कैसी मिलती है इवेंट की परमिशन भगदड़ जैसे हालात न हों क्‍या होता है प्रोसेस

जब किसी आयोजन के लिए परमिशन ली जाती है तो क्या प्रॉसेस होता है. इस पूरे प्रॉसेस का क्या मतलब होता है. ये समझ लेने से ये भी पता चल जाएगा कि भगदड़ क्या होती है.

कैसी मिलती है इवेंट की परमिशन भगदड़ जैसे हालात न हों क्‍या होता है प्रोसेस
हाथरस की सत्‍संग वाली जगह पर मातम पसरा है. भगदड़ में 130 से ज्यादा की जान चली गई. बहुत से अकीदतमंद अस्पतालों में मौत से जूझ रहे हैं. हाथरस के इस हादसे को लेकर सभी के मन में एक सवाल है कि इस सबके लिए दोषी कौन है. आयोजन कराने वाले या फिर आयोजन की परमिशन देने वाले? लोग ये भी जानना चाह रहे हैं कि भगदड़ आखिर हुई कैसे. इसे लेकर भी अभी तक प्रशासन की ओर से कुछ नहीं कहा गया है. हां प्रशासन ने ये जरूर मान लिया है कि सत्‍संग के लिए परमिशन ली गई थी. आयोजनों के लिए परमिशन तो ये जानते हैं कि जब किसी आयोजन के लिए परमिशन ली जाती है तो क्या प्रॉसेस होता है. इस पूरे प्रॉसेस का क्या मतलब होता है. ये समझ लेने से ये भी पता चल जाएगा कि भगदड़ क्या होती है. इससे कैसे बचा जा सकता है. नियमों के मुताबिक जब भी कहीं अधिक संख्या में लोग जमा हो रहे हों तो परमिशन लेनी पड़ती है. इसके लिए इलाके के एसडीएम के यहां एप्‍लीकेश दी जाती है. एसडीएम के यहां एप्‍लीकेश, थाना इंचार्ज की संस्तुति एसडीएम वहां से आवेदन संबंधित थाने को भेज देता है. अब थाने की जिम्मेदारी होती है कि वो सुरक्षा व्यवस्था के बारे में पता करके अपनी संस्तुति दे. एक पुलिस अधिकारी ने पूरी प्रक्रिया की जानकारी देते हुए बताया कि थाने तक आवेदन आ जाने के बाद अब सारी जिम्मेदारी थाना इंचार्ज की हो जाती है. अगर कोई बहुत बड़ा आयोजन हो रहा हो तो वो खुद वहां जाकर आयोजन की जगह को देखे. या फिर किसी सब इंस्पेक्टर लेवल के अफसर को भेजकर स्थल का मुआयना कराए. इसे मौका मुआयना कहते हैं. जरुरत पड़ने पर हाथ से मौके का नक्शा भी बनाया जाता है. सारा जिम्मा थाने का इसके बाद आने वाली भीड़ के बारे में आयोजकों से बातचीत कर इसकी जानकारी ली जाती है. अगर भीड़ ज्यादा आने की संभावना हो तो आयोजन स्थल पर बनाए जाने वाले स्टेज और तंबू वगैरह के सुरक्षित होने की पुष्टि पीडब्ल्यूडी से कराई जानी चाहिए. साथ ही फायर ब्रिगेड और बिजली विभाग से भी कोआर्डिनेट कर सब कुछ सुरक्षित होने की स्वीकृति लेने की जिम्मेदारी भी थाने की ही है. अब अगर थाना इंचार्ज को लगता है कि आयोजन की देख रेख और व्यवस्था के लिए उसके थाने की मौजूदा पुलिस फोर्स से ज्यादा की जरुरत पड़ेगी तो उसे जिले के एसएसपी को रिपोर्ट लिखनी होगी. जरुरत के मुताबिक एसएसपी पुलिस और पीएसी फोर्स थाने को मुहैया कराता है. बहुत बड़े आयोजनों में जरुरत पड़ने पर दूसरे जिलों से भी फोर्स मंगाई जाती है. इसके अलावा आयोजक अगर वालेंटियर उपलब्ध कराता है तो थाने को ही उन्हें सुरक्षा के उपाय की क्विक ट्रेनिंग भी देनी होती है, क्योंकि ये वो लोग हैं जिन्हें आने वाले और आयोजक भी जानते पहचानते हैं. संबंधित थाने को ये भी सुनिश्चित करना होता है कि आने वाले नियत स्थानों पर गाड़ियां खड़ी करें, जिससे जाम की स्थिति न हो. साथ ही ये पुलिस की ही जिम्मेदारी है कि श्रद्धालुओं के आने और जाने के रास्ते तय कर दे. इससे भीड़ और भगदड़ से बचा जा सकता है. यही नहीं अगर बहुत अधिक भीड़ हो और निकलने के रास्ते संकरे हों तो घुमावदार बैरिकेटिंग भी बनवाने की व्यवस्था की जाती है. इसमें भीड़ घूमती रहती है और भगदड़ जैसी स्थिति नहीं आती. ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि इस सारी प्रक्रिया का खर्च आयोजकों को ही उठाना होता है. अक्सर आयोजक और पुलिस प्रॉसेस फॉलो नहीं करते! कई बार खर्च से बचने के लिए आयोजक बहुत सारी व्यवस्था नहीं करते. साथ ही कानून व्यवस्था और तफ्तीशों के बोझ तले दबा थाना इतनी सारी प्रक्रिया पूरी नहीं करता. अगर कोई हादसा न हुआ तो कोई बात नहीं, लेकिन कोई दुर्घटना हो गई तो परमिशन की संस्तुति करने वाला थाना इंचार्ज दोषी होता है. यहां भी पुलिस के आला अफसरों ने परमिशन लिए जाने की बात कही है. भगदड़ की परिभाषा अब अगर बात की जाय भगदड़ की तो इसे व्यावहारिक तौर पर ही समझा जा सकता है कि बहुत सारे लोग अचानक किसी कारण से एक दिशा में दौड़ पड़े तो वही भगदड़ है. इसे लेकर पुरानी पड़ चुकी सीआरपीसी में भी कोई अलग से परिभाषा नहीं दी गई है. Tags: Hathras Case, Hathras news, Hathras PoliceFIRST PUBLISHED : July 3, 2024, 12:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed