जन-औषधि केंद्रों से लाभ उठाने वालों की संख्या और जेनेरिक दवाओं के कारोबार में बढ़ोतरी
जन-औषधि केंद्रों से लाभ उठाने वालों की संख्या और जेनेरिक दवाओं के कारोबार में बढ़ोतरी
देश भर में इस वक्त तकरीबन 9 हज़ार जन-औषधि केंद्र चल रहे हैं, जहां 1600 से ज्यादा जीवनरक्षक दवाएं और 250 से ज्यादा सर्जिकल आइटम्स भारी रियायती दरों पर मिलते हैं.
2015 के इन्हीं दिनों में पापा दिल्ली के AIIMS में भर्ती थे, शुरुआती दिनों में तो डॉक्टरों की टीम ऑपरेशन से हिचक रही थी. काफी जद्दोजहद के बाद दिसंबर के पहले हफ्ते में ऑपरेशन हुआ और बॉयोप्सी टेस्ट के बाद पता चला कि उन्हें कैंसर है, वो भी एडवांस स्टेज का. गेस्ट्रो डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने कैंसर डिपार्टमेंट को केस रेफर किया, वहां उन्हें फौरन कीमोथैरेपी शुरु करने की सलाह दी गई.
पहले से मैंने सुन रखा था कि कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो सिर्फ मरीज को ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को हर तरीके से तोड़कर रख देती है, खासतौर पर आर्थिक तौर से.
इसकी सबसे बड़ी वजह है कैंसर का महंगा इलाज. खैर, क्या खर्च आएगा? कीमोथैरेपी की दवाइयां कितने की आएंगी? उनका कितना फायदा होगा? मन उमड़ते-घुमड़ते इन्हीं सवालों के साथ 4 या 5 जनवरी 2016 को मैं उनके पहले कीमोथैरेपी के लिए AIIMS के BRICH यानी कैंसर डिपार्टमेंट पहुंचा. औपचारिकताएं पूरी करने के बाद डॉक्टर ने एक पर्ची पर दवाइयां लिखीं और बोले- देखिए, ये दवाइयां बाहर यानि प्राइवेट मेडिकल स्टोर से लेंगे तो करीब-करीब 50-60 हज़ार की आएंगी लेकिन AIIMS कैंपस में ही अमृत स्टोर है, वहां ये सारी दवाइयां 6-7 हज़ार रुपये में हो जाएंगी.
दवाइयों की क्वालिटी में कोई अंतर नहीं होता है. उस दिन पहली बार मुझे अमृत स्टोर और जन-औषधि केंद्र के बारे में जानकारी मिली. मुझे थोड़ा सुकुन भी महसूस हुआ कि चलो कैंसर का इलाज अब उतना भी महंगा नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था. प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर ये कह चुके हैं- “बच्चों को पढ़ाई, युवाओं को कमाई और बुजुर्गों को दवाई मेरी सरकार का मूल मंत्र है.” अमृत स्टोर या जन-औषधि केंद्र का ये कॉन्सेप्ट प्रधानमंत्री मोदी की पहल का नतीजा है.
देश भर में इस वक्त तकरीबन 9 हज़ार जन-औषधि केंद्र चल रहे हैं, जहां 1600 से ज्यादा जीवनरक्षक दवाएं और 250 से ज्यादा सर्जिकल आइटम्स भारी रियायती दरों पर मिलते हैं. आमतौर पर रियायत 50-60 प्रतिशत तक होती है, लेकिन कई दवाइयों पर तो ये छूट 90 प्रतिशत तक है. इन केंद्रों पर कैंसर और हृदय रोग जैसे गंभीर और महंगे खर्चे वाली बीमारियों की दवाइयां भी उपलब्ध है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया के मुताबिक पिछले 8 वर्षों में जन-औषधि केंद्रों की संख्या में 100 गुना बढोतरी हुई है.
वर्ष 2014 में देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब 80 जन-औषधि केंद्र चल रहे थे जो 2022 में बढ़कर 8800 से ज्यादा हो गए हैं. ये केंद्र गरीबों के लिए दवा की दुकान बन गई हैं. जन-औषधि केंद्र आम लोगों के लिए कितने फायदेमंद साबित हो रहे हैं, इसका एक अनुमान इसके दिन-ब-दिन बढ़ते कारोबार से लगाया जा सकता है. एक अनुमान के मुताबिक औसतन रोजाना साढ़े चार लाख से ज्यादा लोग इन केंद्रों से 4 करोड़ से ज्यादा की दवाइयां खरीदते हैं.
2021-22 में जन-औषधि केंद्रों की औसत कारोबार करीब 900 करोड़ का था, जिसे बढ़ाकर 2022-23 के लिए 1200 करोड़ करने का लक्ष्य रखा गया है. इजाफा सिर्फ जन-औषधि केंद्रों के कारोबार में ही नहीं हो रहा है बल्कि यहां मिलने वाली दवाइयों और सर्जिकल आइटम्स की लिस्ट भी साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। फिलहाल, इन केंद्रों पर 1616 जेनेरिक दवाइयां और 240 सर्जिकल आइटम्स मिल रहे हैं, लेकिन वर्ष 2022-23 में इसे बढ़ाकर 1800 करने का लक्ष्य रखा गया है.
आमतौर आम लोगों को ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयों में बहुत फर्क समझ में नहीं आता है या यूं कहिए कि जानकारी नहीं होती है. इसे ऐसे समझिए, बुखार जैसी आम समस्या के लिए डॉक्टर्स आपको कभी डोलो लिखते हैं, कभी क्रोसिन लिखते हैं. दोनों की कीमतें भी अलग-अलग होती हैं. लेकिन जब आप देखेंगे तो दोनों में पारासिटामोल का इस्तेमाल किया गया है, अब सोचिए डॉक्टर आपको सिर्फ पारासिटामोल या पीसीएम लिख दे, तो जो भी सस्ता पारासिटामोल मिलेगा वही लेंगे.
यही पारासिटामोल जेनेरिक दवाई है. ब्रांडेड और जेनेरिक दवाइयों का सबसे ज्यादा अंतर कैंसर, हृदय रोग, किडनी रोग जैसी गंभीर बीमारियों से लेकर शुगर, ब्लड प्रेशर और हाइपर टेंशन जैसी आज की आम बीमारियों की दवाइयों में दिखता है. शुगर की एक ही दवाई ब्रांडेड कंपनी की 200-250 रुपये के बीच मिलती है, वहीं जेनेरिक ब्रांड में ये 40-50 रुपये की भी आती है.
आज औसतन देश के हर जिले में करीब 10 जन-औषधि केंद्र हैं और 135 करोड़ से ज्यादा की आबादी को इसका सीधा-सीधा फायदा मिल रहा है. हालांकि, अमृत स्टोर या जन-औषधि केंद्रों की कामयाबी में डॉक्टरों की भी भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि, आमतौर पर डॉक्टर्स मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिखते हैं. ऐसे में मरीज वही ब्रांडेड दवाई खरीदने के लिए बाध्य हो जाता है. ज्यादातर मरीजों को तो इस बात जानकारी भी नहीं होती है कि यही दवाई दूसरी कंपनी में किसी और नाम से होगी और उसकी कीमत कुछ और होगी.
ऐसे में वो डॉक्टर की लिखी पर्ची को पवित्र ग्रंथ मानकर किसी भी कीमत पर उसी दवाई को खरीदता है, भले ही उसकी जेब कितनी भी जल रही हो. लेकिन अगर डॉक्टर ब्रांडेड दवाई की जगह जेनेरिक दवाइयां लिखें तो किसी भी मरीज के पास वही दवाई कम कीमत पर खरीदने का विकल्प मौजूद रहेगा. इसलिए डॉक्टर्स भी मरीजों की पर्ची पर जेनेरिक दवाइयां लिखकर ना सिर्फ जन-औषधि केंद्रों की प्रासंगिकता को बढ़ा सकते हैं बल्कि मरीजों को आर्थिक तौर पर परेशान होने से भी बचा सकते हैं.
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Tags: Jan Aushadhi initiative, Mansukh MandaviyaFIRST PUBLISHED : November 03, 2022, 23:59 IST