वो बड़ा बैंक जो खुला तो बांबे में लेकिन जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान चला गया
वो बड़ा बैंक जो खुला तो बांबे में लेकिन जिन्ना के कहने पर पाकिस्तान चला गया
82 साल पहले बंबई में एक ऐसे बैंक की स्थापना हुई जो आजादी से पहले भारतीय बैंकों के बीच बड़ा वित्तीय संस्थान बनकर उभरा. अब उसने दुनिया के बड़े बैंकों के बीच जगह बना ली है. कैसे ये जिन्ना के अनुरोध के कारण भारत से सबकुछ समेट कर पाकिस्तान चला गया.
हाइलाइट्स हबीब बैंक के मालिक पहले भारत में बड़े तांबे के कारोबारी थे, उन्होंने 1941 में ये बैंक खोला था, जिसने तेजी से तरक्की की बैंक के मुखिया हबीब इस्माइल थे, जिन्होंने पिता की मौत के बाद कम उम्र में एक तांबे की कंपनी में 5 रुपए के वेतन पर काम शुरू किया जिन्ना के इस बैंक से ना केवल अच्छे ताल्लुकात थे बल्कि उन्होंने बैंक मालिकों को भरोसा दिलाया कि नए देश में उनका भविष्य बेहतर रहेगा
82 साल पहले 1941 में बांबे में एक बैंक खोला गया, इसका नाम था हबीब बैंक. इसकी शुरुआत जिस शख्स के बेटों ने महज 25000 रुपयों से की थी, उसने केवल 13 साल की उम्र में बंबई में तांबे के बर्तन बनाने वाले एक कारखाने में निचले दर्जे से काम की शुरुआत की थी. ये बैंक अब दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में एक है. यहां तक कि पाकिस्तान की बदहाली में उसे भी मदद करता रहता है. ये बैंक भारत में ही काम करता रहता अगर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना अनुरोध करके अपने साथ ना ले जाते. अब दुनियाभर में इस बैंक की शाखाएं हैं ये एशिया के बड़े बैंकों में एक माना जाता है.
जब भारत का विभाजन हुआ तब पूरे देश में हबीब बैंक की करीब 30 शाखाएं काम कर रही थीं. कायद-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने खुद अपना अकाउंट खुलवाकर इस बैंक में अपना विश्वास दिखाया था. बाद में जिन्ना की सलाह पर 1947 में आजादी के बाद बैंक ने अपना पूरा कारोबार भारत से खत्म कर लिया. ये पाकिस्तान चला गया. उसके बाद 70 और 80 के दशक के आसपास जब इस बैंक ने पाकिस्तान से बाहर के देशों में अपनी शाखाएं खोलनी शुरू कीं तो भारत को छोड़कर तकरीबन सभी एशियाई देशों और दुनिया के देशों में अपनी शाखाएं खोल लीं.
रोचक है इस बैंक के मुखिया की कहानी
इस बैंक के मुखिया की कहानी कोई कम रोचक नहीं है. हबीब इस्माइल में जब एक तांबे का सामान बनाने वाली कंपनी में काम करना शुरू किया तब उनकी उम्र 13 साल थी. वेतन में मिलते थे 05 रुपए. दरअसल हबीब के पिता जल्दी गुजर गए तो उन्होंने अपनी अंकल कासिम मुहम्मद की तांबे की कंपनी में काम करना शुरू किया था.
बैंक की वेबसाइट के अनुसार हबीब बहुत मेहनती थे और पैसे बचाने के लिए पैदल घर जाते थे. उन्होंने इतनी मेहनत की कि 5 साल बाद 18 साल की उम्र में वे उसी दुकान में पार्टनर बन गए. फिर उन्होंने अपनी ही तांबा और ब्रास के सामान बनाने की कंपनी खोली तो ये चल निकली. 1946 में मुंबई की सड़क पर लगी हबीब बैंक की होर्डिंग (X handle)
आजादी के बाद हबीब इस्माइल का पूरा परिवार पाकिस्तान आकर बस गया. हबीब बैंक की वेबसाइट के अनुसार बैंक ने पाकिस्तान की आर्थिक और बैंकिंग से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण रोल निभाया. आजादी के बाद ये बैंक बढ़ता गया.
हबीब इस्माइल की बिजनेस क्वालिटीज के चलते अगले 17 सालों में उनकी छोटी से फर्म बड़ी होती गई, उसने तांबे, लौह अयस्क और मैग्नीज अयस्क का धंधा पूर्व अफ्रीका, इटली, फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन तक फैला लिया. दूरदर्शी होने के चलते उन्होंने 1912 में यूरोप में अपने प्रतिनिधि भेजकर जेनेवा और वियना में ब्रांच ऑफिस खोल लिए. इसी के साथ उन्होंने जापान और चीन से भी अपने संबंध मजबूत करने शुरू कर दिए. हबीब बैंक प्लाजा (फाइल फोटो)
कैसे बंबई में खुला हबीब बैंक
हबीब अपनी ईमानदारी के लिए इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि उनके ग्राहकों और लोकल व्यापारियों ने अपने सरप्लस को सुरक्षित रखने के लिए हबीब के पास छोड़ना शुरू कर दिया और वे यह भी चाहते थे कि हबीब उसका निवेश करके उन्हें और फायदा दें. यहीं से 1921 में हबीब बैंक एंड सन्स की शुरुआत हुई. इस कंपनी ने कपास और तिलहनों आदि का व्यापार किया और एक व्यापारी बैंक की तरह काम करने लगा. हबीब परिवार का यह प्रयोग चल निकला और कंपनी का नाम पड़ा हबीब बैंक लिमिटेड.
1991 में पाकिस्तान सरकार ने एक बार फिर से प्राइवेट सेक्टर बैंकों को स्थापित किए जाने का रास्ता खोला. ऐसे में नए बैंक खोलने की सबसे पहली परमिशन दाऊद हबीब ग्रुप को मिली. बैंक अल हिबाब लिमिटेड को हबीब इस्माइल के पोते ने अक्टूबर, 1991 में खोला. इसने जनवरी, 1992 से काम करना शुरू कर दिया था. मात्र 27 सालों में इस बैंक की संपत्ति 750 बिलियन रुपये से ज्यादा की हो चुकी है साथ ही बहरीन, सेशल्स और मलेशिया में इसकी शाखाएं हैं. इसके अलावा इसके पदाधिकारी दुबई, इस्तांबुल, बीजिंग, नैरोबी और केन्या में भी हैं. हबीब बैंक के मालिकों पर मोहम्मद अली जिन्ना का अच्छा खासा असर था. उन्होंने इसके मालिकों को पाकिस्तान जाने के लिए मनाया. (फाइल फोटो)
बैंक पर था जिन्ना का प्रभाव
इस बैंक ने जब बांबे में शुरुआत की तब जिन्ना वहां बड़े वकील थे. वह अपना पैसा यहीं जमा करते थे. चूंकि मुस्लिम कम्युनिटी में उनका अच्छा खासा असर था तो उनके इस असर के चलते बैंक ने मुस्लिम लीग को आजादी के दौरान काफी मदद की.
इसलिए इस बैंक को पाकिस्तान ले गए जिन्ना
जब पाकिस्तान बनने की बात आई तो जिन्ना को महसूस हुआ कि फिलहाल लाहौर और कराची में जो बैंक हैं, वो भारत के सेठों के हैं, जो अपना कारोबार बंटवारे के बाद भारत ले आएंगे, उस समय पाकिस्तान को अपने बैंक की जरूरत होगी.
लिहाजा जिन्ना ने हबीब इस्माइल और उनके बेटों से कहा कि पाकिस्तान को ना केवल उनकी जरूरत होगी बल्कि इस देश में उनके लिए पर्याप्त अवसर भी होंगे. जिन्ना के अनुरोध को टालना हबीब परिवार के लिए मुश्किल था. फिर उन्हें भी लगा कि जिन्ना जैसा शख्स जो पाकिस्तान का प्रमुख होगा, वो अगर कुछ चाह रहा है तो ऐसा जरूर करना चाहिए. इस तरह ये बड़ा बैंक अपना पूरा बोरिया बिस्तर समेट कर पाकिस्तान चला गया.
Tags: Bank, India and Pakistan, Jinnah, Mohammad Ali JinnahFIRST PUBLISHED : May 13, 2024, 09:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed