-एसटी आरक्षण में ओबीसी आरक्षण की तरह क्रीम लेयर का प्रावधान किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के इसी सुझाव को लेकर बवाल मचा हुआ हुआ. एससी-एसटी आरक्षण के समर्थकों का कहना है कि संविधान में यह आरक्षण आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं है. बल्कि यह आरक्षण दलित और आदिवासी समाज के साथ भेदभाव और छूआछूत की भावना को खत्म करने के लिए था. खैर, इस एक जटिल विषय है. यह सही है कि आजादी के वक्त जब इस आरक्षण को लागू किया गया था तब निश्चित तौर पर देश में छूआछूत और भेदभाव की भावना चरम पर थी लेकिन बीते 75 सालों में काफी कुछ बदल गया है. खासकर शहरी इलाकों में छूआछूत और भेदभाव काफी कम हुआ है. हालांकि आज भी यह पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. ऐसे में समाज और समय में बदलाव के साथ आरक्षण की नीति में बदलाव होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का करीब-करीब यही मतलब है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आरक्षण पर आंच नहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसकी टिप्पणी से आरक्षण की मौजूदा स्थिति पर कोई आंच नहीं आने वाली है. बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में इस आरक्षण व्यवस्था को और तार्किक बनाया है, जिससे कि इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरतमंद तबके को ज्यादा लाभ मिले. कुछ खास लोग इस आरक्षण की मलाई न खाएं. इसी उद्देश्य ने उसने क्रीमी लेयर का कांसेप्ट लाने का सुझाव दिया है. ओबीसी आरक्षण में यह प्रावधान लागू है. इसमें परिवार की आय आठ लाख रुपये सालाना से अधिक होने पर उस परिवार को आरक्षण का फायदा नहीं मिलता है. हालांकि यहां यह ध्यान देने की जरूरत है कि ओबीसी आरक्षण और एससी-एसटी आरक्षण में एक मूलभूत अंतर है. एससी-एसटी आरक्षण उनके साथ समाज में गैरबराबरी और छूआछूत के व्यवहार के खिलाफ है. वहीं ओबीसी आरक्षण का आधार इस वर्ग के आर्थिक और सामाजिक पिछडे़पन है. क्रीमी लेयर का सुझाव कितना जायज? एससी-एसटी आरक्षण का मामला इसी कारण ओबीसी आरक्षण से अलग है. इस आरक्षण का मूल आधार समाज में उनके साथ गैरबराबरी और छूआछूत का मसला है. सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को मौजूदा वक्त में और तार्किक बनाने के लिए क्रीमी लेयर जैसा फॉर्मूल लाने का सुझाव दिया है. लेकिन, इसका कतई मतलब नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि विपक्ष खासकर कांग्रेस इस मसले को तूल क्यों दे रही है. बीते दिनों भाजपा के एसटी-एससी सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी. उनकी भी मुख्य चिंता क्रीमी लेयर को लेकर थी. यह सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ में बहुमत का सुझाव था. इस सात सदस्यीय पीठ में छह सदस्यों ने एससी-एसटी के भीतर वर्गीकरण को सही ठहराया है, जबकि केवल चार जजों ने इस वर्ग के आरक्षण में क्रीमी लेयर जैसा प्रावधान लाने का सुझाव दिया है. सुझाव पर अमल केंद्र के विवेक पर निर्भर ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इस सुझाव पर अमल करना या न करना केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर करता है. केंद्र सरकार चाहेगी तो वह इसके लिए ससंद में विधेयक ला सकती है. अगर वह मौजूदा स्थिति को बनाए रखना चाहती है तो उसे कोई विधेयक लाने या कानून बनाने की जरूरत है. केंद्र सरकार ने स्पष्ट भी कर दिया है कि वह आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था को बदलने नहीं जा रही है. ऐसे में कह सकते हैं कि खड़गे जी क्रीमी लेयर के सुझाव को रोकने लिए किसी कानून की जरूरत नहीं है. Tags: OBC Reservation, SC Reservation, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 11, 2024, 11:54 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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