ISIS का प्रोपोगेंडा: नौजवानों का ब्रेनवाश करने के लिए होगा इस नए हथियार का इस्तेमाल
ISIS का प्रोपोगेंडा: नौजवानों का ब्रेनवाश करने के लिए होगा इस नए हथियार का इस्तेमाल
वॉइस ऑफ खुरासान की माने तो ये वो शख्श है जिसने 26-11 के ताज हमले की मुख्य प्लानर के रूप में मुख्य भूमिका निभाने के साथ साथ आईएसआईएस के लड़ाकों को ट्रेनिंग देने से लेकर ISIS के R & D यानि कि रिसर्च एक डेवलपमेंट डिपार्टमेंट का हेड था.
हाइलाइट्सISIS की मैगजीन वॉइस ऑफ खुरासान के सितंबर एडिशन में इस्माइल अल हिंदी नाम के आतंकी का जिक्र किया गया हैजांच एजंसियां इस्माईल अल हिंदी की उस पहचान को तलाशने में जुटा है जिसे दिखाकर ISIS लोगों का ब्रेन वाश कर रहा है अमरीकी सेना ने ड्रोन हमले में इस्माइल अल हिंदी की मौत हो गई थी
नई दिल्ली. ISIS अब युवाओं को ब्रेन वाश करने के लिए अल्लाह की शहादत के नाम पर आतंकियों की जीवनी प्रकाशित करने जा रहा है. लोगों के बीच आतंकियों के जेहाद की कहानी रखकर उन्हें अमर बनाने की इस क़वायद के बाद जांच एजंसियों को डर है कि इस ऑनलाइन प्रोपगेंडा से कई स्लीपर सेल एक्टिव हो सकते है. स्लीपर सेल ये कंटेंट कई नौजवानों को ब्रेनवाश के लिए प्रयोग कर सकते हैं. इस कड़ी में ISIS अपनी आतंकी मैगजीन में हर देश से आए एक एक आतंकी की कहानी मेमोरीज ऑफ़ शोहादा बया कर रहा है जिसका मकसद ऑनलाइन रुकरूटमेंट और आईएसआईएस के नाम पर बड़ा आतंकी हमला या लोन वुल्फ अटैक करवाना है.
आईएसआईएस की मैग्जीन वॉइस ऑफ खुरासान बना सर दर्द
ISIS की मैगजीन वॉइस ऑफ खुरासान के सितम्बर एडिशन में इस्माइल अल हिंदी नाम के आतंकी का जिक्र किया गया है. ISIS ने मुंबई के लश्कर के एक स्लीपर सेल की आईएसआईएस से जुड़ने और आतंकी गतिविधियों की कहानी बयां करते हुए दावा किया है वो हर लड़ाके की कहानी शहादत के रूप में बताएगा. अब यह कहानी जांच एजेंसियो के लिए सर दर्द बन गई है. जांच एजंसियां इस्माईल अल हिंदी की उस पहचान को तलाशने में जुटा है जिसे आइडल बताकर आईएसआईएस भारत मे उसकी तरह लोगो को अल्लाह की आवाज बनकर शहादत के नाम पर कुर्बान होने की कहानियों के जरिए नौजवानों को बरगलाने की कोशिश करने में जुटा है.
वॉइस ऑफ खुरासान की माने तो ये वो शख्श है जिसने 26-11 के ताज हमले की मुख्य प्लानर के रूप में मुख्य भूमिका निभाने के साथ साथ आईएसआईएस के लड़ाकों को ट्रेनिंग देने से लेकर ISIS के R & D यानि कि रिसर्च एक डेवलपमेंट डिपार्टमेंट का हेड था. अभी तक जांच एजेंसी इस लड़ाके का पता नहीं लगा पाई है.
इस्माइल अल हिन्दी का जिक्र
मैगज़ीन के मुताबिक उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हफीद साहेब मुंबई में आकर रह रहे थे. उनकी कई संतान थी और उसी में से एक था इस्माईल अल हिंदी. 1984 में पैदा हुआ इस्माईल अल हिंदी बचपन में शरारती था लेकिन बड़े होने के साथ ही वो गम्भीर मिजाज का हो चुका था. इंजीनियरिंग खत्म करने के बाद वह लश्कर ए तैयबा से जुड़ गया. कश्मीर घाटी में फोर्सेस ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया और सीक्रेट ऐजेंट्स सुराग ढूंढते इस्माईल के घर आ पहुंचे थे. लेक़िन इस्माइल उन्हें झासा देकर ध्यान भटकाने में कामयाब रहा पाया और यही से उसकी आतंक की यात्रा शुरु हुई. साल 2006 में वो लश्कर आतंकियों की मदद से सीमा पार पाकिस्तान पहुंचा और वहां उसने लश्कर के लिए पाक ऑक्यूपाईड कश्मीर में ट्रेंनिग ली. साल 2008 के 26-11 के हमले की जब साज़िश रची जा रही थी तब इस्माईल ने ताज हमले की पूरी प्लानिंग को अंजाम देने में मुख्य भूमिका निभाईं. ISI ने उसे बलूचिस्तान में स्पेशल ट्रेनिग के लिए भेजा जहां वो असल फाइटर बना. आगे ISIS ने लिखा कि अब अल्लाह के लिए वह अपना मकसद समझ चुका था. उसने अल कायदा का रूख किया और अपने कुछ आतंकी दोस्तों की मदद से अलकायदा से जुड़ा और वजीरिस्तान पहुंच गया.
अल कायदा का आर्टलेरी की जिम्मेदारी इस्माइल को दी गई थी लेकिन बड़ी गन्स की आवाज से उसके कान के परदे फट गए थे. जिसके बाद उसे अलकायदा के इलेक्ट्रॉनिक डिपार्टमेंट की जिम्मेदारी सौंपी गई. साल 2012 में उसने अलकायदा में रहते हुए शादी की लेकिन ये वो दौर था जब अलकायदा के अंदर ही कई मतभेद चल रहे थे. कई लड़ाके और संगठन से जुड़े लोग अलकायदा से अलग हुए थे. इसी बीच पाकिस्तान आर्मी ने अलकायदा और TTP के टेरेटरी में कई आपरेशन करने शुरू कर दिए कई मुजाहिदीन परेशानी में पड़ गए लेकिन अल कायदा के करप्ट हाईकमान ने मदद करने की जगह अपने हाथ खड़े कर लिए.
इस्माइल के मुताबिक अल्लाह की टेरिटरी में जाने के लिए हिजरा करना जरूरी था लेक़िन रास्ता आसान नही था इसलिए वो वापस पाकिस्तान लौटा और कुछ वक्त तक कई हाइड आउट्स में छिपा रहा. बाद में वहां से शाम ए पाक की जमीन के लिए परिवार के साथ ही निकला लेक़िन टर्की में उसे गिरफ्तार कर लिया गया जिसके चलते उसे कई दिनों तक टर्की की जेल में रहना पड़ा. बाद में उसे पाकिस्तान डिपोर्ट कर दिया गया,पाकिस्तान में भी वो कई दिनों तक जेल में ही रहा. पाकिस्तान ने उसे पहचानने से इनकार तक कर दिया.
इस्माइल अल हिन्दी के मुताबिक ये दौर काफी मुश्किल था लेकिन फिर अल्लाह का रहम हुआ ख़ुरासान में इस्लामिक स्टेट की नींव पड़ी और जेल से निकलने के बाद वो किसी तरह से ख़ुरासान पहुंचा और नानगरहर के मामण्ड एरिया में सेटल हो गया. ख़ुरासान विलायाही आला कमान के कहने पर बाहर से आ रहे मुजाहिरिनो को टेक्नीकल ट्रेनिंग देने लगा. इसके अलावा वो ख़ुरासान विलायाही के लिए R&D यानि कि रिसर्च और डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के लिए काम करनेवाला एक डीप एसेट बन चुका था. 16 जुलाई 2019 को तौहीदाबाद में अपने परिवार को खाना देने के लिए इस्माईल गया था लेकिन तभी अमरीकी सेना ने ड्रोन हमले किए जिसमे इस्माइल अल हिंदी समेत 10 लड़ाके मारे गए.
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Tags: ISISFIRST PUBLISHED : September 13, 2022, 12:37 IST