कन्नौज/अंजली शर्मा: पहली बारिश की बूंदे जब सुखी जमीन पर पड़ती हैं, तो एक सोंधी-सोंधी खुशबू आती है. कन्नौज में एक ऐसा इत्र बनता है. कन्नौज के इत्र व्यापारियों ने मिट्टी से इत्र बनाकर खास खुशबू वाला प्रो[क्ट तैयार किया है. इसकी डिमांड बहुत ज्यादा रहती है. शरीर में लगाने के साथ-साथ कई तरह के खाने की चीजों पर भी इस इत्र का इस्तेमाल होता है.
कैसे बनता है मिट्टी का इत्र?
इत्र बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं. फिर उन्हें स्टीम डिस्टिलेटर में डाल कर कोयले और बिजली से भट्ठी सुलगाई जाती है. फिर स्टीम अपने प्रेशर से एक कॉपर कंटेनर में पहुंचता है. इन बर्तनों से निकलती भाप को एक पाइप के जरिए चंदन के तेल के संपर्क में लाया जाता है. सैंडलवुड तेल कॉपर के बर्तनों में होते हैं. फिर उन सब से जब भाप निकलती है, तो उसमें ऑयल बेस होता है. आखिर में सिर्फ तेल की तरह का तरल पदार्थ निकलता है. जिसकी खुशबू बिल्कुल गीली मिट्टी की तरह होती है.
कौन सी मिट्टी का होता प्रयोग
मिट्टी का इत्र बनाने के लिए चिकनी मिट्टी और चिका मिट्टी का प्रयोग किया जाता है, जो खेतों और तालाबों से लाई जाती है. कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों के बाद जो वेस्ट बच जाता है. इसका सबसे ज्यादा प्रयोग इत्र व्यापारी ही करते हैं. ऐसे में कुम्हारों को भी मिट्टी के इत्र से जुड़ने का मौका मिल जाता है.
क्या रहता रेट
सैंडलवुड ऑयल के बेस पर मिट्टी के इत्र का रेट 1.50 लाख रुपए किलो तक पहुंचता है. वहीं, साधारण तौर पर इसका रेट 40 से ₹50,000 किलो के बीच में रहता है. वहीं, डिमांड के अनुसार और क्वालिटी पर भी निर्भर करता है कि रेट कितना होगा.
Tags: Kannauj news, Local18FIRST PUBLISHED : June 24, 2024, 17:14 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed