Explainer : कैसे होती हवाई जहाजों की मेंटीनेंस क्यों होती हैं तकनीक गड़बड़ियां
Explainer : कैसे होती हवाई जहाजों की मेंटीनेंस क्यों होती हैं तकनीक गड़बड़ियां
19 जून के बाद से स्पाइसजेट एयरलाइंस के विमानों में 08 बार हवा में तकनीक गड़बड़ियां हो चुकी हैं. कई बार इसे आपात स्थितियों में नीचे उतरना पड़ा. एक बार तो जहाज पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर उतरा. जानते हैं कि कैसे होती है विमानों की उड़ान से पहले तकनीक चेकिंग और क्यों होती हैं ऐसी गड़बड़ियां.
दुनियाभर में कामर्शियल जहाजों के जिस पहलू पर उसकी फ्लाइट से ज्यादा ध्यान दिया जाता है, वो है उसकी मेंटीनेंस और हर उड़ान से पहले उसकी जांच. हर जहाज की जांच कई अलग स्तर पर होती है. उडान से पहले अगर उसके कॉकपिट से उपकरणों को पायलट और मेंटिनेंस क्रू मिलकर ओके करता है तो बेसिक जांच भी तकरीबन रोज होती है लेकिन केवल यही काफी नहीं है. चेक प्वाइंट की कैटेगरी ए से लेकर डी तक होती है. हर जांच का तरीका और समय अलग अलग होता है.
अगर आप कामर्शियल उड़ान से संबंधित मेंटीनेंस पहलू को जानेंगे तो लगेगा कि दुनियाभर की पूरी एविएशन इंडस्ट्री बहुत हद तक तक रेगुलर से लेकर इंटेसिव मेंटीनेंस और चेकअप पर टिकी है. एविएशन सेक्टर से जुड़ा हर कोई मानता है कि जहाज को उड़ाना शायद सड़क पर वाहन चलाने से ज्यादा आसान है, बशर्ते अगर आप इसमें ट्रेंड हों लेकिन इसका मेंटीनेंस पार्ट उतना ही गंभीर.
भारत में स्पाइस जेट के जहाजों के साथ होती तकनीक गड़बड़ियां इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं. 18 दिनों में इस एयरलाइंस के विमान में हर तरह की गड़बड़ी हो चुकी है. हालांकि कोई हादसा नहीं हुआ लेकिन जो कुछ भी हुआ वो इसके मेंटीनेंस पहलू या चेकअप की पूरी प्रक्रिया की ओर भी ध्यान जरूर खींचती है.
स्पाइस जेट में कभी उडान के दौरान केबिन में धुंआ भरने की बात सामने आई तो कभी उडा़न के दौरान विंडशील्ट चकखने की, जब स्पाइसजेट का विमान दिल्ली से दुबई जा रहा था तो फ्यूल इंडीकेटर में खराबी के कारण 5000 स्क्वेयर फुट की ऊंचाई पर उड़ रहे विमान को आपात स्थितियों में पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर उतारना पड़ा.
05 जुलाई को ताजातरीन मामले में स्पाइसजेट के एक कार्गो विमान में मौसम संबंधी रडार ने काम करना बंद कर दिया, जिससे फिर इसे आपात स्थिति में उतारना पड़ा. जब किसी एयरलाइंस के साथ बार बार ये होता है तो उसकी कई वजहें हो सकती हैं लेकिन सबसे बड़ी वजह मेंटीनेंस और स्पेयरपार्ट्स की कमी होती ही होती है.
भारत में जितनी भी एयरलाइंस कंपनियां अपने विमान उड़ा रही हैं. इन सभी के विमानों की मेंटीनेंस का काम या उनकी अपनी कंपनी करती है या फिर उन्होंने फिर बाहरी मेंटीनेंस कंपनियों की मदद ले रखी है.
कौन करता है विमानों की मेंटीनेस का काम
भारत में जितनी भी एयरलाइंस कंपनियां अपने विमान उड़ा रही हैं. इन सभी के विमानों की मेंटीनेंस का काम या उनकी अपनी कंपनी करती है या फिर उन्होंने फिर बाहरी मेंटीनेंस कंपनियों की मदद ले रखी है. वैसे भारत की ज्यादा विमान कंपनियों की मेंटीनेंस एयरइंडिया इंजीनियरिंग करती रही है. एयरइंडिया इंजीनियर एकदम अलग कंपनी है. टाटा को एयर इंडिया एयरलाइंस बेचने के बावजूद ये कंपनी अब भी सरकार के ही पास है.
एयरक्राफ्ट मेंटीनेंस भी बड़ी इंडस्ट्री
देश में इस समय विमानों की संख्या बढ़ने के साथ ही एयरक्राफ्ट मेंटीनेस का काम भी काफी बढ़ा है, वो भी एक बड़ी इंडस्ट्री की तरह उभऱ रहा है. एयरक्राफ्ट मेंटीनेंस कंपनियों का विमान विमानों की रिपेयरिंग, मेंटीनेंस और ओवरहालिंग से जुड़ा होता है. इसमें एयरवर्क्स, मैक्स एयरोस्पेस ग्रुप, एयरइंडिया इंजीनियरिंग, जीएमआर जैसी कंपनियां काम कर रही हैं. मजे कि बात ये भी है कि स्पाइसजेट की एक सिस्टर कंपनी खुद ये काम करती है. अपने विमानों की मेंटीनेंस और रिपेयरिंग का काम भी उसके पास है.
कई तरह से होता है विमानों की चेकअप और मेंटीनेंस
एयर इंडिया इंजीनियरिंग के एक इंजीनियर ने नाम नहीं बताने की सूरत में बताया कि हर कामर्शियल विमान की मेंटीनेंस और चेकअप का काम अलग अलग कैटेगरी में बंटा है. आमतौर पर उडान से पहले हर विमान की जनरल चेकिंग का काम होता है, जिसको पायलट या सहपायलट मेंटीनेंस क्रू के साथ अंजाम देते हैं. इसमें ज्यादा पायलट केबिन क्रू से संबंधित उपकरणों की जांच होती है. कुछ जांच हर दो दिन पर होती है तो कुछ हर फ्लाइट के 300-400 घंटे पूरे होने पर. इसमें विमान की एक सघन जांच ऐसी भी होती है, जिसको सघन जांच कहते हैं.
हर उड़ान के पहले पायलट या उडान दल को केबिन में सभी उपकरणों और सिस्टम की जांच करनी होती है. इसके अलावा अन्य जांच समय समय पर होती रहती हैं.
जटिल यांत्रिक संरचना और हजारों पुर्जे
मोटे तौर पर ये समझ लीजिए कि एक हवाई जहाज की तकनीक संरचना बहुत जटिल होती है. इसमें हजारों पार्ट होते हैं. हरेक को एसेंबल करके इसे उड़ने वाले उपकरण में बदला जाता है. पूरे जहाज में अंदर ही अंदर केबल और तारों की संरचना बिछी होती है. इन सभी की रोज जांच संभव ही नहीं. फिर जितने भी विमान हवा में उड़ रहे हैं, वो सभी एक तरह के नहीं होते, अलग अलग तरह के होते हैं. उनकी पूरी यांत्रिकी जटिल होती है.
मेंटीनेंस संबंधी ये बातें
विमान एक्सपर्ट संबंधी एक ब्लॉग में मोटे तौर पर जहाज की मेंटीनेंस को लेकर ये बातें कही गई हैं
– चूंकि विमान की यांत्रिकी जटिल होती है लिहाजा उसकी रेगुलर मेंटीनेंस भी जरूरी होती है
– जहाज उड़ाना जमीन पर वाहन चलाने से 20 गुना ज्यादा आसान है लेकिन उसकी मेंटीनेंस बनाए रखना उतना ही अहम और जरूरी
– वैसे सभी कामर्शियल एयरलाइंस कंपनियां अपने जहाजों की मेंटिनेस के लिए प्रोफेशनल इंजीनियर्स की पूरी टीम और स्टाफ रखती हैं या इस काम के लिए विशेषज्ञ मेंटीनेंस कंपनियों की सेवाएं लेती हैं.
– आमतौर पर विमान की चेकिंग करते समय उसके फ्लूइड और टायर की हवा जरूर चेक की जाती है.
कितने तरह की होती है विमानों की जांच और मेंटीनेंस
अब आइए देखते हैं कि विमान की कितने तरह की जांच और मेंटीनेंस प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है
विमान की फ्लाइट पूर्व चेकिंग – अगर आपने विमान में सफर किया हो तो देखा होगा विमान के चलने से पहले कुछ फील्ड स्टाफ वर्कर्स पायलट के साथ केबिन में एक चेकअप में हिस्सा लेते हैं और फिर सबकुछ ओके होने के बाद नीचे उतर आते हैं. वैसे मोटे तौर पर हर उड़ान से पहले होने वाली जांच के लिए पायलट या सहपायलट ही अधिक जवाबदेह होते हैं. वो इन चीजों को चेक करते हैं
– एफटीरियर वाकराउंड
– जरूरी पार्ट्स का विजुअल इंस्पेक्शन
– सेंसर, प्रोब्स, स्ट्रक्चरल कंपोनेंट, मोटर्स औऱ केबल्स की जांच (खासकर जो गियर से संबंधित होते हैं)
इसके अलावा विमान के फायर डिटेक्टेटर्स, वार्निंग लाइट्स, व्हेदर रडार और दूसरे सिस्टम की भी जांच होती है.
विमान को अपने जीवन में एक बार हैवी मैंटीनेंस से गुजरना पड़ता है लेकिन ये बहुत महंगा और समय लेने वाला होता है.
बेसिक जांच – ये जांच तकरीबन हर दूसरे दिन होती है, जिसमें विमान के टायरों की हवा से लेकर, औसतन पूरे जहाज की सरसरी जांच हो जाती है. सबकुछ कंप्युटर से चेक कर लिया जाता है.
ए चेक – ये चेकिंग और मेंटीनेंस हर विमान की 200-300 या 400-600 फ्लाइट आवर्स पर होती है. इसमें 05-06 घंटे लग जाते हैं लेकिन इसमें जहाज के पूरे सिस्टम को चेक किया जाता है अगर कहीं कुछ हल्की फुल्की गड़बड़ी या तकनीक कमी है तो उसको ठीक करने की कोशिश की जाती है.
बी चेक – ये जांच और मेंटीनेंस का काम 06-08 महीने बाद होता है. इसमें विमान को हैंगर पर खड़ा करके एक से तीन दिन की जांच का समय लिया जाता है. विमान के फ्लाइट से संबंधित सारे पुर्जों, उपकरणों और सिस्टम को कंप्युटर की मदद से पूरा जांच लिया जाता है. अगर कुछ हल्का-फुल्का पुर्जा बदलना है या कुछ सुधार करना है तो वो इस जांच में हो जाता है.
सी चेक – ये जांच और मेंटीनेंस प्रक्रिया हर दो साल पर जरूर होती है. इसमें पुरे विमान की बहुत गंभीरता के साथ बहुत सघन जांच की जाती है. तमाम पुर्जे और उपकरण भी बदले जा सकते हैं. इस चरण की जांच में एक से दो हफ्ते लग जाते हैं.
डी चेक – इस चेकिंग से आमतौर पर विमान कंपनियां बचती हैं. ये 06 साल पर होती है और बहुत ज्यादा खर्चीली होती है. इसमें एक तरह से पूरे विमान की ओवरहालिंग ही नहीं होती बल्कि आधे से ज्यादा पुर्जे और उपकरण बदलने की जरूरत पड़ जाती है. ये चरण इतना खर्चीला होता है कि ज्यादातर एयरलाइंस कंपनियां इस जांच में जाने की बजाए विमान को रिटायर कर देती हैं. इसको हैवी मेंटीनेंस विजिट भी कहते हैं. ये आमतौर पर विमान निर्माता कंपनी करती है. कई बार इसमें पूरे विमान पर नई पेेटिंग भी होती है.
इसके अलावा उडान के दौरान अगर पायलट या उडान दल को लगता है कि विमान में कोई चीज दिक्कत पैदा कर रही है तो वो इस बारे में मेंटीनेस टीम को बताते हैं, वो इसको ठीक करते हैं या फिर बदल देते हैं.
विमान के टायरों में नाइट्रोजन क्यों भरी होती है
क्योंकि नाइट्रोजन पर विमान के बहुत ऊपर उड़ने की स्थिति में अत्यधिक ठंड, दबाव, मौसमी स्थितियों का असर नहीं पड़ता. वो उसी तरह बनी रहती है जबकि आम हवा के साथ ऐसा नहीं है. टायर में अगर आम हवा भरी जाए तो इस पर तापमान और दबाव के साथ मौसम का असर काफी ज्यादा होता है. नाइट्रोजन एक्ट्रीम एनवायरमेंट में एक जैसी बनी रहती है.
तो आप समझ गए होंगे कि अगर जहाज की तरीके से मेंटीनेंस नहीं हो रही हो या पार्ट्स बदले नहीं जा रहे हों तो इस तरह की गड़बड़ियां हो सकती हैं. वैसे किसी भी जहाज में जब ऐसी गड़बड़ियां होने लगती हैं तो उसके कोई ना कोई इस तरह के कारण जरूर होते हैं.
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Tags: Aeroplane, Aircraft operation, Plane, SpicejetFIRST PUBLISHED : July 06, 2022, 17:11 IST