J&K इलेक्शन- कभी थे जमात मेंअलगाववादी नारे लगाते रहे अब लड़ रहे चुनाव

जम्मू कश्मीर चुनाव में कई ऐसे जोर आजमाइश कर रहे हैं जो कभी अलगाववादी थे, या अलगाववादियों के हिमायती रहे. यहां तक कि प्रतिबंधित संगठन जमात ए इस्लामी के कई पूर्व नेता भी इस बार चुनाव लड़ रहे हैं. इसे लोकतंत्र के लिए अच्छा माना जा रहा है.

J&K इलेक्शन- कभी थे जमात मेंअलगाववादी नारे लगाते रहे अब लड़ रहे चुनाव
विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद पहले विधान सभा चुनाव में राज्य की फिजा बदली हुई है. इस चुनाव में ऐसे कई चेहरे दर दर जा कर वोट मांगते नजर आएंगे जो भारत के विरोध में नारेबाजी कर चुके हैं. चुनाव लड़ने से ये तो कहा ही जा सकता है कि अलगावाद के हिमायती रहे ये नेता किसी न किसी रूप में जम्हूरियत की धारा में शामिल हो रहे हैं. ऐसे कई नेताओं ने तो पर्चे भी दाखिल कर दिए हैं. ऐसे लोगों में दक्षिण कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों के लिए जिम्मेदार सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा भी है. हालांकि जांच के दौरान उसका पर्चा खारिज कर दिया गया. इंजीनियर राशिद की तैयारी इसके अलावा संसद पर हमले के मामले में फांसी की सजा पा चुके अफजल गुरु के भाई एजाज गुरु भी इस बार के विधान सभा चुनाव में तैयारी में बताया जा रहा है. उसे भी अलगाववादी विचारधारा का ही समर्थक माना जाता है. ये अलग बात है कि इन नेताओं ने सुरक्षा बलों की ओर से मानवाधिकारों का उल्लंघन को भी चुनावी मसला बनाया है. साथ ही ये लोग आत्मनिर्णय के अधिकार और कश्मीर को विशेष दर्जा बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं. बीते लोकसभा चुनावों में उमर अब्दुल्ला को हरा कर बारामूला लोकसभा सीट जीतने वाले इंजीनियर राशिद ने तो घोषणा की है कि वो अपनी पार्टी आवामी इत्तेहाद पार्टी से राज्य की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. फिलहाल वो टेरर फंडिंग के आरोप में दिल्ली की जेल में बंद हैं. उनकी नियमित जमानत पर अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा है और उम्मीद है कि 4 सितंबर को इस पर फैसला आए. ‘आजादी चाचा’ का पर्चा खारिज  सरजन बरकती फिलहाल, टेरर फंडिंग मामले में जेल में हैं. उस पर आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल होने के आरोप हैं. जेल मे होने के कारण उसकी बेटी ने बरकती का नामांकन दाखिल किया. जांच के दौरान बकरती यानी आजादी चाचा के नाम से मशहूर सरजन का पर्चा खारिज कर दिया गया. इसके अलावा बुरहाव वानी के कुछ सहयोगी माने जाने वाले उम्मीदवारों के भी मैदान में उतरने की खबर है. वानी अपनी आतंकी करतूतों की वजह से तब तक चर्चा में रहा है जब तक कि सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में उसे मार नहीं दिया. 2010 में हिज्बुल मुजाहीदीन में शामिल हो कर भारत की सीमा में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले वानी पर बहुत संगीन आरोप थे. एक और उम्मीदवार परवेज अहमद पर तिरंगे का अपमान करने के आरोप है. ये भी आरोप है कि परवेज ने कई बार सुरक्षा बलों के खिलाफ भी भड़काउ भाषण दिए हैं. वो आत्मनिर्णय के अधिकार की भी पुरजोर वकालत करता है. ये सभी निर्दल उम्मीदवार के तौर पर उतर रहे हैं. इनके अलावा भी जमाते इस्लामी के कई पूर्व नेता निर्दल प्रत्याशियों के तौर पर मैदान में हैं. जमात के पूर्व सदस्यों में डॉ. तलत, साबिर मसूद, सैयार अहमद रिशी, नजीर अहमद भट, और उमर हामिद के नाम शामिल हैं. ये भी पढ़ें : मायावती पार्टी को मजबूत कर रहीं या है कोई मजबूरी? BSP वह करने जा रही, जो यदा-कदा ही करती है  हालांकि ये भी सही है कि जम्मू कश्मीर में पहले भी अलगाववादी विचार रखने वाले संगठन चुनाव में उतरते रहे हैं. साल 1987 के पहले तक के सभी चुनावों में जमात ए इस्लामी अपने प्रत्याशी चुनाव में उतारा करता था. लेकिन इस बार इनकी आवाज नरम है. साल 1972 में इनके पांच उम्मीदवार जीते भी थे. बाद में 1977 में ये संख्या घट कर एक हो गई. उसके बाद से इस संगठन का कोई चुनाव नहीं जीत सका. इनका वोट शेयर भी घटता ही गया. 1987 में जमात पर प्रतिबंध लगा कर इसकी गतिविधियों को रोका गया था. उस साल साझा इस्लामिक फ्रंट बना कर कई संगठनों ने चुनाव में हिस्सा लिया था और 4 सीटें भी हासिल की थी. अब कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 खत्म करने के बाद भी अलगाववादी संगठन चुनाव में शामिल हो रहे हैं. इसे भारतीय लोकतंत्र की उदार व्यवस्था के तौर पर देखा जाना चाहिए. Tags: Jammu Kashmir Election, Jammu kashmir latest news, Jammu Kashmir PoliticsFIRST PUBLISHED : August 28, 2024, 18:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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