भूख-प्‍यास से बेहाल थे भारतीय जांबाज तभी पाक की खीर-कराची हलवे से मना जश्‍न

कारगिल युद्ध की तोलोलिंग की लड़ाई में पाकिस्‍तानी सेना को ठिकाने लगाने के बाद भूख और प्‍यास से परेशान हो गई थी. हालात यह थे कि दुश्‍मन की गोली की जगह अब मौत भूख की वजह से दिख रही थी. इसी बीच भारतीय जांबाजों ने पाकिस्‍तानी खीर और कराची हलवे के साथ कैसे जीत का जश्‍न मनाया, जानिए कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना की जुबानी...

भूख-प्‍यास से बेहाल थे भारतीय जांबाज तभी पाक की खीर-कराची हलवे से मना जश्‍न
25 years of Kargil war: तोलोलिंग की लड़ाई जीतने के बाद भारतीय जांबाजों को याद आया कि बीते 24 घंटे से उनके मुंह में ना ही खाना गया है और ना ही पानी की एक भी बूंद गई है. इतना ही नहीं, युद्ध में बुरी तरह से जख्‍मी हो चुके जवानों की जान बचाने के लिए दवाएं भी नहीं थी. ऐसी परिस्थितियों में जवानों ने खुद को कैसे बचाया, जानने के लिए पढ़िए तोलोलिंग की कहानी, कैप्‍टन अखिलेश सक्‍सेना की जुबानी… … जब हमने तोलोलिंग में तिरंगा फरहा दिया तो हमें लगा कि शायद हमने दुनिया की हर चीज हासिल कर ली है. लेकिन, दस मिनट के बाद यह अहसास हुआ कि स्थिति इतनी भी अच्‍छी नहीं है. दरअसल, हमारा प्‍लान था कि हम लोग बिना खाना पानी और किसी भी चीज के बिना हमला करेंगे. और जब, कमांडो टुकड़ी जीत हासिल कर लेगी तो खाना पानी पीछे से आ जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. क्‍योंकि हम पीक पर पहुंच तो गए, हमने ज्‍यादातर दुश्‍मनों को मार दिया, जो बचे वह पीठ दिखाकर भागने को मजबूर हो गए. दरअसल, दुश्‍मन ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि हम तोलोलिंग जीत पाएंगे. दुश्‍मन अपनी इस हार से बौखला गया था. बौखलाहट में उसने इतनी बमबार्डिंग की कि हमारी रिइनफोर्समेंट हमारे लिए खाना नहीं ला पा रही थी. वह भीषण बमबारी की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे. अब सिचुएशन यह थी कि राजपूताना राइफल्‍स का कमांडो दस्‍ता पीक में है, कुछ लोगों की लाश पड़ी है, कुछ लोग इतनी बुरी तरह से जख्‍मी हैं कि उनके शरीर के अगल-अलग हिस्‍सों से खून बह रहा है. यह भी पढ़ें: साहब! बच्‍चों की कसम, मैंने सफेद कपड़ों में लोगों को… कश्‍मीर से दिल्‍ली तक मच गया हड़कंप, छिड़ गई जंग… वंजू टॉपू पर अपनी यार्क को खोजने गए ताशी नामग्‍याल नामक एक चरवाहे ने पहली बार घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना के जवानों को कारगिल की चोटियों पर देखा था. इसके बाद, ताशी नामग्‍याल ने क्‍या किया, कैसे भारतीय सेना पीक पर बैठे दुश्‍मन तक पहुंची, जानने के लिए क्लिक करें. किसी ने भी बीते 24 घंटे से ना ही कुछ खाया है और ना ही कुछ पिया है. भारी बमबारी की वजह से पीक की बर्फ जहरीली हो चुकी थी. अगर मुझे बर्फ चूसनी भी है, जिससे मैं अपने मुंह में दो बूंद पानी डाल सकूं, तो बर्फ की सतह काफी नीचे तक खोदना पड़ता था और तब अपने मुंह में डाल सकता था. लेकिन, बर्फ चूसने के समय यह डर बना रहता था कि कहीं हम बारूद तो नहीं खा रहे हैं. लिहाजा, हम बर्फ को भी बहुत अधिक यूज नहीं कर पा रहे थे. खाने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं था. क्‍योंकि हम सिर्फ आर्म्‍स और एम्‍युनिशन गोला बारूद अपने साथ लेकर ऊपर गए थे. कठिन परिस्थिति थी कि कैसे अपने जवानों की जान बचाऊं, जो बुरी तरह से जख्‍मी हो चुके थे, जिन्‍हें खाने की, पीने की और दवाओं की सख्‍त जरूरत थी. तो जब हमने सोचना शुरू किया, बर्फ को हटाया, लोगों ने थोड़ा बर्फ को अपने ओंठों पर लगाया, लेकिन हमें लगा कि इस तरह तो हम सर्वाइव नहीं कर पाएंगे. बहुत दुख की बात होती हम दुश्‍मन की गोली की बजाय भूख, प्‍यास और दवाओं के अभाव से मर जाते. वह हमें मंजूर नहीं था. यह भी पढ़ें: जब पाकिस्‍तान को लगा ‘मेघदूत’ का थप्‍पड़, हिम्‍मत जुटाने में लग गए 15 साल, फिर चली ‘बद्र’ की नाकाम चाल, नतीजा… आपरेशन मेघदूत में करारी हार झेलने के बाद बौखलाए पाकिस्‍तानी जनरल मिर्जा असलम वेग ने 1987 में कारगिल युद्ध की पृष्‍ठभूमि लिख दी थी. जनरल मिर्जा असलम वेग की लिखी इसी इबारत को परवेज मुशर्रफ ने 1999 में आपरेशन बद्र के तौर पर आगे बढ़ाया था. क्‍या है ऑपरेशन मेघदूत की कहानी, जानने के लिए क्लिक करें. हमने तय किया कि किसी भी स्थिति में कुछ न कुछ करना पड़ेगा. तब हमने सोचना शुरू किया कि दुश्‍मन यहां पर तीन महीने से बैठा हुआ है, उसने भी अपने खाने और पीने का कुछ तो इंतजाम किया होगा. उसके पास भी कुछ दवाओं का प्रबंध होगा. लेकिन बहुत तलाशने पर भी हमें आसपास कुछ नजर नहीं आया. जब हमने खोजना शुरू किया तो हमने देखा कि दो पीक के बीच पर एक छोटा सा स्‍ट्रक्‍चर बना हुआ है. हमें यह समझ में आ गया था कि इस स्‍ट्रक्‍चर में हमें कुछ न कुछ खाने के लिए जरूर मिलेगा. लेकिन, स्‍ट्रक्‍चर तक पहुंचना बहुत मुश्किल काम था, क्‍योंकि सामने दुश्‍मन बैठा हुआ है. मुश्किल इस बात की भी थी कि हम जैसे ही पीक से नीचे जाएंगे, हम फिर एक्‍सपोज हो जाएंगे, और सामने की पीक पर बैठा दुश्‍मन हमको अपना निशाना बना लेगा. तो हमने सोचना शुरू किया कि क्‍या किया जाए. हमारे सामने दो ही च्‍वाइस थीं, या तो आप दुश्‍मन की गोली खाकर मरो या फिर भूख-प्‍यास से मर जाओ. हमने तय किया कि हम लड़ाई में आए हैं, लड़ेंगे तो दुश्‍मन की गोली से मरेंगे, हम भूख प्‍यास से नहीं मर सकते हैं. यह भी पढ़ें: 300 किमी की पीक्‍स पर किया कब्‍जा, इंटेलिजेंस एजेंसियों को नहीं लगने दी भनक, जानें पाक आर्मी कैसे कर पाई यह संभव… जब भी कारगिल युद्ध की बात होती है तो इंटेलिजेंस एजेंसीज की विफलता के आरोप एक बार फिर आ खड़े होते हैं. ऐसे में, सवाल यह है कि आखिर पाकिस्‍तानी सेना ने अपने प्‍लान को ऐसे कैसे एग्‍जिक्‍यूट किया कि दुनिया में किसी को खबर नहीं लगी. पाकिस्‍तानी का क्‍या था सीक्रेट प्‍लान, जानने के लिए क्लिक करें. हमने तय किया कि हम कोशिश कर किसी भी तरह दुश्‍मन की किचन तक पहुंच जाएं. हमें पता नहीं था कि वहां क्‍या मिलेगा, कुछ मिलेगा भी या नहीं मिलेगा. अब मैंने और एक अन्‍य अफसर ने यह तय किया कि हम नीचे जाएंगे. हमने हमने बैग पैक लिया, कुछ खाली पिठ्ठू झोले पीठ में टांगे और साथ स्‍मोग बम लेकर नीचे की तरफ दौड़ना शुरू कर दिया. हमें देखकर सामने की पहाड़ी में बैठा असमंसज में आ गया. उसने देखा कि दो भारतीय सैनिक तेजी से उनकी तरफ भागते हुए आ रहे हैं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि सिर्फ दो लोग किस इरादे से उनकी तरफ भागते हुए आ रहे हैं. वह जब तक समझता और गोलियां चलाता, हम उस स्‍ट्रक्‍चर के पास पहुंच चुके थे. जैसे ही हम उस स्‍ट्रक्‍चर के अंदर पहुंचे, हमारी आंखें खुली की खुली रह गईं. वहां हमारे सामने खीर रखी थी, जिससे केसर की खुशबू आ रही थी. बिरयानी और ड्राई फ्रूट्स रखे हुए थे, कराची हलवा था, कुछ दवाइयां भी रखी हुईं थी. वह खाना पूरी तैयार था. पाकिस्‍तान को यह विस्‍वास था कि वह जीतेंगे और फिर उसके बाद पार्टी करेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह भी पढ़ें: भारतीय सेना की तोलोलिंग में मना रही थी जीत का जश्‍न, अचानक… एक झटके में जाने वाली थी सबकी जान, लेकिन तभी… भारतीय जांबाजों ने तोलोलिंग की पीक पर तो सफलतापूर्वक कब्‍जा कर लिया था, लेकिन उनके लिए वहां एक नई मुसीबत इंतजार कर रही थी. इस मुसीबत के बीच एक जवान ने जैसे ही अपनी प्‍यास बुझाने के लिए बर्फ का गोला उठाया, तभी … क्‍या थी जवानों के सामने मुसीबत और बर्फ का गोला उठाने के बाद क्‍या हुआ… जानने के लिए क्लिक करें. अब हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी यूनिट के पास ऊपर जाने की थी. क्‍यों कि दुश्‍मन की बंदूकों का मुंह हमारी तरफ था, वे इंतजार कर रहे थे कि हम कब बाहर निकले और वे हमें निशाना बनाएं. हमने सोचा पहला दाना अपने मुंह में डालने से पहले उन जवानों को देना है, जो घायल अवस्‍था हैं, जिनको पता नहीं है कि उनके पास अभी कितना समय है. हमने देर नहीं की. हमने डिब्‍बों में वहां जो कुछ भी था, उसे पैक किया और हमने भारत माता की जय बोलते हुए स्‍मोग बम चारों तरफ फेंकना शुरू कर दिया. स्‍मोग बम से वहां पर एक धुंए का गुबार पैदा हो गया. इसी धुएं के गुबार के बीच हम दौड़ते हुए अपनी यूनिट के पास पहुंच गए. फिर इसके बाद तोलोलिंग की पीक पर राजपूताना राइफल्‍स के जवानों ने पाकिस्‍तानी सेना की खीर और कराची हवले से अपनी जीत का जश्‍न मनाया. Tags: Indian army, Indian Army Heroes, Indian Army Pride, Kargil day, Kargil war, Know your ArmyFIRST PUBLISHED : July 26, 2024, 13:07 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed