Explainer: एएमयू क्यों है अल्पसंख्यक संस्थान किस वजह से मिला ये दर्जा
Explainer: एएमयू क्यों है अल्पसंख्यक संस्थान किस वजह से मिला ये दर्जा
Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 1920 में अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल हुआ. यह दर्जा पाने के लिए एक विश्वविद्यालय को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ मानदंडों को पूरा करना होता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “आर्टिकल 30(1) का मकसद यही है कि अल्पसंख्यकों की ओर से बनाया गया संस्थान उनके द्वारा ही चलाया जाए."
Aligarh Muslim University: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) को लेकर बड़ा फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखा है. इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर कहा था कि किसी शैक्षणिक संस्थान का प्रशासन किसी कानून द्वारा नियंत्रित होने के आधार पर उसका अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त नहीं होता.
इस फैसले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “संस्थान को स्थापित करने और उसके सरकारी तंत्र का हिस्सा बन जाने में अंतर है, लेकिन आर्टिकल 30(1) का मकसद यही है कि अल्पसंख्यकों की ओर से बनाया गया संस्थान उनके द्वारा ही चलाया जाए. चाहे कोई शैक्षणिक संस्था संविधान लागू होने से पहले बनी हो या बाद में. इससे उसका दर्जा नहीं बदल जाएगा.” सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ आज रिटायर हो रहे हैं. ये उनके कार्यकाल के अंतिम दिन का अंतिम फैसला है.
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क्या है एएमयू का इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की जड़ें वास्तव में मुहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (MOA) से जुड़ी हैं, जिसे सर सैयद अहमद खान ने 1875 में स्थापित किया था. इसका मुख्य उद्देश्य उस समय भारत में मुसलमानों के बीच शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करना था. 1920 में, इस संस्थान को भारतीय विधायी परिषद के एक अधिनियम के माध्यम से विश्वविद्यालय का दर्जा मिला. इस बदलाव ने MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना दिया.
विश्वविद्यालय ने MOA कॉलेज की सभी संपत्तियों और कार्यों को विरासत में प्राप्त किया. 1920 में एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा हासिल हुआ. अल्पसंख्यक दर्जा पाने के लिए एक विश्वविद्यालय को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ मानदंडों को पूरा करना होता है, जिसमें यह साबित करना पड़ता है कि विश्वविद्यालय खास समुदाय के छात्रों की शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष रूप से स्थापित किया गया है. हालांकि विश्वविद्यालयों को खास तरह के सरकारी लाभ मिलते हैं, जिसमें स्कॉलरशिप जैसी चीजें शामिल होती हैं.
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क्यों पैदा हुआ विवाद
एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र पर विवाद 1967 में प्रमुखता से उभरा. इसकी मुख्य वजह 1920 के एएमयू अधिनियम में 1951 और 1965 में किए गए संशोधन हैं. मुख्य बदलावों में ‘लॉर्ड रेक्टर’ की स्थिति को ‘विजिटर’ से बदलना शामिल था, जो भारत के राष्ट्रपति होंगे. विश्वविद्यालय प्रबंधन में केवल मुसलमानों की सदस्यता वाले प्रावधानों को हटा दिया गया, जिससे गैर-मुसलमानों को भाग लेने की अनुमति मिली. इसके अलावा, इन संशोधनों ने विश्वविद्यालय प्रबंध समिति के अधिकारों को कम कर दिया जबकि कार्यकारी परिषद की शक्तियों को बढ़ा दिया. जिससे कोर्ट को ‘विजिटर’ द्वारा नियुक्त एक निकाय बना दिया. सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती मुख्य रूप से इस आधार पर थी कि मुसलमानों ने एएमयू की स्थापना की थी और इसलिए उनके पास इसका प्रबंध संभालने का अधिकार था.
1967 में क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि मुसलमानों ने 1920 में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. लेकिन इससे भारतीय सरकार द्वारा इसकी डिग्रियों की आधिकारिक मान्यता की गारंटी नहीं मिलती. शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले, 1967 में कहा कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. अदालत के निर्णय में महत्वपूर्ण बिंदु यह था कि एएमयू को एक केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया था ताकि इसकी डिग्रियों की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके. यह दर्शाता है कि अधिनियम स्वयं मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का एकमात्र उत्पाद नहीं था.
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कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भले ही यह अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का परिणाम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 1920 के अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय को मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था. इस कानूनी चुनौती और 1967 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया. कोर्ट ने यह तर्क दिया कि इसकी स्थापना और प्रशासन केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों पर आधारित नहीं थे जैसा कि पहले तर्क दिया गया था. एएमयू को 1981 के एएमयू अधिनियम के माध्यम से भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ का दर्जा दिया गया था.
विवाद क्यों जारी है?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुसलमानों ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किए. जिसके चलते 1981 में एक संशोधन किया गया जिसने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे की पुष्टि की. इसके जवाब में, केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में एक संशोधन पेश किया और धारा 2(एल) और उपधारा 5(2)(सी) जोड़कर इसके अल्पसंख्यक दर्जे की स्पष्ट पुष्टि की.
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2005 में, एएमयू ने स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों की 50 फीसदी सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों के लिए आरक्षित कीं. हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया, जिससे 1981 का अधिनियम शून्य हो गया. कोर्ट ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले के अनुसार एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है. 2006 में, केंद्र सरकार सहित आठ पक्षों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 2016 में, केंद्र सरकार ने अपनी अपील वापस ले ली, यह कहते हुए कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है. 2019 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की पीठ को भेजा.
जानिए सुप्रीम कोर्ट का पक्ष
कोर्ट ने कहा कि कानून द्वारा विनियमित होने से किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म नहीं होता. उसने यह भी कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा विशेष प्रशासन की जरूरत महसूस नहीं करता. एक अल्पसंख्यक संस्थान को केवल धार्मिक पाठ्यक्रम ही नहीं देने चाहिए और इसका प्रशासन धर्मनिरपेक्ष हो सकता है, जिसमें विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश दिया जा सकता है.
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एएमयू में आंतरिक आरक्षण
वर्तमान में, एएमयू किसी भी राज्य की आरक्षण नीति का पालन नहीं करता है। लेकिन इसमें एक आंतरिक आरक्षण नीति है. जिसके तहत 50 प्रतिशत सीटें उन छात्रों के लिए आरक्षित हैं जिन्होंने इसके संबद्ध स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाई की है. यह मुद्दा बार-बार संसद की विधायी क्षमता और न्यायपालिका की जटिल कानूनों की व्याख्या करने की क्षमता को परखता रहा है.
और कितनी यूनिवर्सिटी, जिनको अल्पसंख्यक दर्जा
भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अलावा भी कई विश्वविद्यालय हैं जिनका संचालन मुस्लिम समुदाय द्वारा किया जाता है या जिनकी स्थापना मुस्लिमों के लिए की गई थी. अब तक, भारत में 23 विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के लिए. 1947 में भारत की आज़ादी के समय ऐसे संस्थानों की संख्या केवल पांच थी. दिल्ली में स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और इसे मुस्लिम समुदाय के लिए स्थापित किया गया था. हैदराबाद की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी उर्दू भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्थापित की गई थी. बिहार राज्य के पूर्णिया जिले में स्थित जवाहरलाल नेहरू मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना 1971 में हुई थी. यह विश्वविद्यालय विशेष रूप से बिहार के मुस्लिम समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया था.
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कोच्चि, केरल में स्थित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्टडीज संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर देता है. कर्नाटक मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 2000 में हुई थी. यह विश्वविद्यालय मुस्लिम समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था और इसे अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त है. पटना विश्वविद्यालय भी एक प्रसिद्ध संस्थान है जो अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा देता है. यहां मुस्लिम छात्रों के लिए खास छात्रवृत्तियां और सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, हालांकि इसे अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं मिला है.
Tags: Aligarh Muslim University, DY Chandrachud, Explainer, Justice DY Chandrachud, Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : November 8, 2024, 12:58 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed