किस कानून से DSP बना कांस्टेबल छुट्टी ली घर के लिए और मनाने लगा रंगरेलियां

गोरखपुर में पीएसी के एक डीएसपी को डिमोट करके कांस्टेबल बना दिया गया है. क्योंकि उसे अनुशासनहीनता और कदाचार यानि मोरल ग्राउंड पर गलत काम का दोषी पाया गया.

किस कानून से DSP बना कांस्टेबल छुट्टी ली घर के लिए और मनाने लगा रंगरेलियां
हाइलाइट्स दो कानून साफतौर पर पुलिस अफसरों की डिमोट करने का अधिकार देते हैं भ्रष्टाचार, कदाचार, कायरता और अनुशासनहीनता के मामलों में डिमोशन का प्रावधान पुलिस का सक्षम उच्चाधिकारी जांच की प्रक्रिया के बाद कर सकता है पदावनत गोरखपुर में पीएसी बटालियन के एक डीएसपी को एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर बनाने के आरोप में विभागीय अनुशासनत्मक कार्रवाई करके पदावनत यानि डिमोट कर दिया गया. ऐसी कार्रवाइयां सरकारी महकमों में कम होती है लेकिन ऐसे नियम जरूर हैं, जिसमें असाधारण स्थितियों में आपके पद को घटाया जा सकता है. हालांकि इस कदम को चुनौती तो दी जा सकती है लेकिन ऐसे फैसलों को बदलना आसान नहीं होता. हम आगे आपको इसके नियमों का पूरा हवाला देंगे लेकिन उससे पहले जानिए कि मामला दरअसल था क्या, जिसमें ये कार्रवाई हुई. मामला गोरखपुर पीएसी बटालियन का है. वहां एक तैनात एक डीएसपी अधिकारी ने घर जाने के नाम पर अपने सीनियर अफसर से छुट्टी ली. इसके बाद वह कानपुर के एक होटल में एक महिला कांस्टेबल के साथ पाया गया. दरअसल मामला इस तरह खुला कि उसने कानपुर पहुंचते ही अपने मोबाइल को बंद कर दिया. उसकी बीवी ने जब बार बार उसके फोन को स्विचऑफ पाया तो गोरखपुर में पति के सीनियर आफिसर को फोन किया. तब जांच में ये पता लगा कि उक्त डीएसपी की आखिरी लोकेशन कानपुर के एक होटल की है. उसके बाद उसका मोबाइल फोन बंद हो गया. पुलिस ने जब इस आधार पर होटल में जांच की तो डीएसपी को महिला कांस्टेबल के साथ एक कमरे में पाया. इसके बाद उस पर विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए उसे उसी बटालियन में डिमोट करके कांस्टेबल बना दिया गया. क्या हैं नियम  अब जानते हैं कि वो कौन रूल हैं, जिसके आधार पर ये कार्रवाई इस पुलिस अफसर पर की गई. भारत में, पुलिस अधिकारियों को कई नियमों और विनियमों द्वारा पदावनत किया जा सकता है. यहां कुछ प्रमुख नियम जो ऐसा करने की अनुमति देते हैं पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 7 – इस कानून के जरिए पुलिस अधिकारियों की डिमोट किया जा सकता है. इसमें रैंक में या एक समयमान के भीतर पदावनति, वेतन वृद्धि रोकना और पदोन्नति रोकने की धाराएं शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि अधिकारी अपने अनुचित आचरण के चलते पदावनत हो सकता है. उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है. हैदराबाद सिटी पुलिस अधिनियम, 1348 एफ – ये कानून भी पुलिस अधिकारियों की पदावनति के लिए विशिष्ट नियम का आधार बनता है. उदाहरण के लिए, कोई पुलिस अधिकारी जो प्रावधानों का उल्लंघन करता है या कायर पाया जाता है, उसे कारावास या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है. इस कानून के तहत भी नैतिक, कदाचार और अनुशासनहीनता के मामलों में पुलिस अधिकारियों को डिमोट कर सकते हैं. विभागीय जांच – अनुशासनहीनता या भ्रष्टाचार के मामलों में, विभागीय जांच से पदावनति हो सकती है. ये खबरें आप अक्सर पढ़ते होंगे कि एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) को रिश्वत लेने के कारण इंस्पेक्टर रैंक पर पदावनत कर दिया गया. सरकारी नीतियां – उत्तर प्रदेश सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति है, जिसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के दोषी पाए जाने वाले पुलिस अधिकारियों को पदावनत किया जा सकता है. – अनुशासनात्मक प्राधिकारी किसी पुलिस अधिकारी को शारीरिक/मानसिक विकलांगता, अनुचित आचरण, या कर्तव्य की उपेक्षा/उल्लंघन जैसे कारणों से पदावनत कर सकता है. हालांकि इन सभी मामलों में आरोपी अधिकारी को नोटिस, बचाव का अवसर और अपील करने का अधिकार दिया जाता है. अनुशासनात्मक अधिकारी जैसे कि पुलिस महानिरीक्षक या प्रशासक, निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हैं. जानते हैं कि किस तरह ये कार्रवाई होती है कार्रवाई की शुरूआत – अनुशासनात्मक प्राधिकारी, जैसे पुलिस महानिरीक्षक या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक कदाचार के साक्ष्य के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करते हैं.  जांच प्राधिकारी की नियुक्ति- अनुशासनात्मक प्राधिकारी विभागीय जांच करने के लिए एक जांच अधिकारी नियुक्त करता है. आरोप पत्र – आरोपित अधिकारी को आरोपों का विवरण देने वाला आरोप पत्र दिया जाता है और जवाब देने का अवसर दिया जाता है. पूछताछ प्रक्रिया – जांच अधिकारी गवाहों की जांच करता है, साक्ष्य प्रस्तुत करता है. आरोपित अधिकारी को अपना बचाव की अनुमति देता है. आरोपित अधिकारी इस प्रक्रिया के दौरान कानूनी मदद की मांग कर सकता है. निष्कर्ष और जुर्माना – जांच रिपोर्ट के आधार पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी यह तय करता है कि आरोप सही हैं या नहीं. यदि दोषी पाया जाता है, तो अधिकारी कदाचार की प्रकृति और अधिकारी के पिछले रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए उचित जुर्माना लगाता है या बर्खास्तगी, निष्कासन, रैंक में कमी या जुर्माना कर सकता है. क्या कार्रवाई के खिलाफ अपील हो सकती है अपील – आरोपित अधिकारी को संबंधित सेवा नियमों के तहत लगाए गए जुर्माने के खिलाफ उच्च प्राधिकारी के पास अपील करने का अधिकार है. इस प्रक्रिया का उद्देश्य पुलिस बल के भीतर अनुशासन बनाए रखते हुए निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करना है. – विभागीय जांच के दौरान पुलिस अधिकारी को अपना बचाव करने और कानूनी मदद मांगने का अधिकार है. – अधिकारी को आरोपों का विवरण देने वाली चार्जशीट दी जानी चाहिए और जवाब देने का अवसर दिया जाना चाहिए. – अधिकारी को संबंधित सेवा नियमों के तहत पदावनति दंड के खिलाफ उच्च प्राधिकारी के पास अपील करने का अधिकार है. – इस प्रक्रिया का उद्देश्य निष्पक्षता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन तय करना है, जिसमें सुनवाई और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार भी शामिल है. Tags: Gorakhpur Police, UP police, UP Police AlertFIRST PUBLISHED : June 24, 2024, 17:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed