झारखंड में BJP ने झोंकीं पूरी ताकत खूब रैलियांतब भी आदिवासियों ने किया खारिज
झारखंड में BJP ने झोंकीं पूरी ताकत खूब रैलियांतब भी आदिवासियों ने किया खारिज
राष्ट्र में बीजेपी ने जितनी बंपर जीत हासिल की, उसका उल्टा उसके साथ झारखंड में हुआ. बीजेपी ने इस चुनाव में हेमंत सोरेन और इंडिया ब्लॉक को हराने में सारी ताकत झोंक दी थी. आखिर क्यों झारखंड में बीजेपी आदिवासियों का इंप्रैस नहीं कर पाई.
हाइलाइट्स नहीं चला बांग्लादेश को घुसपैठिए बताकर जमीन और लड़कियों पर कब्जे का कार्ड झारखंड की ' माटी , बेटी और रोटी' खतरे में नारा नहीं कर सका इंप्रैस आदिवासी हमेशा बीजेपी के प्रति भूमि अधिकारों को लेकर संशकित रहे हैं
एग्जिट पोल में झारखंड में बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए को स्पष्ट तौर पर विजेता के रूप में दिखाया जा रहा था लेकिन रिजल्ट इससे साफ उलट रहा. चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि वहां हेमंत सोरेन, झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन ने बंपर जीत हासिल की है. जाहिर है बीजेपी सारी ताकत झोंकने के बाद भी आदिवासियों को इंप्रैस नहीं कर पाई.
झारखंड में चुनावों से पहले बीजेपी ने लव और लैंड जिहाद का मुद्दा जोरशोर से उठाया. हिंदू और मुस्लिम ध्रुवीकरण करने की कोशिश की लेकिन उनका ये कार्ड यहां उस तरह नहीं चला, जैसा उन्हें उम्मीद थी. उन्होंने चंपई सोरेन और सीता सोरेन को जेएमएस के खिलाफ ट्रंप कार्ड के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन वो भी नहीं चला.
भाजपा ने झारखंड में चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ने ही लाइव रैलियां कीं. पार्टी ने असम से अपने ‘अवैध अप्रवासी विशेषज्ञ’ हिमंत बिस्वा सरमा को बांग्लादेश से ‘घुसपैठियों’ को आने देने के लिए सोरेन सरकार पर हमला करने के लिए बुलाया. भाजपा ने रैलियों में कहा कि झारखंड की ‘ माटी , बेटी और रोटी’ खतरे में है, साथ ही कहा कि ये ‘घुसपैठिए’ ही हैं जो झारखंड के मूल निवासियों से जल , ज़मीन और जंगल छीन रहे हैं.
पिछले हफ़्ते एक चुनावी विज्ञापन में सामने आया जिसमें मुसलमानों को एक हिंदू के घर में घुसकर उसे अपने कब्ज़े में लेते हुए दिखाया गया. चुनाव आयोग ने भाजपा को विज्ञापन हटाने के लिए कहा.
वहीं जमानत पर बाहर आने के बाद सोरेन ने आदिवासी पहचान पर केन्द्रित अभियान चलाया है, ये संख्याएं झारखंड की पहचान की राजनीति और राज्य में आदिवासी वोट की ताकत का प्रमाण हैं।
आदिवासियों ने बीजेपी को पहचान के संकट के तौर पर देखा
झारखंड राज्य की पहचान आदिवासी राज्य के तौर पर है. ये स्वदेशी आदिवासी समुदायों की एक बड़ी आबादी का घर है, जिनकी एक अलग सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है. इनमें से कई जनजातियों का अपनी भूमि, परंपराओं और समुदाय-आधारित प्रणालियों से गहरा संबंध है.
भाजपा, एक प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद, अक्सर इस पहचान से जुड़ने में चुनौतियों का सामना करती है, खासकर इसलिए क्योंकि कई आदिवासी समुदाय ऐसी नीतियों से सावधान रहते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि वे उनकी स्वायत्तता को कमजोर कर सकते हैं या भूमि के नुकसान का कारण बन सकते हैं.
बीजेपी की भूमि और संसाधनों से जुड़ी नीतियां
भाजपा को आर्थिक विकास नीतियों का पक्षधर माना जाता है, जो खनन, औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देती हैं, जिससे आदिवासी समुदायों के लिए विस्थापन और भूमि का नुकसान हो सकता है. वन अधिकार और भूमि अधिग्रहण कानूनों पर पार्टी के रुख ने आदिवासियों के सामने बीजेपी को लेकर हमेशा अविश्वास की स्थिति पैदा की है, ये आदिवासी आबादी के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, आदिवासी भूमि अधिकारों के संभावित अधिकार को लेकर संशकित रहे हैं.
राष्ट्रवाद जनजातीय वोटर्स को प्रभावित नहीं करता
झारखंड में कई जनजातीय समुदाय सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे शिक्षा और रोजगार में आरक्षण, साथ ही वन अधिकारों पर बहुत अधिक निर्भर हैं. इन नीतियों के प्रति भाजपा के दृष्टिकोण को कभी-कभी इन समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं के प्रति अपर्याप्त या अपर्याप्त रूप से संवेदनशील माना जाता है. पार्टी का ध्यान विशिष्ट जनजातीय चिंताओं के बजाय राष्ट्रवाद पर है, जो उसे जनजातीय मतदाताओं से दूर करता है.
राज्य में बीजेपी के असरदार आदिवासी नेता नहीं
बेशक बीजेपी संथाल समुदाय से ओडिसा की जुड़ी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया, जिनका समुदाय झारखंड में बड़ी संख्या में है, चंपई सोरेन को बीजेपी में शामिल किया लेकिन इसके भीतर बीजेपी के पास राज्य में जनजातीय नेतृत्व का असर दिखाने वाले दमदार नेता नहीं हैं.
हालांकि पार्टी ने प्रमुख पदों पर आदिवासी नेताओं को नामित करने के प्रयास किए लेकिन इन नेताओं का वैसे प्रभाव नहीं है, जैसा झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं का रहा है, जिसका आदिवासी अधिकारों और मुद्दों की वकालत करने का लंबा इतिहास रहा है.
बीजेपी के पास आदिवासी समुदाय का एक बड़ा नेता नहीं था जो हेमंत सोरेन के मुकाबले खड़ा हो सके. चंपई सोरेन जैसे नेताओं का पार्टी बदलना भी आदिवासियों को पसंद नहीं आया, जिससे बीजेपी की स्थिति कमजोर हुई
क्षेत्रीय दलों से प्रतिस्पर्धा मुश्किल में डालती है
झारखंड में, JMM और अन्य क्षेत्रीय दलों ने आदिवासी आबादी के बीच एक मजबूत आधार स्थापित किया है, जो भूमि अधिकार, स्वायत्तता और सांस्कृतिक संरक्षण जैसी स्थानीय चिंताओं पर जोर देते हैं. भाजपा इन स्थापित क्षेत्रीय ताकतों के साथ खुद को मुश्किल में पाती है. ये क्षेत्रीय पार्टियां आदिवासी समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने में अधिक विश्वसनीय हैं.
भाजपा की राष्ट्रीय नीतियां
भाजपा की राष्ट्रीय नीतियों, खासकर हिंदू धार्मिक राष्ट्रवाद से जुड़ी नीतियों को अक्सर आदिवासी समुदायों द्वारा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है, जिन्हें लगता है कि उनकी स्वदेशी आस्थाओं और संस्कृतियों को दरकिनार किया जा सकता है. इससे बीजेपी को लेकर आदिवासियों में अलगाव की भावना पैदा हुई है.
बीजेपी ने आदिवासी मुद्दों पर अपने प्रचार में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया, लेकिन यह रणनीति आदिवासी समुदाय में प्रभावी नहीं रही. आदिवासियों ने इसे अपनी पहचान और संस्कृति पर खतरे के रूप में देखा, जिससे उनकी बीजेपी के प्रति नकारात्मक धारणा बनी.
सोरेन की गिरफ्तारी भी उल्टी पड़ी
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को बीजेपी ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन यह रणनीति उलटी पड़ी. लोगों ने इसे बीजेपी की राजनीतिक चाल समझा. सोरेन को एक पीड़ित नेता के रूप में देखा.
ज्यादा वोट डालकर बीजेपी को खारिज किया
आदिवासी क्षेत्रों में इस बार मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड स्तर पर रहा, जिसमें से अधिकांश सीटें जेएमएम के पक्ष में गईं. 26 आरक्षित सीटों में से 21 पर जेएमएम ने जीत हासिल की, जो दर्शाता है कि आदिवासी वोटरों ने बीजेपी को खारिज कर दिया.
Tags: CM Hemant Soren, Hemant soren government, Jharkhand election 2024, Jharkhand Elections, Tribes of IndiaFIRST PUBLISHED : November 23, 2024, 19:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed