दक्षिण में कदम रखते ही उत्तर में BJP का आंगन सूना हिंदी बेल्ट ने किया खेल

Explainer: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लंबे समय से इस बात के लिए प्रयासरत थी कि वो दक्षिण में अपने पैर पसार. इस चुनाव ने उसे वो मौका भी दिया, लेकिन हिंदी पट्टी में वो अपना पुराना करिश्मा नहीं दोहरा सकी. इस बात उत्तर में उसे काफी सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. जानिए क्यों हुआ ऐसा...

दक्षिण में कदम रखते ही उत्तर में BJP का आंगन सूना हिंदी बेल्ट ने किया खेल
Lok Sabha Chunav Result: भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके गठबंधन (NDA) ने 2024 लोकसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया. लेकिन इन चुनाव परिणामों की विशेषता यह है कि बीजेपी ने उत्तर खासकर हिंदी पट्टी की पार्टी होने की धारणा को तोड़ते हुए दक्षिण भारत में अपना प्रभाव बढ़ाया है. हिंदी भाषी राज्यों में हुए सीटों के नुकसान की वजह से बीजेपी एकबारगी लड़खड़ाती नजर आई, लेकिन दक्षिण भारत ने उसे संभाल लिया.  बीजेपी ने ना केवल दक्षिण भारत में अच्छा प्रदर्शन किया, बल्कि केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में 2019 के मुकाबले अपना वोट शेयर बढ़ाया है. वैसे बीजेपी 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. फिर भी वो इस बार अकेले दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. लेकिन एनडीए ने 292 सीटें हासिल कर बीजेपी की इस मुश्किल को आसान कर दिया.  ये भी पढ़ें- नीतीश कुमार या चंद्रबाबू नायडू साथ छोड़ दें तो भी आसानी से बनेगी मोदी सरकार, समझिये समीकरण दक्षिण में पसारे पैर अगर बीजेपी के राज्यवार प्रदर्शन का आकलन किया जाए तो यह कहा जा सकता है कि 2019 के मुकाबले बीजेपी का इस बार दक्षिण भारत में प्रदर्शन अधिक प्रभावशाली रहा है. कर्नाटक में बीजेपी अपना दबदबा बनाए रखने में सफल रही. तेलंगाना में उसने अपना वोट प्रतिशत और सीट दोनों ही लगभग दोगुने कर लिए. आंध्र प्रदेश में उसका वोट प्रतिशत दस गुने से ज्यादा बढ़ गया. तमिलनाडु में भी बीजेपी ने अपने वोट प्रतिशत में तीन गुने से ज्यादा का इजाफा किया. यही नहीं केरल में इस बार बीजेपी अपना खाता खोलने में सफल रही.  ये भी पढ़ें- Explainer: अगर राहुल गांधी ने ऐसा नहीं किया तो क्यों वायनाड और रायबरेली से चली जाएगी उनकी सांसदी सामाजिक न्याय का मुद्दा चुनाव परिणाम आने के बाद चर्चा का विषय बीजेपी की हिंदी भाषी राज्यों में सीटें घटना रहा है. उत्तर भारत में बीजेपी को हरियाणा, राजस्थान और विशेषकर उत्तर प्रदेश में काफी नुकसान हुआ. यूपी में बीजेपी को अखिलेश यादव की नए तेवरों वाली समाजवादी पार्टी (सपा) से जूझना पड़ा. फिर इस बार सपा को कांग्रेस का साथ मिला. इंडिया गठबंधन ने गैरयादव और अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) को उचित प्रतिनिधित्व देकर चुनाव को रोमांचक बना दिया. यूपी में विपक्ष ने सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाकर उसका भरपूर लाभ उठाया. इंडिया गठबंधन ने संविधान (खतरे में), जाति जनगणना और आरक्षण के इर्द-गिर्द जो कहानी बुनने की कोशिश की उसने ओबीसी और दलित समुदायों के एक वर्ग को प्रभावित किया. नतीजों से पता चलता है कि यूपी में राहुल गांधी की इमेज को अधिक स्वीकार्यता मिली है.    क्या रहा मोदी के पक्ष में हालांकि काफी सीटें कम होने के बावजूद ऐसा नहीं है कि यह चुनाव बीजेपी के लिए घाटे का सौदा रहा. इस बार भी मतदाताओं का बड़ा हिस्सा मोदी के पक्ष में गया, उनके विकास डिजाइन और शासन मॉडल में विश्वास दिखाया. राम मंदिर का उद्घाटन, अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, नागरिक (संशोधन) अधिनियम आदि सभी ने उनकी विश्वसनीयता में इजाफा किया. साथ ही, लाभार्थी कारक ने हाशिये के समुदायों जैसे कि दलित, आदिवासी, अति पिछड़ी जातियां और महिलाओं को संगठित करने में काम किया. मुफ्त राशन, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान कार्ड और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण जैसी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी भाजपा के लिए आधार थे. पार्टी कैडर द्वारा उनके साथ निरंतर जुड़ाव बनाए रखने से, इसने लाभार्थियों को वोटर के रूप में पुनः स्थापित किया. लेकिन ये बीजेपी के लिए विचार करने वाली बात है कि आखिर क्यों उसे उत्तर भारत, खासकर यूपी में तगड़ा झटका झेलना पड़ा. यूपी में बीजेपी ने ना केवल अयोध्या की सीट गंवा दी, बल्कि अमेठी में स्मृति ईरानी और सुल्तानपुर में मेनका गांधी जैसी दिग्गज नेताओं को भी हार का मुंह देखना पड़ा. Tags: 2024 Lok Sabha Elections, BJPFIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 14:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed