राजीव से लेकर मोदी तक सबको उठाना पड़ा झूठ के परसेप्शन का नुकसान जानें कैसे

देश की राजनीति में झूठ के आधार पर परसेप्शन बनाना विपक्ष की पुरानी आदत रही है. इसके शिकार राजीव गांधी भी हुए थे. इस बार नरेंद्र मोदी को भी विपक्ष की झूठ के इसी परसेप्शन से नुकसान उठाना पड़ा है, हालांकि झूठ की आयु लंबी नहीं होती. सच ही टिकाऊ होता है. देर-सबेर झूठ को सच समझने वालों को असलियत का एहसास हो ही जाता है.

राजीव से लेकर मोदी तक सबको उठाना पड़ा झूठ के परसेप्शन का नुकसान जानें कैसे
पटना. लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के महीने भर बाद सात राज्यों की 13 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है. इंडिया ब्लाक के खाते में 10 सीटें आईं तो भाजपा को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा. बिहार में एक सीट निर्दलीय के खाते में चली गई. एनडीए को महीने भर में यह दूसरा झटका लगा. महीने भर पहले लोकसभा चुनाव में एनडीए को 292 सीटें मिली थीं. भाजपा को तो 240 पर ही संतोष करना पड़ा. विधानसभा उपचुनावों को इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों का संकेत माना जा रहा है. लोग उपचुनाव को सेमी फाइनल मानते रहे हैं, हालांकि यह बात पूरी तरह सच नहीं है. कई बार उपचुनावों के नतीजे विधानसभा के आम चुनाव में बेअसर भी साबित हुए हैं. बिहार : 2009 के नतीजे 2010 में बदले बिहार में 2010 के विधानसभा के आम चुनाव में एनडीए को राज्य की 243 विधानसभा सीटों में 206 सीटें पर जीत हासिल हुई थी. इसे बिहार में एनडीए की अब तक की सबसे बड़ी जीत के रूप में देखा जाता है. इससे साल भर पहले 2009 में बिहार की 18 सीटों पर उपचुनाव हुए तो एनडीए 13 सीटें हार गया था. इसलिए यह कहना कि उपचुनाव आम चुनाव का सेमी फाइनल होता है, तार्किक नहीं लगता, हालांकि विपक्ष उपचुनाव के नतीजों को लेकर इतना उत्साहित है कि विधानसभा के आम चुनाव में उसे मंजिल फतह करने के संकेत मानने लगा है. परसेप्श्न से बन-बिगड़ जाता है चुनावी खेल तरह-तरह के नैरेटिव गढ़ कर सफलता हासिल करना संभव तो है, लेकिन यह भी सच है कि झूठ ज्यादा दिन टिक नहीं पाता. बिहार में 2009 के विधानसभा के उपचुनावों और 2010 के आम चुनाव के नतीजों में फर्क इसलिए आया कि सत्ता पक्ष के खिलाफ विपक्ष के झूठ की असलियत सामने आ गई थी. दरअसल 2009 में मीडिया में एक खबर कहीं से आ गई थी कि एनडीए सरकार बंटाईदारी कानून में संशोधन करना चाहती है. इस संशोधन का विस्तार यह था कि बंटाईदार अगर मूल रैयत की जमीन पर खेतीबारी करता है तो जमीन उसकी हो जाएगी. बिहार में बड़े पैमाने पर लोग रोजी-रोटी के लिए गांव छोड़ शहरों में पलायन कर गए हैं. उनकी जमीन पर बंटाईदार ही खेती करते हैं. सरकारी आंकड़े ऐसे लोगों की संख्या 50 लाख से अधिक बताते हैं, हालांकि सच यह है कि इससे भी अधिक लोग बिहार से बाहर जाकर नौकरी या कोई अन्य काम करते हैं. उनकी जमीन पर बंटाईदार ही खेती करते हैं. इसके अलावा गांवों में रहने वाले भी ज्यादातर लोग भी अलग-अलग कारणों से अपने खेत बंटाई में दिए हुए हैं. बंटाईदारी कानून के इस प्रावधान को जान कर ऐसे लोग नाराज हो गए थे. इसी का नतीजा था कि एनडीए को 2009 के उपचुनावों में खामियाजा भुगतना पड़ गया. सरकार की ओर से तब भी सफाई आई थी कि ऐसा करने का इरादा नहीं है, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हुआ. जब लोगों को सरकार की सफाई पर यकीन हुआ तो लोगों ने 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को अभूतपूर्व जीत दिला दी. झूठ का असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा इस साल हुए लोकसभा चुनाव में इसी तरह के झूठ का परसेप्शन विपक्ष ने बनाया. भाजपा को अगर पिछले दो चुनावों के मुकाबले इस बार कम सीटें मिलीं तो इसकी यही वजह रही. विपक्ष ने यह अफवाह सच के रूप में परोसनी शुरू कर दी कि नरेंद्र मोदी 400 पार का नारा इसलिए दे रहे हैं कि इतनी सीटें हासिल कर वे संविधान को बदल सकें. संविधान बदला तो आरक्षण खत्म हो जाएगा. आम आदमी संविधान की बातें तो उतनी नहीं समझता, लेकिन आरक्षण से देश का बड़ी आबादी आच्छादित है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को लेकर अभी 60 प्रतिशत तक आरक्षण का प्रावधान है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर तबके को अलग से 10 फीसद आरक्षण दिया है. यानी 60 प्रतिशत लोग आरक्षण के लाभुक हैं. कई राज्य सरकारों ने तो आरक्षण की इस सीमा को भी लांघ दिया है. तमिलनाडु ने निर्धारित सीमा से जब आरक्षण अधिक देने का प्रावधान किया तो उसे नौंवीं अनुसूची में शामिल करा कर न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर कर लिया था. उसके बाद कई राज्यों ने उसी रास्ते पर चलना शुरू कर दिया. बिहार में भी जातीय सर्वेक्षण के बाद आरक्षण सीमा 75 फीसदी तक कर दी गई, हालांकि पटना हाईकोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया है और राज्य सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है. बहरहाल, संविधान बदलने और आरक्षण सीमा खत्म करने के विपक्ष के झूठ का तात्कालिक असर दिखा और भाजपा की सीटें 240 पर आ गईं. राजीव गांधी भी हुए थे परसेप्शन के शिकार अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा. उन्होंने 403 सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया. तब विश्वनाथ प्रताप सिंह कांग्रेस के ही साथ थे. बोफोर्स घोटाले के आरोप के साथ सिंह ने 1987 में कांग्रेस से अपनी राह जुदा कर ली. वे उन दिनों जहां कहीं भी किसी सभा को संबोधित करते, एक बात का जिक्र जरूर करते. वे बताते कि बोफोर्स घोटाले में कमीशन लेने वालों के नामों की सूची उनकी जेब है. यह अलग बात है कि कभी उन्होंने वह सूची न दिखाई और न किसी रूप में उसे सार्वजनिक की. पर, उनका यह परसेप्शन इतना असरदार रहा कि 1984 में भारी बहुमत से बनी राजीव गांधी की सरकार 1989 में वापसी नहीं कर पाई. वीपी सिंह को अकेले अपने दम पर कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन जोड़-तोड़ से उन्होंने सरकार बना ली थी. बाद में उनकी सरकार ने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू कीं तो सत्ता से हाथ भी धोना पड़ गया. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने से देश में जो बावाल मचा, उसे शांत कराने के लिए बीजेपी ने राम मंदिर का मुद्दा सामने लाई. भाजपा का उठान भी तभी से शुरू हुआ और लगातार तीसरी बार भाजपा की केंद्र में सरकार है तो सिर्फ इसलिए कि उसने राम मंदिर निर्माण का न सिर्फ अलख जगाया, बल्कि उसे बना कर देश की जनता को सौंप भी दिया है. कहते भी हैं कि झूठ की आयु लंबी नहीं होती. सच ही टिकाऊ होता है. देर-सबेर झूठ को सच समझने वालों को असलियत का एहसास हो ही जाता है. Tags: PM ModiFIRST PUBLISHED : July 15, 2024, 12:13 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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