प्यार के ग्रह पर क्यों नहीं हो सकता प्यार भारत बना लिया वहां जाने का प्लान

भारत ने पक्का कर लिया है कि अब उसका रुख प्यार के ग्रह कहे जाने वाले शुक्र की ओर भी होगा, हालांकि अमेरिका वहां 64 साल पहले ही जा चुका है. कैसा है ये रहस्यमयी ग्रह

प्यार के ग्रह पर क्यों नहीं हो सकता प्यार भारत बना लिया वहां जाने का प्लान
हाइलाइट्स शुक्र ग्रह में काफी हद तक स्थितियां पृथ्वी जैसी हैं लेकिन ये रहने लायक क्यों नहीं एक जमाने में पृथ्वी और शुक्र बिल्कुल एक जैसे ही थे फिर बदलाव आ गया आखिर शुक्र ग्रह को लेकर पूरी दुनिया में दिलचस्पी बढ़ क्यों रही, क्या ऐसा वहां 18 सितंबर को दिल्ली में केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में चांद और अंतरिक्ष से संबंधित तीन बड़े अभियानों को हरी झंड़ी दिखाई गई. यानि भारत का अगला कदम प्यार के ग्रह माने जाने वाले वीनस यानि शुक्र की ओर है. ठीक चार साल बाद भारत का शुक्रयान उस ओर रवाना होगा, वहां के आर्बिट यानि कक्षा में पहुंचेगा. फिर शुक्र के चारों ओर घूमते हुए देखेगा कि जिस ग्रह में ऑक्सीजन मौजूद है, वहां जीवन क्यों नहीं. साथ ही इस ग्रह में और कौन सी खास बातें हैं. दरअसल शुक्र ग्रह के बारे में जानने में दिलचस्पी पूरी दुनिया में है. 1960 में ये काम शुरू हुआ. अब तक 46 मिशन वहां जा चुके हैं. इसमें अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप शामिल हैं. अब चीन भी वहां जाने के लिए कमर कस चुका है और साथ में भारत भी. 64 सालों में 46 मिशन  आप खुद सोचिए कि पिछले 64 सालों में दुनिया की दिलचस्पी शुक्र के लिए क्यों बढ़ती रही है. शुक्र पृथ्वी का सबसे नजदीकी ग्रह है. इतने सारे वीनस मिशन से ये समझने की कोशिश हो रही है कि शुक्र ग्रह नरक जैसा ग्रह कैसे बन गया जबकि इसमें पृथ्वी सरीखी ही कई विशेषताएं हैं. ये सौरमंडल का ऐसा ग्रह है जो रहने योग्य हो सकता है, जहां ऑक्सीजन है और पानी भी. जहां समुद्र लहराते हैं. शुक्र ग्रह पर ऑक्सीजन 100 किलोमीटर ऊपर सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों के बीच रहती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay) कब भारत भेजेगा शुक्र यान भारत वर्ष 2028 में इसके आर्बिट में अपना यान भेजेगा. इसके लिए 1,236 करोड़ (US$150 मिलियन) मंजूर किए गए हैं, जिनमें से ₹ ​​824 करोड़ (US$99 मिलियन) अंतरिक्ष यान की ओर जाएंगे. इसके जरिए शुक्र के वातावरण, सौर विकिरण और वायु का अध्ययन करेगा. शुक्र ग्रह पर ऐसी बहुत सी जानकारी छिपी है जो हमें पृथ्वी और ग्रहों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकती है शुक्र के लिए एक मिशन पहली बार 2012 में तिरुपति अंतरिक्ष सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था लेकिन ये आगे नहीं बढ़ पाया लेकिन इसको लेकर इसरो का अध्ययन जारी रहा. 2017 में इसरो ने ये तय किया कि वो शुक्र ग्रह के लिए अपना मिशन भेज सकता है. इसके लिए वह अब तैयार है. इसरो का यान शुक्र ग्रह की कक्षा में 55 किलोमीटर से उस पर नजर रखेगा और जानकारियां भेजेगा. एक समय पर पृथ्वी और शुक्र एक ही जैसे ग्रह थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay) क्या शुक्र पर जिंदा रह सकते हैं अब आइए इस ग्रह के बारे में अब तक मालूम जानकारी की बात करते हैं. जहां मंगल और चंद्रमा पर जीवन के लिए स्थितियां अनुकूल नहीं हैं तो वहीं शुक्र पर हालात जीवन को खत्म कर देने वाले हैं. चंद्रमा और मंगल पर उपकरणों के साथ जिंदा रहा जा सकता है, वहां शुक्र ग्रह पर ऐसा करना असंभव है. शुक्र में कितनी ऑक्सीजन  शुक्र ग्रह पर ऑक्सीजन है तो सही लेकिन उस रूप में नहीं कि उसमें सांस ली जा सके. वैज्ञानिकों ने शुक्र के वायुमंडल में दिन और रात दोनों समय परमाण्विक ऑक्सीजन का पता लगाया है. यह ऑक्सीजन वहां के वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों की दो परतों के बीच 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर मिलती है. कितना होता है इस ऑक्सीजन का तापमान ऑक्सीजन का निर्माण दिन के समय होता है जब सूर्य की पराबैंगनी किरणें कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड को तोड़ती हैं. फिर हवाएं कुछ ऑक्सीजन को रात की ओर ले जाती हैं. इस ऑक्सीजन का तापमान दिन में माइनस 120 डिग्री सेल्सियस से लेकर रात को माइनस 160 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. क्यों ये ऑक्सीजन है खतरनाक शुक्र ग्रह पर मौजूद ऑक्सीजन पृथ्वी पर मौजूद उस ऑक्सीजन से भिन्न है जिसे मनुष्य सांस के माध्यम से ग्रहण करते हैं, जो दो जुड़े हुए ऑक्सीजन परमाणुओं से बनी होती है। शुक्र ग्रह पर ऑक्सीजन एकल स्वतंत्र रूप से तैरते ऑक्सीजन परमाणुओं से बनी है ये ऑक्सीजन फेफड़ों को खराब कर देगी. ओफ…इतना ज्यादा तापमान…कहलाता है नर्क वहां का वायुमंडल कार्बनडाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों से भरपूर है. वायुमंडल में तापमान भी बहुत अधिक है. सतह पर वहां तापमान हमेशा 450 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है. क्या पृथ्वी भी बन सकती है शुक्र जैसी शुक्र ग्रह के बारे में कहा जाता है कि कभी पृथ्वी और वह दोनों ही एक ही जैसे ग्रह थे.  लेकिन आज जहां पृथ्वी पर जीवन पनपा हुआ है तो शुक्र एक तरह का नर्क है. वैज्ञानिकों को यह भी मानना है कि अगर पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह से जारी रही तो एक दिन पृथ्वी भी शुक्र की तरह हो जाएगी. इस लिहाज से शुक का अध्ययन पृथ्वी के पर्यावरण के लिए बहुत उपयोगी हो सकता है. Tags: ISRO satellite launch, Space, Space ScienceFIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 15:37 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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