तिरुपति:गर्भगृह में ही है प्रसाद बनाने का नुस्‍खा घी के इस्‍तेमाल का भी जिक्र

Tirupati Laddu Row: तिरुपति बालाजी के मंदिर में हर दिन सबसे ज्यादा भक्त दर्शन के लिए आते हैं. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार यह एक प्रमुख धार्मिक स्थान है. इसीलिए यहां के प्रसाद की भी महिमा बहुत ज्यादा है. लड्डुओं में मिलावटी घी के इस्तेमाल के बाद यहां का प्रसाद विवादों में घिरा हुआ है. लेकिन यहां मौजूद शिलालेखों में प्रसाद बनाने का तरीका बताया गया है, ताकि उसकी शुद्धता बनी रहे.

तिरुपति:गर्भगृह में ही है प्रसाद बनाने का नुस्‍खा घी के इस्‍तेमाल का भी जिक्र
Tirupati Laddu Row: तिरुपति बालाजी मंदिर प्रसाद के लड्डू में मिलावटी घी के कथित उपयोग को लेकर विवादों में घिरा हुआ है. लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस मंदिर में सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं. हिंदू धर्मग्रंथों में इस मंदिर का जिक्र कलियुग के दौरान भगवान विष्णु के सांसारिक निवास स्थान के रूप में किया गया है. तिरुपति बालाजी का मंदिर, जिसे श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार एक प्रमुख धार्मिक स्थान है. आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित इस मंदिर में हर दिन भारी संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं.  इसीलिए तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद की बहुत महिमा है. भक्तों के लिए भगवान विष्णु का आशीर्वाद लेने और भगवान से अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना करने के बाद प्रसाद चढ़ाना आम बात है. लेकिन प्रसाद वाले लड्डू में मिलावट के बाद अब ध्यान मंदिर के शिलालेखों पर केंद्रित हो गया है. इन शिलालेखों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री खास तौर से घी को किस तरह संभाला जाए, इसके उपाय बताए गए हैं. तिरुमाला और तिरुपति के मंदिरों में 1,150 शिलालेख हैं, जिनमें से 700 अकेले तिरुमाला मंदिर की दीवारों पर खुदे हुए हैं. 8वीं और 18वीं शताब्दी के शिलालेख संस्कृत, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में हैं. ये भी पढ़ें- Explainer: कौन होते हैं लोकायुक्त, क्या है उनकी पॉवर्स, कैसे हुई इसकी शुरुआत  प्रसाद के बारे में क्या बताता है शिलालेख ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा एक शिलालेख मंदिर के ‘आनंद निलयम’ के पहले प्राकरम (आंतरिक परिसर) की उत्तरी दीवार पर पाया जाता है, जो गर्भगृह के ऊपर की छतरी है. यह आज भी ‘विमान वेंकटेश्वर’ की मूर्ति के पास पाया जा सकता है. 1019 ई. में राजेंद्र चोल-प्रथम के सातवें शासनकाल का शिलालेख, मंदिर के लिए किए गए दान और प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली सामग्री के इंतजाम के बारे में बताता है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) मैसूरु के निदेशक (एपिग्राफ्स) के. मुनिरत्नम रेड्डी ने ‘द हिंदू’ को बताया, “यह पहला शिलालेख है जिसमें भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर में पूजा और भोजन प्रसाद के प्रबंध और उचित रखरखाव में खामियों की जांच के लिए एक समिति के गठन का उल्लेख किया गया है.”  ये भी पढ़ें- ये है भारत का सबसे छोटा ट्रेन रूट… 3 किमी का सफर, लगते हैं सिर्फ 09 मिनट, किराया है चौंकाने वाला खाद्य पदार्थों की क्वालिटी की होती थी जांच घी का उपयोग पवित्र प्रसाद (प्रसादम) की तैयारी के साथ-साथ मंदिर में बारहमासी दीपक जलाने में किया जाता था.मुनिरत्नम  रेड्डी ने कहा, “घी की व्यवस्थित पैकेजिंग का उल्लेख 1019 ईस्वी में किया गया था और तिरुमाला में इसकी उचित पैकिंग और परिवहन सुनिश्चित किया गया था.” उन्होंने बताया कि इन शिलालेखों पर सारी प्रक्रिया का विवरण अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. मंदिर में इस प्रक्रिया का पालन पल्लव युग से किया जाता रहा है. इसमें इस बात का भी जिक्र किया गया है कि  एक अधिकारी ‘नैवेद्यम’ (देवता का प्रसाद) को गर्भगृह में ले जाने से पहले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और मात्रा की जांच करता है. ये भी पढ़ें- Explainer: देश भर में क्यों बढ़ रहे हैं स्वाइन फ्लू के मामले, क्या हैं इसके लक्षण… किसको ज्यादा खतरा कब बना था तिरुपति मंदिर लगभग 300 ईस्वी में, तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. कई सम्राटों और शासकों ने समय-समय पर इसकी उन्नति में योगदान दिया. 18वीं शताब्दी के मध्य में, मराठा जनरल राघोजी प्रथम भोंसले ने मंदिर की प्रक्रियाओं की देखरेख के लिए एक समिति बनाई. 1933 में टीटीडी कानून के पारित होने के साथ, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की स्थापना की गई. आज, टीटीडी बड़ी संख्या में मंदिरों और उनके सहायक मंदिरों की देखरेख और रखरखाव करने में सक्षम है. ये भी पढ़ें- देश के तीनों सेना प्रमुखों में एक बात है कॉमन, जो है वाकई दिलचस्प, क्या है ये काले पत्थर की है मूर्ति आनंद निलयम गर्भगृह में भगवान श्री वेंकटेश्वर की स्वयं प्रकट (स्वयंभू) प्रतिमा का स्थान है. गर्भगृह के अंदर मुख्य देवता भगवान वेंकटेश्वर हैं (जिन्हें बालाजी, श्रीनिवास या गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है). यह मूर्ति काले पत्थर से बनाई गई है और इसकी ऊंचाई लगभग 8 फीट है. देवता एक शंख और एक चक्र धारण करते हैं, उनके हाथ अभय (आशीर्वाद) और वरदा (वरदान देने वाली) मुद्रा में हैं. भोग श्रीनिवास मूर्ति की उत्तम मूर्ति भी आनंद निलयम में स्थित है. सुबह ‘सुप्रभात सेवा’ के दौरान इस मूर्ति को उतारकर मुख्य देवता के चरणों में रख दिया जाता है. इसका मतलब यह है कि चूंकि प्रमुख देवता इतने बड़े हैं कि उन्हें हटाया नहीं जा सकता, इसलिए भोग श्रीनिवास मूर्ति पीठासीन देवता के रूप में कार्य करते हैं. Tags: Andhra paradesh, Chandrababu Naidu, Jagan mohan reddy, Tirupati balaji, Tirupati newsFIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 16:19 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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