Dehradun: पहाड़ की इस बेटी ने छोटी सी उम्र में खो दी थी सुनने की शक्ति आज अपने जज्बे से बनीं मिसाल

Positive Story: उत्तरकाशी की रहने वाली हैं रुचा विजेश्वरी (Rucha Vijeshwari) ने बचपन में बीमार होने के चलते सुनने की शक्ति को दी थी, लेकिन आज वह कला के क्षेत्र में महारथी हैं. यही नहीं, उनके पास हजारों किताबों का संग्रहालय है, तो वह गरीब बच्‍चों को फ्री शिक्षा देने का काम करती हैं.

Dehradun: पहाड़ की इस बेटी ने छोटी सी उम्र में खो दी थी सुनने की शक्ति आज अपने जज्बे से बनीं मिसाल
हाइलाइट्ससमाजसेविका रुचा विजेश्वरी उत्तरकाशी की रहने वाली हैं. रुचा विजेश्वरी ने बचपन में बीमार होने के चलते सुनने की शक्ति को दी थी. वह अब तक 500 से ज्यादा गरीब बच्चों को पढ़ा चुकी हैं. रिपोर्ट-हिना आज़मी देहरादून. आपने कई समाजसेवियों को देखा होगा और उनके बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक 24 वर्षीय ऐसी समाजसेवी के बारे में बताने वाले हैं जो सबसे अलग और सबसे खास है. पहाड़ की बेटी रुचा विजेश्वरी (Rucha Vijeshwari) जिसने भले ही बचपन में बीमार होने के चलते सुनने की शक्ति को दी थी, लेकिन आज वह कला के क्षेत्र में महारथी है. रुचा पर्यावरण और महिलाओं आदि के मुद्दों पर पेंटिंग, पोस्टर और नुक्कड़ नाटकों से लोगों को जागरूक करती हैं. गरीब व असहाय बच्चों को पढ़ाने के साथ साहित्य समेत भिन्न-भिन्न रचनात्मक कलाओं के तमाम गुर भी रुचा विजेश्वरी उन्हें सिखाती हैं. रुचा विजेश्वरी उत्तरकाशी की रहने वाली हैं, जो देहरादून में कई तरह के इवेंट में पेंटिंग और पोस्टर बनाकर लोगों को जागरूक करने का काम करती आई हैं. इसके अलावा वह कई जनआंदोलनों में भी हिस्सा ले चुकी हैं. कांटों से भरी थी रुचा की जिंदगी, लेकिन मेहनत से खिलाए फूल 7 अक्टूबर, 1998 में उत्तरकाशी के बड़कोट के एक पर्वतीय गांव गडोली में जन्मी रुचा ने बीमारी के चलते सुनने की शक्ति को दी थी. रुचा बताती हैं कि उन्होंने बचपन से ही बहुत संघर्ष किया है. स्कूल में उनके न सुनने पर उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था. वह पढ़ना चाहती थीं लेकिन कुछ शिक्षकों द्वारा अक्सर उनका मनोबल गिराया जाता था. उनके जीवन में ऐसे शिक्षक भी आए, जिन्होंने उनकी जिंदगी बदल दी. रुचा ने बताया कि कई बार उन्हें रंगभेद भी झेलना पड़ा क्योंकि उनके रंग की वजह से बचपन में उन्हें कोई पसंद नहीं करता था. हालांकि उनके परिवार ने हमेशा उन्हें पूरा प्यार दिया और हर जगह सपोर्ट किया. बदलना पड़ा था स्‍कूल स्कूल में शिक्षक और बच्चों के भेदभाव के चलते रुचा ने स्कूल बदल दिया था. जिसके बाद उन्होंने राजकीय बालिका इंटर कॉलेज चिन्यालीसौड़ में एडमिशन लिया. यहां के शिक्षकों का रुचा को पूरा सपोर्ट मिला. मेहनत और लगन से रुचा ने हाईस्कूल में 77.47 प्रतिशत के साथ टॉप किया, जिसके बाद साल 2014 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने उन्हें सम्मानित भी किया. इसके अलावा अंबेडकर अवॉर्ड से भी रुचा को नवाजा गया. पढ़ाई में उनकी रूचि और बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए माता-पिता ने उन्हें टिहरी के बाद शाहीथौल के एसआरटी कैंपस से ग्रेजुएशन की डिग्री दिलाई और इसके बाद उन्होंने एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एमए किया. इसके बाद रुचा ने श्रीमती मंजीरा देवी शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान से बीएड भी किया. किताबों का है बड़ा संग्रहालय रुचा को बचपन से ही किताब पढ़ने का बहुत शौक है और इनसे प्यार भी, क्योंकि उन्होंने कभी किसी इंसान की आवाज नहीं सुनी. बोलना सीखा तो इन किताबों से ही. रुचा के पास हजारों किताबों का संग्रहालय है. रुचा ने अपनी बेहतरीन पोस्टर, पेंटिंग और वॉल पेंटिंग से आंदोलनों और कई मुद्दों पर प्रकाश डाला. वह आज अपने ही गांव में बच्चों को निःशुल्क पेंटिंग और नुक्कड़ नाटक सिखा रही हैं. रुचा ने पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ाना भी शुरू कर दिया था. वह उन बच्चों को पढ़ाती थीं, जो किसी तरह की मजबूरी के चलते पढ़ नहीं सकते थे. बच्चों के साथ रहकर रुचा का बचपन मानो फिर से लौट आया. बच्चों को पढ़ाना, उन्हें कला के विभिन्न गुर सिखाना, जैसे रुचा के जीवन का मकसद बन गया. वह अब तक 500 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा चुकी हैं. आज रुचा जहां कहीं भी पहुंची हैं, वह इसका श्रेय अपने माता-पिता और शिक्षकों को देती हैं.आज रुचा ने कला के क्षेत्र में उत्तराखंड का नाम रोशन किया है, तो छोटी सी उम्र में समाज सेवा करने के चलते उन्होंने सबके दिलों में जगह बना ली है. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Dehradun news, Positive StoryFIRST PUBLISHED : July 29, 2022, 14:18 IST