वो कौन सा पहला भारतीय था जो 132 साल पहले चुनाव जीतकर बना ब्रिटिश सांसद
वो कौन सा पहला भारतीय था जो 132 साल पहले चुनाव जीतकर बना ब्रिटिश सांसद
UK Elections 2024: 06 जून 1892 के दिन भारत के दादा भाई नौरोज ने इंग्लैंड में हाउस ऑफ कामंस का चुनाव लड़ा और जीता. वह इस तरह ब्रिटिश संसद में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने.
हाइलाइट्स 1892 में एक सांसद के तौर पर जीत हासिल कर इतिहास बनाया ये वो समय था जब भारतीयों को ब्रिटेन में हेय समझा जाता था ब्रिटिश पीएम की एक नस्लीय टिप्पणी ने उन्हें चर्चित कर दिया था
इस बार ब्रिटेन के चुनावों में 18 भारतीय मूल के उम्मीदवार जीते हैं, इसमें पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत 05 कंजर्वेटिव पार्टी से संबंधित हैं तो 13 उम्मीदवार लेबर पार्टी से जीतकर संसद में पहुंच रहे हैं. पिछले कुछ दशकों से भारतीय मूल के लोग अब लगातार वहां चुनावों में जीतकर सांसद बनते हैं लेकिन क्या आपको मालूम है कि वो पहला भारतीय कौन था, जिसने सबसे पहले हाउस ऑफ कामंस का चुनाव जीता था और सांसद बनकर ब्रिटेन की संसद में पहुंचा था.
पहला भारतीय जब वहां सांसद के तौर पर चुना गया तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ. ये आसान तो बिल्कुल नहीं था. ये 131 साल पहले की बात है जब भारत ब्रिटिश राज के तहत था. मजबूत इरादों वाला ये शख्स दादाभाई नौरोजी थे, जिन्होंने 1892 में एक सांसद के तौर पर जीत हासिल कर इतिहास बना दिया.
गार्डियन और ब्रिटेन के कई प्रमुख अखबारों में अपनी पुरानी सामग्री यानि अर्काइव से उस मौके की रिपोर्ट को निकालकर फिर हाल के बरसों में प्रकाशित भी किया.
ब्रिटेन में भारत की आवाज बने
ये वो समय था जब भारतीयों को ब्रिटेन में हेय समझा जाता था. उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था. उन्हें यही माना जाता था कि ये हमारे गुलाम देश के लोग हैं. ये दादाभाई नौरोजी थे, जो ब्रिटेन में और वहां लोगों के बीच भारत की आवाज बने. भारत और भारतीयों की ब्रिटिश राज में दिक्कतों को लेकर अभियान शुरू किया. इसका असर ये तो जरूर पड़ा कि ब्रिटेन में एक बड़ा वर्ग ऐसा जरूर खड़ा हो गया, जो भारत में ब्रिटिश राज के तौरतरीकों पर सवाल उठाने लगा. इसका असर नैतिक तौर पर ब्रिटेन की संसद धीरे धीरे देखा जाने लगा.
तब ब्रिटिश पीएम की उस टिप्पणी ने उन्हें चर्चा में ला दिया
दादाभाई नौरोजी तब ब्रिटेन में खासे चर्चित हो गए जब 1886 में उन्होंने कई नाकामियों के बाद लंदन के पास की हालबॉर्न सीट से चुनाव लड़ा. उन्हें लिबरल पार्टी ने टिकट दिया था. इससे पहले भी वह इंग्लैंड में कई चुनाव लड़ चुके थे और हार चुके थे. जब वह इस बार हारे तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड सेल्सबरी ने उन पर नस्लीय टिप्पणी कर दी, उन्होंने कहा कि अभी ब्रिटिश चुनावी इलाके किसी ब्लैक मैन के लिए तैयार नहीं हैं. दादाभाई नौरोजी 1855 में मुंबई के एलफिंसटन कॉलेज में लेक्चरर बने. तब ये कॉलेज इस तरह दिखता था. (फाइल फोटो)
ये टिप्पणी अपमानजनक भी थी और नस्लीय भी. इस पर सेल्सबरी का ब्रिटेन के मीडिया के काफी मजाक उड़ाया. उन्हें सवालों के कठघरे में खड़ा किया गया. दादाभाई अचानक चर्चाओं में आ गए. उन्हें इस देश में जिस लोकप्रियता और पहचान की जरूरत थी, वो इस विवाद ने अनायास दे दिया.
हालांकि इसी दौरान उन्होंने फ्लोरेंस नाइटेंगल और कई अभियान को समर्थन देकर या उससे जुड़कर ब्रिटेन के लोगों के दिल में और जगह बनाई. लोग उनकी बात सुनने लगे थे. वह भारत की आवाज बनने की जो उम्मीद लेकर दोबारा ब्रिटेन गए थे, वो कम से कम रंग लाने लगी थी.
लिबरल पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते
1892 में जब फिर चुनाव हुए तो लिबरल पार्टी ने उन्हें सेंट्रल फिंसबरी से खड़ा किया, जो श्रमिकों और कामकाजी बहुल लोगों का इलाका था. इस बार नौरोजी जीते और इतिहास बना दिया. वह पहले भारतीय के तौर पर हाउस ऑफ कामंस पहुंचे. वह एक मुखर सांसद साबित हुए. वह लगातार ब्रिटिश संसद में भारत की आजादी, अधिकार और दिक्कतों की बात करते थे.
हालांकि नौरोजी ने ब्रिटेन में कई और अभियानों में जोरशोर से हिस्सा लिया, जिसमें महिलाओं को वोट का अधिकार, वृद्धों को पेंशन जैसे मुद्दे थे. भारत के लिए आजादी की मुहिम तो उनका मुख्य उद्देश्य था ही. हालांकि इसके तीन साल बाद चुनावों में वह 1895 में हार गए. लेकिन ताजिदंगी भारत की आवाज बने रहे. ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड सेल्सबरी, जो दादाभाई नौरोजी पर नस्लीय टिप्पणी करके विवादों में घिर गए. (फाइल फोटो)
देश की पहली सियासी पार्टी बनाई
नौरोजी का जन्म मुंबई में एक गरीब पारसी परिवार में हुआ था. काफी तेज दिमाग होने के कारण उन्होंने अपने रास्ते खुद बनाए. वह राष्ट्रवादी थे, लेखक और जबरदस्त वक्ता भी. जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी शासन कर रही थी, तभी से उन्होंने आजादी की मुहिम शुरू कर दी थी. देश की पहली सियासी पार्टी द बांबे एसोसिएशन उन्होंने 1852 में बनाई. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाने में उनकी खास भूमिका रही. तीन बार वह कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
पहली बार कोई भारतीय मुंबई के उस कॉलेज में लेक्चरर बना
1855 में वह मुंबई के एलफिंसटन कॉलेज में लेक्चरर बने, हालांकि इस पद पर इस कॉलेज में अंग्रेजों की ही नियुक्ति होती थी. वह मैथमेटिक्स और नेचुरल फिलास्फी पढ़ाते थे. उनकी मेघा इतनी जबरदस्त थी कि साथी अंग्रेज प्रोफेसर उन्हें भारत की उम्मीद कहने लगे थे. दादाभाई नौरोजी 1856 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में गुजराती के प्रोफेसर बने. उन्होंने वहां एक संस्था बनाई, जो बाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस में बदल गई (फाइल फोटो)
इंग्लैंड में ट्रेडिंग कंपनी का आफिस खोला
नौकरी के साथ वह व्यापार में भी हाथ पैर मार रहे थे. तब भारत में एक बड़ी ट्रेडिंग कंपनी थी कामा एंड कंपनी, जिसका आफिस ब्रिटेन में खोला जाने वाला था. कंपनी को तब नौरोजी ऐसे शख्स मिले, जो ये का कर सकता था. इस सिलसिले में उन्हें वहां भेजा गया. उन्होंने लीवरपुल में इसका आफिस खोला, वहां से कंपनी के लिए व्यापार के तार जोडे़. हालांकि वह इस कंपनी में तीन साल ही रहे.
फिर अपनी कंपनी खोली
इसके बाद अपनी ही कंपनी खोली, जो ब्रिटेन के साथ कॉटन की ट्रेडिंग करती थी. इसका नाम था दादाभाई नौरोजी एड कंपनी. 1859 के आसपास उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में वह गुजराती के प्रोफसेर बन गए. वहां भी उन्होंने भारतीयों और एशियाई मुल्क से वहां आकर रहने वालों को जोड़ना शुरू किया. फिर उनका एक एसोसिएशन बनाया. कुल मिलाकर दादाभाई ऐसे शख्स थे जो हमेशा सक्रिय रहते थे. वृद्धावस्था में भी वह जिस ऊर्जा से ब्रिटेन में काम कर रहे थे, उससे उन्होंने द ओल्डमैन ऑफ इंडिया कहा जाने लगा.
बडौदा महाराजा के यहां दीवान भी रहे
हालांकि नौरोजी की जिंदगी में बदलाव आते रहते थे. 1874 में वह भारत लौटे तो बडौदा के महाराजा सायाजी गायकवाड़ के दीवान बन गए. उसी के आसपास मुंबई विधानसभा के सदस्य भी बने लेकिन उन्हें लगातार लगता रहा कि ब्रिटेन में भारत की आवाज सुनी जानी चाहिए, उसकी जरूरत है, लिहाजा वह फिर वहां गए. इसके बाद ही वह वहां सांसद भी बने और पहचान भी बनाई.
Tags: Britain News, British Government, India britain, United kingdomFIRST PUBLISHED : July 5, 2024, 15:46 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed