कहता है कारगिल : जब छद्म युद्ध लड़ने की तैयारी से आए दुश्मन को उसी की भाषा में मिला भारतीय जांबाजों का जवाब
कहता है कारगिल : जब छद्म युद्ध लड़ने की तैयारी से आए दुश्मन को उसी की भाषा में मिला भारतीय जांबाजों का जवाब
Kahta hai Kargil: भारतीय सेना को यह साफ हो गया कि पाकिस्तान एक छद्म युद्ध की तैयारी में जुटा हुआ है. पाकिस्तान के मंसूबों को भांपते के बाद भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने मिलकर एक योजना तैयार की. योजना के तहत, दोनों सेनाओं ने मिलकर दुश्मन के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू करने का फैसला किया.
Kahta hai Kargil: मैं कारगिल… 1999 की सर्दियां मेरे लिए पहले की सर्दियों से अलग थीं. सीमा के उस पार से लगातार अनजान चेहरों का आना जारी था. इन चेहरों के हाथों में बड़े-बड़े आधुनिक हथियार और कंधों पर भारी बोझ वाले बैग कसे हुए थे. खूंखार से दिखने वाले ये अनजान चेहरे एक-एक कर मेरी तमाम चोटियों पर रहने का मुश्तकिल बंदोबस्त करते जा रहे थे. इनके इस बंदोबस्त में कोई अड़चन न आए, इसलिए चारों तरफ मोर्टार और रॉकेट लांचर जैसे हथियार जमा कर दिए गए थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि सरहद पार से आए खूंखार चेहरे आखिर हैं कौन?
अनहोनी की तरफ इशारा करती वादियों की यह हलचल और दिमाग में मची इस कश्मकश के बीच, पता ही नहीं चला कब सर्दियां बीत गईं. सूरज की बढ़ती तपिश के साथ अब मेरे बदन पर जमीं बर्फ की चादर धीरे-धीरे पिघलने लगी. इसी के साथ, पहाड़ी के ऊपरी हिस्से की ओर जानवरों और चरवाहों के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया था. उस दिन तारीख 3 मई 1999 की थी. जब एक यार्क भटक कर वंजू टॉप तक पहुंच गई थी और इस यार्क को खोजते हुए आए ताशी नामग्याल नाम के चरवाहे की नजर सरहद पार से आए दशहत से भरे इन चेहरों पर पड़ गई थी.
अनजान चेहरों की टोह लेने के लिए भेगी गई टुकड़ी
ताशी भागा-भागा कारगिल सेक्टर के वंजू मुख्यालय पहुंचा और वहां मौजूद सैन्य अधिकारियों को वंजू टॉप दिखी हर चीज को बेहद विस्तार से बताना शुरू किया. ताशी जैसे जैसे अपनी बात पूरी कर रहा था, सेना के अधिकारियों के माथे पर बल बढ़ते जा रहे थे. 5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक टुकड़ी को इन अनजान चेहरों की टोह लेने के लिए वंजू टॉप की ओर रवाना कर दिया गया. एक निश्चित दूरी तक पहुंचने के बाद कैप्टन सौरभ कालिया ने इन अनजान चेहरों और उनकी गतिविधयों को परखना शुरू कर दिया.
कैप्टन सौरभ कालिया ने इन अनजान चेहरों को देखते ही समझ लिया कि ये पाकिस्तान से आए घुसपैठिए हैं. वहीं, इन घुसपैठियों के पास मौजूद हथियार इस बात को पुख्ता कर रहे थे कि इनके मंसूबे आतंकियों से भी ज्यादा खतरनाक हैं. जब लंबे इंतजार के बाद भी कैप्टन सौरभ और उनके 5 साथी जवान वापस नहीं आए तो इन घुसपैठियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए भारतीय सेना की कुछ अन्य टुकड़ियों को रवाना किया गया. संघर्ष के दौरान, भारतीय सेना को इस बात का आभास हो गया था कि उनका सामना जैसे घुसपैठियों से नहीं, बल्कि किसी प्रशिक्षित सैनिक से हो रहा था.
चौंकाने के लिए काफी आतंकियों से मिले दस्तावेज
इस संघर्ष के बाद भारतीय सेना को दो नई बातें सामने आईं. पहली यह कि घुसपैठियों की मौजूदगी सिर्फ वंजू टॉप तक सीमित नहीं है, बल्कि दूसरी पहाड़ियों पर भी सीमा पार से आए इन लोगों ने अपने पैर जमा रखे हैं. दूसरी बात, पाकिस्तान से आए इन घुसपैठियों को पाक सेना ने खास प्रशिक्षण देकर किसी बड़े नापाक मंसूबे को पूरा करने के मकसद से भेजा है. इन दो बातों ने वादी ही नहीं, दिल्ली में बैठे सेना के अफसरों के माथे पर बल ला दिया था. आनन-फानन, भारतीय वायु सेना और वादी की स्थानीय टुकड़ियों को दुश्मन की टोह लेने के काम में लगा दिया गया.
वहीं, भारतीय सेना के जांबाजों ने 18 मई 1999 को प्वाइंट 4295 और 4460 पर मौजूद सभी घुसपैठियों को मार गिराया और दोनों प्वाइंट को एक बार फिर अपने कब्जे में ले लिया. इस ऑपरेशन के बाद, घुसपैठियों के कब्जे से जो दस्तावेज मिले, वह भारतीय सेना को चौंकाने के लिए काफी थे. ये दस्तावेज इस बात के साक्ष्य थे कि मुठभेड़ में मारे गए ये आतंकवादी पाकिस्तान सेना-अर्धसैनिक बल के मुश्तकिल जवान थे, जिन्हें घुसपैठियों के भेष में सीमापार से भेजा गया था.
छद्म युद्ध की तैयारी में जुटा थी पाकिस्तानी सेना
इस ऑपरेशन के बाद, भारतीय सेना को यह साफ हो गया कि पाकिस्तान एक छद्म युद्ध की तैयारी में जुटा हुआ है. पाकिस्तान के मंसूबों को भांपते के बाद भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने मिलकर एक योजना तैयार की. योजना के तहत, दोनों सेनाओं ने मिलकर दुश्मन के खिलाफ व्यापक अभियान शुरू करने का फैसला किया. दोनों सेनाओं के इस फैसले के बाबत केंद्र सरकार को अवगत कराया. कैबिनेट से अनुमति मिलते ही भारतीय वायु सेना ने 26 मई 1999 को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ की शुरूआत कर दी और दुश्मन को निशाना बनाना शुरू कर दिया.
वहीं, भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरूआत कर दुश्मन को उनके अंजाम तक पहुंचाने की कवायद शुरू कर दी. ऑपरेशन विजय के शुरू होते ही तोलोलिंग की पहाड़ियों पर बैठे दुश्मन ने नेशनल हाईवे वन एल्फा से गुजर रहे सैन्य वाहनों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. ऐसी स्थिति में, द्रास सेक्टर के अंतर्गत आने वाली तोलोलिंग की पहाड़ियों पर मौजूद दुश्मन को उसके अंजाम तक पहुंचाना बहुत जरूरी हो गया था. इसी के साथ, सामरिक महत्व वाले मुशकोह घाटी और काकसर क्षेत्रों में भी भारतीय सेना ने हमले की तैयारी पूरी कर ली.
और आधिकारिक तौर पर खत्म हुआ कारगिल युद्ध
उस वक्त, दुश्मन के खिलाफ यह अभियान भारतीय सेना की 3 इन्फैंट्री डिवीजन द्वारा चलाया जा रहा है. जल्द ही, 3 इन्फैंट्री डिवीजन की मदद के लिए कश्मीर घाटी में आतंकवाद विरोधी अभियानों को अंजाम दे रही 8 माउंटेन डिवीजन को भी कारगिल सेक्टर में शामिल कर दिया गया. 3 इन्फैंट्री डिवीजन को बटालिक और काकसर क्षेत्रों में ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई. द्रास और मुश्कोह घाटी में दुश्मन के खिलाफ ऑपरेशन की जिम्मेदारी 8 माउंटेन डिवीजन को सौंपी गई. इसी के साथ, ऑपरेशन विजय में अतिरिक्त पैदल सेना बटालियन, आर्टिलरी रेजिमेंट और इंजीनियरों की इकाइयों को शामिल किया गया.
इसके बाद शुरू हुआ भारतीय सेना का विजय अभियान. इस अभियान में भारतीय सेना को दूसरी बड़ी सफलता 13 जून को तोलोलिंग और प्वाइंट 4590 पर दोबारा कब्जे के बाद मिली. इसके बाद, लगातार प्वाइंट 5410, प्वाइंट 4700, ब्लैक रॉक, थ्री पिंपल, प्वाइंट 5000, प्वाइंट 5287, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 और जूलू सुपर कॉप्लेक्टस पर कब्जा करती गई. 26 जुलाई तक भारतीय सेना ने अपने सभी भारतीय इलाकों को दुश्मन सेना से मुक्त करा लिया और इसी दिन आधिकारिक तौर पर कारगिल युद्ध का अंत हो गया.
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