122 साल पहले एक राजा ने पिछड़ों को दिया 50 फीसदी आरक्षण कुपित हुए थे ब्राहण
122 साल पहले एक राजा ने पिछड़ों को दिया 50 फीसदी आरक्षण कुपित हुए थे ब्राहण
भारत में संविधान 1950 में लागू हुआ. उसके बाद देश में करीब 22 फीसदी आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लागू किया गया. लेकिन भारत में एक रियासत में पिछड़ों के लिए आरक्षण 100 साल से पहले ही लागू हो चुका था.
हाइलाइट्स कोल्हापुर के युवा राजा छत्रपति साहू ने लागू किया था ये आरक्षण तब उनके राज्य में ब्राहण 90 फीसदी नौकरियों पर काबिज थे पूजा में ब्राह्णणों के अपमानजनक सलूक पर उन्होंने किया ये कदम उठाने का फैसला
भारतीय संविधान जब 1950 में लागू हुआ तो उसमें देश के वंचित तबकों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण लागू किया गया. समय के साथ ये और बढ़ा, इसमें ओबीसी को भी जोड़ दिया. अंग्रेजों के राज में भी आरक्षण कुछ हद तक लागू था. लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारत में एक रियासत ऐसी भी थी, जहां 100 साल से भी कहीं पहले पिछड़ों के लिए 50 फीसदी रिजर्वेशन लागू कर दिया गया था.
यानि कहा जा सकता है कि भारत में कोटा प्रणाली हमारी जानकारी से कहीं ज्यादा पुरानी है. भारतीय संविधान में शामिल होने से बहुत पहले से इस नीति को पहली बार देश में एक युवा राजा ने लागू किया था, जो धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान महल के पुजारियों द्वारा गुमराह किए जाने से नाराज़ था.
यहां आपको बता दें कि भारतीय संविधान के लागू होने के समय, सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 15% और 7.5% का आरक्षण था. सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में भी इन वर्गों के लिए इतना ही आरक्षण था. बाद में मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर अन्य वर्गों के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया. 7 अगस्त, 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संसद को बताया कि वह ओबीसी के लिए 27% आरक्षण लागू कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% से ज़्यादा नहीं हो सकती. हालांकि कुछ राज्यों के कानूनों ने इस सीमा को पार कर लिया है. हालांकि भारत में भारत में, गरीबों को आरक्षण देने के लिए आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा बनाया गया है. इस कोटे के तहत, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को शिक्षा और सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है. कोल्हापुर में लगी छत्रपति साहू की प्रतिमा. (विकी कामंस)
अब आइए बात करते हैं कि उस भारतीय शासक की जिसने अपने राज्य में आरक्षण को सबसे पहले लागू किया. इसने हलचल मचा दी. केवल भारतीय रियासतों और राजाओं को ही इसने हैरानी में नहीं डाला बल्कि ब्रिटिश राज भी इस पर चकित रह गया.
कहां के थे ये दूरदर्शी शासक
ये दूरदर्शी शासक थे कोल्हापुर रियासत के छत्रपति शाहू (1874-1922). छत्रपति के आदेश पर, 26 जुलाई 1902 को कोल्हापुर राज्य राजपत्र में एक प्रशासनिक आदेश पारित किया गया. इसमें कहा गया,
‘ महामहिम यह निर्देश देते हैं कि इस आदेश की तिथि से, होने वाली रिक्तियों में से 50% पिछड़े वर्गों में से भर्ती की जाएंगी। उन सभी कार्यालयों में जिनमें पिछड़े वर्गों के अधिकारियों का अनुपात वर्तमान में 50% से कम है, अगली नियुक्ति उन वर्गों के सदस्य को दी जाएगी। ‘
क्या था तब पिछड़ों का मतलब
उस समय ‘पिछड़े वर्ग’ का मतलब मोटे तौर पर गैर-ब्राह्मण था. यह आदेश ऐसे समय में पारित किया गया था जब ब्राह्मणों का आर्थिक और सामाजिक जीवन के साथ शिक्षा पर प्रभुत्व था. करीब 90 प्रतिशत प्रशासनिक नौकरियों पर उनका कब्जा था.
19वीं सदी के अंत में कोल्हापुर भारत की सबसे महत्वपूर्ण रियासतों में एक थी, जिसकी स्थापना कुछ शताब्दियों पहले महारानी ताराबाई ने की, जो प्रसिद्ध मराठा शासक छत्रपति शिवाजी की बहू थीं. कोल्हापुर में 1884 में यशवंतराव घाटगे नामक 10 वर्षीय लड़के को शाही परिवार ने गोद लिया. उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित किया गया.
20 वर्ष की आयु में छत्रपति साहू राजा बने
1894 में 20 वर्ष की आयु में उन्हें राजा बनाया गया और छत्रपति साहू की उपाधि दी ग. हालांकि उन्हें राजर्षि साहू के नाम से अधिक जाना जाता है. युवा शासक ने उदार शिक्षा प्राप्त की थी. वह खूब यात्राएं करता था. उसने पूरे भारत में और विशेष रूप से अपने रियासत में आम लोगों के जातिगत शोषण और उत्पीड़न को देखा और महसूस किया कि ये खत्म होना चाहिए.
ब्राह्मणों के रुख से छत्रपति हैरान रह गए
आरक्षण लागू करने के उनके अभूतपूर्व निर्णय के पीछे एक घटना थी जिसे वेदोक्त विवाद के नाम से जाना जाता है. अक्टूबर 1899 में छत्रपति जब पंचगंगा नदी में धार्मिक अनुष्ठान कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि पुजारी वेदों से नहीं बल्कि पुराणों से मंत्रों का जाप कर रहे थे, जो काफी असामान्य था.छत्रपति तब हैरान रह गए जब महल के पुजारियों ने बताया कि केवल ब्राह्मणों को ही ‘वेदोक्त’ अनुष्ठान करने का अधिकार है.
मराठाओं को शुद्र मानते थे
चूंकि मराठा ‘शूद्र’ थे, इसलिए वे केवल पुराणों से ही अनुष्ठान कर सकते थे. यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण रियासतों में से एक के शासक के लिए वज्रपात जैसा था. 1896 में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने भी खुद को इसी तरह की मुश्किल में पाया था.
तब भारत में जनजागरण हो रहा था
यह घटना ऐसे समय में हुई जब पूरे भारत में सामाजिक सुधार की हवा बह रही थी. 1860 और 1920 के बीच के समय को ‘भारतीय पुनर्जागरण’ के तौर पर माना जाता है. तब ज्योतिबा फुले, पंडिता रमाबाई और न्यायमूर्ति रानाडे जैसे समाज सुधारक काफी काम कर रहे थे. इसका विरोध भी हो रहा था और असर भी. इससे अस्पृश्यता, पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह और महिलाओं के अधिकारों और निरक्षरता के उन्मूलन में काफी जनजागरण हुआ. छत्रपति शाहू इन दूरदर्शी लोगों से प्रेरित थे. उनके प्रगतिशील विचारों को उन्होंने आत्मसात किया.
पिछड़ों को आरक्षण का विचार सबसे ज्योतिबा फुले ने दिया था
पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का विचार सबसे पहले महात्मा ज्योतिबा फुले ने 1881 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की स्थिति की जांच करने के लिए गठित हंटर आयोग के सामने रखा था. माना जाता है कि छत्रपति शाहू 1902 में अपनी खुद की आरक्षण नीति लागू करते समय ज्योतिबा फुले से प्रेरित थे.
ब्राह्णणों ने इसका बहुत विरोध किया था
जब छत्रपति साहू ने पिछड़ों को 50 फीसदी आरक्षण लागू किया तो उन्हें ब्राह्मणों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. तब वह बंबई सरकार के समर्थन से ही अपनी योजना को आगे बढ़ा सके.
युवा राजा को सुधारक राजा भी कहा गया
इसके बाद कई क्रांतिकारी कानून बनाए गए जो अपने समय से बहुत आगे थे, यही वजह है कि युवा राजा को ‘सुधारक राजा’ कहा गया. 1917 में छत्रपति शाहू ने अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के लिए एक कानून पारित किया. 1919 में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के खिलाफ एक कानून पारित किया गया. विधवा पुनर्विवाह की अनुमति देने वाला कानून भी बनाया. इसके बाद अंतरजातीय विवाह को वैध बनाने वाला एक कानून बनाया गया. इस तरह कोल्हापुर भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में एक के रूप में जाना जाने लगा.
संविधान पर इनकी भी छाप रही
राजश्री शाहू का निधन 1922 में बॉम्बे में हुआ. लेकिन सामाजिक सुधारों की उनकी समृद्ध विरासत तब भी कायम रही जब भारत ने आजाद होने के बाद नया संविधान बनाया और इसके जरिए न्यायपूर्ण और समतापूर्ण समाज बनाने को आगे बढ़ाया गया. कहा जा सकता है कि हमारा संविधान काफी हद इन राजा की नीतियों से भी प्रभावित रहा.
Tags: Caste Reservation, OBC Reservation, Reservation news, SC ReservationFIRST PUBLISHED : July 11, 2024, 12:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed