स्पीकर के पास होते हैं कौन से विशेषाधिकार गठबंधन में हर पार्टी चाहती है ये पद

What privileges does the speaker have: मंत्रिमंडल के गठन के बाद अब बारी है लोकसभा का स्पीकर चुने जाने की. चर्चा है कि एनडीए में बीजेपी के सहयोगी दल टीडीपी और जेडीयू की नजर स्पीकर पद पर है. बहुत से फैसले ऐसे होते हैं जिसमें स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. इसलिए अगर गठबंधन सरकार है तो हर दल चाहता है कि ये पद उसे मिले.

स्पीकर के पास होते हैं कौन से विशेषाधिकार गठबंधन में हर पार्टी चाहती है ये पद
हाइलाइट्स तेलुगुदेशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड की नजर स्पीकर पद पर है. बहुत से फैसले ऐसे होते हैं, जिसमें स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. लोकसभा स्पीकर के पास अपार प्रशासनिक और विवेकाधीन शक्तियां होती हैं. What privileges does the speaker have: मोदी सरकार 3.0 के मंत्रिमंडल का गठन हो चुका है. अब बारी है लोकसभा की, जिसमें स्पीकर का चुनाव किया जाना है. जिस तरह की चर्चाएं हैं उसके अनुसार बीजेपी के एनडीए में सहयोगी तेलुगुदेशम पार्टी (TDP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) की नजर स्पीकर पद पर है. टीडीपी और जेडीयू के स्पीकर पद चाहने की एक वजह है. सभी जानते हैं कि गठबंधन सरकारों में बहुत से फैसले ऐसे होते हैं, जिसमें स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है और उनके विशेषाधिकार काम आते हैं. इस मामले में हमेशा अटल बिहारी सरकार के गिरने का वो वाकया याद किया जाता है, जिसमें स्पीकर जीएमसी बालयोगी ने एक ऐसा फैसला लिया और एक वोट से सरकार गिर गई थी. जीएमसी बालयोगी टीडीपी के खाते से स्पीकर बने थे.   भारतीय शासन प्रणाली वेस्टमिंस्टर मॉडल का अनुसरण करती है, इसलिए देश की संसदीय कार्यवाही का नेतृत्व एक पीठासीन अधिकारी करता है, जिसे अध्यक्ष या स्पीकर कहा जाता है. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र में स्पीकर सदन की गरिमा और स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है. क्योंकि सदन देश का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए स्पीकर एक तरह से देश की स्वतंत्रता का प्रतीक होता है. ये भी पढ़ें- वो नेता जो 13 साल तक पीएम पद पर ठोकते रहे दावेदारी, पार्टी बदलकर ही पूरा हुआ सपना क्या होती हैं स्पीकर की शक्तियां दृष्टिआईएएस. कॉम के अनुसार संविधान के अनुसार एक लोकसभा स्पीकर के पास अपार प्रशासनिक और विवेकाधीन शक्तियां होती हैं. जानिए क्या-क्या होती हैं शक्तियां… स्पीकर सांसदों के बीच अनुशासन और मर्यादा सुनिश्चित कर लोकसभा में काजकाज का संचालन करता है. वह लोकसभा के सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकार की रक्षा करता है. गतिरोध को हल करने के लिए स्पीकर वोट देने की अपनी पावर का उपयोग करता है. ऐसा तभी होता है जब सदन में दोनों पक्षों को बराबर वोट मिले हों. सदन में कोरम के अभाव में उसके पूरा होने तक सदन को स्थगित करना या किसी बैठक को निलंबित करना स्पीकर का कर्तव्य है. स्पीकर संसद सदस्यों की सदन में चर्चा के लिए एजेंडे को तय करता है. स्पीकर को प्रक्रिया के नियमों की व्याख्या करने की अपार शक्तियां मिली होती है. वह सदन का सदस्य होने के साथ उसकी पीठासीन अधिकारी भी है. इसलिए सदन का अनुशासन सुनिश्चित करना उसका काम है. स्पीकर यह भी सुनिश्चित करता है कि सांसदों को उनके अनुचित व्यवहार के लिए सजा दी जाए. स्पीकर दलबदल के आधार पर (संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत) किसी संसद सदस्य को सदन से अयोग्य घोषित कर सकता है. अगर कोई सदयस्य स्पीकर के आदेशों का उल्लंघन करता है तो ऐसे मामलों में उसे सदन से हटना पड़ सकता है. स्पीकर विभिन्न संसदीय प्रक्रियाओं जैसे स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव आदि की भी अनुमति देता है. स्पीकर संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है. स्पीकर को यह तय करने की निर्णायक शक्ति दी गई है कि कोई बिल, मनी बिल है या नहीं. उसका निर्णय अंतिम माना जाता है. अविश्वास प्रस्ताव को छोड़कर सदन के समक्ष आने वाले अन्य सभी प्रस्ताव स्पीकर की अनुमति के बाद ही आते हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का निर्णय भी स्पीकर ही करता है. स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में कई संसदीय समितियां होती हैं जैसे नियम समिति, व्यवसाय सलाहकार समिति और सामान्य प्रयोजन समिति. अध्यक्ष इन समितियों के लिए विभिन्न अध्यक्षों को नॉमिनेट करता है और साथ ही समितियों के कामकाज की निगरानी भी करता है. वह उन प्रावधानों का अंतिम मध्यस्थ और व्याख्याकार है जो सदन के कामकाज से संबंधित हैं. उसके निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं और आमतौर पर उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, चुनौती नहीं दी जा सकती या आलोचना नहीं की जा सकती. ये भी पढ़ें- कौन रहा सबसे लंबे समय तक केंद्र में कैबिनेट मिनिस्टर, आज तक नहीं टूटा रिकॉर्ड कैसे चुना जाता है स्पीकर संविधान कहता है कि स्पीकर को सदन का सदस्य होना चाहिए. आमतौर पर स्पीकर सत्तारूढ़ दल का ही कोई सदस्य बनता है, क्योंकि उसके पास बहुमत होता है. सदन अपने पीठासीन अधिकारी का चुनाव मौजूद सदस्यों के साधारण बहुमत से करता है. ऐसे भी उदाहरण हैं जब स्पीकर सत्ताधारी दल के किसी सहयोगी पार्टी से बना हो. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के दौरान 12वीं लोकसभा में टीडीपी के जीएमसी बालयोगी और 13वीं लोकसभा में शिवसेना के मनोहर जोशी स्पीकर पद पर आसीन हुए. जब लोकसभा भंग हो जाती है तो स्पीकर नई लोकसभा की पहली बैठक तक अपने पद पर बना रहता है. उसका कार्यकाल सभी समाप्त होता है जब नया स्पीकर चुन लिया जाता है. क्या हटाया जा सकता है स्पीकर? स्पीकर का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के बराबर होता है, यानी पांच साल. हालांकि जरूरत पड़ने पर स्पीकर को हटाया जा सकता है, इसका अधिकार निचले सदन के पास है. संविधान के अनुच्छेद 94 और 96 के अनुसार सदन बहुमत (सदन की उपस्थिति और वोट करने वाली कुल संख्या का 50 फीसदी से अधिक) द्व्रारा प्रस्ताव पारित कर स्पीकर को हटा सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य के तौर पर अयोग्य घोषित होने पर स्पीकर को हटाया भी जा सकता है. डॉ. नीलम संजीव रेड्डी एकमात्र स्पीकर हैं जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था. लेकिन उनके मामले में स्थिति कुछ अलग थी. वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने. वह एकमात्र ऐसे स्पीकर हैं जो बाद में राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए.  Tags: Assembly speaker, Bhartiya Janta Party, Chandrababu Naidu, Indian Parliament, JDU news, Loksabha SpeakerFIRST PUBLISHED : June 12, 2024, 12:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed